मैनपुरी और रामपुर में होने वाले उपचुनाव में सपा के दिग्गज नेताओं की साख दांव पर लगी है। इन दोनों ही जगहों का चुनाव परिणाम शिवपाल यादव और आजम खां का भविष्य तय करेगा।
मैनपुरी: यूपी में होने वाले उपचुनाव को लेकर लगातार तैयारी जारी है। मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव भविष्य के सियासी समीकरणों की आहट को अपने अंदर समेटे हुए है। यहां चुनाव लड़ने वाली प्रत्याशी यानी की डिंपल यादव से ज्यादा चाचा शिवपाल यादव की साख दांव पर है। उपचुनाव के जो भी नतीजे होंगे वह उनकी (शिवपाल यादव) की हैसियत को तय करेंगे। मौजूदा समय से तकरीबन सवा साल बाद होने वाले लोकसभा उपचुनाव के मद्देनजर इस बार के नतीजे काफी अहम रहेंगे।
परिवार में संघर्ष के बाद कमजोर हुई सपा
गौरतलब है कि 2017 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले समाजवादी पार्टी में परिवार के सदस्यों के बीच ही वर्चस्व का संघर्ष शुरू हुआ था। उस जंग ने पार्टी को अखिलेश का नेतृत्व तो जरूर दे दिया लेकिन समस्याएं कम नहीं हुईं। तमाम राजनीतिक जानकार भी यह कहते हैं कि उसके बाद सपा सियासी तौर पर कमजोर हुई है। चुनाव परिणामों पर भी नजर डालें तो यह साफ दिखाई पड़ता है। कन्नौज, बदायूं और फिरोजाबाद जैसी जगहों पर जो कि सपा का गढ़ होती थी वहां लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जीत दर्ज की। इसी के साथ इसी साल हुए लोकसभा उपचुनाव में पार्टी को आजमगढ़ और रामपुर सीट से भी हाथ धोना पड़ा। यह दोनों सीटे भी भाजपा के पास ही चली गईं।
मैनपुरी उपचुनाव तय करेगा शिवपाल का भविष्य
मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद पहली मैनपुरी में चुनाव हो रहा है। लिहाजा इस चुनाव में पार्टी की साख दांव पर लगी है। शिवपाल के पास मुलायम के कंधे से कंधा मिलाकर संगठन में काम करने और तमाम सियासी दांव-पेंच को करीब से देखने और समझने का अनुभव है। उनके पास यह अनुभव पार्टी के नेताओं से ज्यादा है। इसका कारण है कि वह हमेशा नेताजी के साथ रहे। माना जा रहा है कि यदि इस उपचुनाव में परिणाम सपा के पक्ष में रहता है तो हो सकता है कि अखिलेश यादव चाचा की वापसी भी सपा में करवा लें। शिवपाल यादव के सपा में वापस आने पर उन्हें प्रसपा को खड़ी करने से बेहतर महत्व मिलेगा। हालांकि यदि परिणाम विपरीत आते हैं तो शिवपाल यादव को अपना राजनीतिक वजूद बचाना भी मुश्किल हो जाएगा।
रामपुर में दांव पर है आजम की साख
मैनपुरी की तरह ही रामपुर में सपा की जीत और हार आजम खां के अस्तित्व पर सवाल बनी हुई है। यहां कई वर्षों बाद ऐसा हो रहा है जब आजम के परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा। भले ही इस उपचुनाव में आजम या उनके परिवार को कोई सदस्य चुनावी मैदान में नहीं है लेकिन साख आजम की ही दांव पर लगी है। यदि सपा को यहां से जीत मिलती है तो आजम की राजनीतिक ताकत और भी बढ़ेगी, इसी के साथ कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए उन्हें मनोवैज्ञानिक शक्ति भी मिल जाएगी। वहीं रामपुर उपचुनाव में यदि सपा प्रत्याशी हारता है तो माना जाएगा कि रामपुर में आजम के परिवार की राजनीतिक पकड़ और पहुंच कम हो गई है।
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