बस्ती के कप्तानगंज थाना परिसर में मुर्गों का जमावड़ा रहता है। यहां थाने में आने वाले हर शख्स को पहले ही चेतावनी दे दी जाती है कि वह इन मुर्गों को न ही पकड़े और न ही छुए। पुलिसकर्मी भी इन मुर्गों की सेवा करते नजर आते हैं।
बस्ती: जनपद में एक ऐसा थाना भी है जहां पर मुर्गे बधेड़क होकर घूमते हैं। कप्तानगंज थाने में आने वाले हर शख्स को पहले ही चेतावनी दे दी जाती है कि वह इन मुर्गों को न ही पकड़ेगा न ही छुएगा। यहां दारोगा और सिपाही से ज्यादा मुर्गे दिखाई देंगे। थानेदार के ऑफिस से लेकर गाड़ियों तक सभी जगहों पर मुर्गे ही मुर्गे दिखाई पड़ेंगे। इनकी रखवाली और खाने पीने का पूरा ध्यान पुलिसवाले ही रखते हैं। यहां सामने से गुजर रहे लोग भी थाना परिसर में इतनी बड़ी संख्या में मुर्गे देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं। वहीं कई लोग दूर दूर से इस थाने में मुर्गों को देखने के लिए ही पहुंचते हैं।
मुर्गों को हटाने के बाद परेशान हो गए थे थानेदार
गांव के लोग बताते हैं कि सैकड़ों सालों से यहां ऐसे ही चल रहा है। यह मुर्गे किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं और थाने की रखवाली भी करते हैं। अंग्रेजों के समय में भी यह मुर्गे यहां रहते है। इन मुर्गों को कई भी क्षति नहीं पहुंचाता है। जो भी इन्हें देखने के लिए आता है वह कुछ न कुछ लेकर भी आता है। ग्रामीण बताते हैं कि 40 साल पहले डीएम ओझा नाम के थानेदार यहां पोस्ट हुए थे। उन्होंने आते ही मुर्गों को यहां से हटा दिया। आलम यह हुआ कि बाबा ने उनको यहां रहने ही नहीं दिया। डीएन ओझा जब रात में सोते थे तो बाबा उनको कोड़ो से मारते थे और उनको बिस्तर से नीचे पटक देते थे। इसके बाद डीएन ओझा बाजार गए और वहां से ढेर सारे मुर्गे खरीदकर लाए। इसके बाद ही उनकी जान बच सकी।
मुर्गे पर मारने पर हो गया था पत्नी का निधन
थाने के चौकीदार रामलौट बताते हैं कि यहां सभी लोग मुर्गों को जानवरों से बचाते हैं और उनके खाने पीने की ध्यान भी रखते हैं। रामलौट कहते हैं कि बजुर्ग अक्सर कहा करते थे कि एक थानेदार काफी पहले यहां आए थे जिन्होंने मुर्गों को मारकर खा लिया था। उसके अगले ही दिन उनकी पत्नी का निधन हो गया। इसके बाद से मुर्गों को कई भी नहीं मारता है और न ही उन्हें परेशान किया जाता है। वह आराम से थाना परिसर में घूमते रहते हैं।
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