योगी आदित्यनाथ अगर अयोध्या से चुनाव लड़ते हैं तो इसका असर अवध क्षेत्र के साथ-साथ पूर्वांचल पर भी पड़ेगा। यह बिल्कुल वैसा ही होगा, जैसे 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने काशी से चुनाव लड़कर आसपास की कई सीटों पर चुनावी माहौल बीजेपी के पक्ष में कर दिया था।
दिव्या गौरव त्रिपाठी
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi adityanath) के चुनाव लड़ने को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। इन अटकलों के साथ ही अयोध्या (Ayodhya) के लोग बेसब्री से इसकी औपचारिक घोषणा का इंतजार कर रहे हैं। राजनीति के जानकार मानते हैं कि यूपी की सत्ता संभालने से पहले योगी आदित्यनाथ ने राम मंदिर (ram mandir) के लिए जो माहौल तैयार किया और फिर मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट (suprime court) का फैसला आने के बाद जिस तरह से अयोध्या में काम किया, उसके रिटर्न गिफ्ट के तौर पर अयोध्या की जनता उन्हें वह सीट दे सकती है। इतना ही नहीं, अयोध्या से योगी आदित्यनाथ के चुनाव लड़ने से अवध और पूर्वांचल का चुनावी गणित भी पूरी तरह से हिंदुत्व पर आधारित हो जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, यूपी में योगी आदित्यनाथ की पहचान एक हिंदुत्व के बड़े फेस के तौर पर है और यूपी की राजनीति 90 के दशक से भगवान राम के इर्द गिर्द ही घूमती रही है। खासकर मंदिर मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह से अयोध्या को संभाला और फिर वहां तेजी से काम शुरू कराया, उससे उनकी हिंदुत्व की छवि को और अधिक धार मिली। अगर योगी अयोध्या से चुनाव लड़ते हैं तो इसका असर अवध क्षेत्र और पूर्वांचल के जिलों बस्ती, संतकबीर नगर, गोंडा, सिद्धार्थनगर, बाराबंकी, कुशीनगर, गोरखपुर, बहराइच, देवरिया और महाराजगंज में पड़ना तय है।
जाति नहीं, यूपी में चल रही धर्म की राजनीति
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, यूपी में एक समय जाति की राजनीति चलती थी, यही वजह थी कि राज्य की राजनीतिक कुर्सी मुलायम और मायावती के इर्दगिर्द घूमती रही। लेकिन सोशल मीडिया आने के बाद काफी कुछ बदल गया है। जाति के सम्मान और उपेक्षा के नाम पर भले ही नेता दल-बदल कर भाजपा से दूर जा रहे हों लेकिन अगर धर्म के किसी शक्तिशाली केन्द्र से अगर योगी आदित्यनाथ को चुनावी समर में उतारा जाता है तो वोटिंग का केन्द्र काफी हद तक जाति से बदलकर धर्म पर आ जाएगा।
अयोध्या का राजनीतिक इतिहास
अयोध्या विधानसभा सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस सीट पर कब्जा किया था। 1991 से पहले तक इस सीट को कभी जनता दल तो कभी कांग्रेस ने हासिल किया लेकिन राम मंदिर की लहर ने इस सीट को भाजपा के नाम कर दिया। पहली बार भाजपा से 1991 में पार्टी उम्मीदवार लल्लू सिंह ने यहां भगवा लहराया। 2012 में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी और सपा ने इसने अपने नाम कर लिया लेकिन फिर 2017 में योगी-मोदी लहर में वेद प्रकाश गुप्ता ने यहां फिर से भाजपा का परचम लहरा दिया था।
पूर्वांचल का चुनावी गणित
विधानसभा चुनाव के छठे चरण में 03 मार्च को पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर तथा बस्ती मंडल के सातों जिलों के डेढ़ करोड़ से अधिक मतदाता अपने अपने जनप्रतिनिधियों को चुनेंगे। गोरखपुर, महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर और संतकबीर नगर जिले के एक करोड़ 54 लाख 51 हजार 251 मतदाता 41 विधानसभा सीटों के लिए अपना जनप्रतिनिधि चुनेंगे। इन सात जिलों में तीन मार्च को मतदान होगा। इसके लिए चार फरवरी से नामांकन प्रक्रिया शुरू होगी जो 11 फरवरी तक चलेगी। 14 फरवरी को नामांकन पत्रों की जांच व नाम वापसी की अंतिम तिथि 16 फरवरी है।