Special Story: लखीमपुर की सदर विधानसभा पर भाजपा की साख दांव पर, अपना गढ़ वापस पाने उतरेगी सपा

142 सदर विधानसभा में पहला चुनाव 1952 में हुआ था। इस चुनाव में कांग्रेस से बंशीधर मिश्र विधायक बने वहीं 1967 में जन संघ के सीआर वर्मा ने इस सीट का प्रतिनिधित्व विधानसभा में किया। इसके बाद यह सीट कांग्रेस के पाले में चली गई, जिसके बाद 1969 और 1974 में तेजनारायण त्रिवेदी यहां से चुनकर विधानसभा पहुंचे। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 18, 2022 4:04 PM IST

लखीमपुर खीरी: पिछले विधानसभा चुनाव (UP Vidhansabha Chunav 2022)  में लखीमपुर (Lakhimpur) की आठों सीटों पर भाजपा के प्रत्याशियों ने बड़ी जीत दर्ज की थी जिसमे सदर सीट को सपा का गढ़ माना जाता था। लेकिन 2017 में चली मोदी लहर ने बड़े-बड़े गढ़ तबाह कर दिए। ऐसी ही एक सीट लखीमपुर की शहर विधानसभा थी यहां पिछले पांच चुनाव से लगातार समाजवादी पार्टी का कब्जा था, लेकिन 2017 में भाजपा के योगेश वर्मा ने सपा से दो बार के विधायक उत्कर्ष वर्मा को 37748 वोट के बड़े अंतर से हरा दिया 2012 के चुनाव में सपा के उत्कर्ष वर्मा ने बसपा के ज्ञान प्रकाश बाजपेई को 37993 वोट से शिकस्त दी थी इस चुनाव में  भाजपा चौथे नम्बर पर सिमट गई थी।

142 सदर विधानसभा में पहला चुनाव 1952 में हुआ था। इस चुनाव में कांग्रेस से बंशीधर मिश्र विधायक बने वहीं 1967 में जन संघ के सीआर वर्मा ने इस सीट का प्रतिनिधित्व विधानसभा में किया। इसके बाद यह सीट कांग्रेस के पाले में चली गई, जिसके बाद 1969 और 1974 में तेजनारायण त्रिवेदी यहां से चुनकर विधानसभा पहुंचे। 1977 में यह सीट जनता पार्टी ने जीती और नरेश चन्द्र विधायक बने। हालांकि एक बार जनता ने कांग्रेस पर भरोसा किया, जिसके बाद 1980 और 1989 में जफर अली नकवी, 1985 में कांति सिंह विसेन को जीत मिली वहीं राम लहर पर सवार होकर 1991 और 1993 में भाजपा के रामगोपाल ने लगातार दो बार विधानसभा का सफर तय किया


1996 में सपा का खुला खाता
रामजन्म भूमि और बाबरी विवाद के बाद प्रदेश की सियासत में 1996 तक सियासी समीकरण बदलने लगे थे, जिसका फायदा सपा ने उठाया 1996 में लखीमपुर सीट पर पहली बार कब्जा किया और कौशल किशोर विधायक बने जीत का सिलसिला 2002 और 2007 में चला और कौशल किशोर सपा से विधायक बने रहे, लेकिन कौशल किशोर के निधन के बाद 2010 के उपचुनाव में सपा ने उत्कर्ष वर्मा पर भरोसा किया और टिकट दिया वहीं जनता ने भी सपा के भरोसे पर भरोसा करते हुए उप चुनाव में तो जिताया ही, 2012 में उत्कर्ष को दोबारा विधायक बना दिया। 2017 में उत्कर्ष को सपा ने फिर मैदान में उतारा लेकिन वो भाजपा के योगेश वर्मा से हार गए।

अरसे से कोमा में है कांग्रेस
जिले में कांग्रेस एक अरसे से कोमा में है। 2009 में जिले की दोनों लोकसभा सीटें जीतने से कांग्रेस में उम्मीद जगी थी। लेकिन 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई। 2017 का चुनाव कांग्रेस ने सपा के साथ मिलकर लड़ा, लेकिन ये समीकरण भी फेल हो गया।

दलबदलुओं की बदली किस्मत
जिले की विधानसभा सीटों पर भाजपा के आठ विधायकों में पांच ऐसे हैं जो दूसरे दलों को छोड़कर भाजपा में आये और प्रत्याशी बनकर चुनाव लड़े और मोदी लहर में जीते इनमें पलिया के विधायक रोमी साहनी, गोला गोकर्णनाथ विधायक अरविंद गिरि, धौरहरा विधायक बाला प्रसाद अवस्थी और कस्ता विधायक सौरभ सिंह सोनू चुनाव के कुछ समय पहले ही बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। वहीं लखीमपुर सदर विधायक योगेश वर्मा पीस पार्टी से भाजपा में आए थे।
 

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