Inside Story: लखीमपुर खीरी के धौरहरा में नदियों में बह जाता है विकास, जानिए इस विधानसभा सीट का जमीनी हाल

धौरहरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में घाघरा तट पर बसा फिरोजाबाद धौरहरा तहसील का परगना है। यह गांव दशकों पहले कट कर खुर्द बुर्द हो चुका है।अलबत्ता राजस्व अभिलेखों में आज भी परगना फिरोजाबाद दर्ज है। घाघरा इस इलाके में डुंडकी,हटवा,साधुआपुर,मोचनापुर, भदई पुरवाऔर पलिहा आदि ग्राम पंचायतों को खत्म कर चुकी है। 

Asianet News Hindi | Published : Feb 3, 2022 3:05 PM IST

राजपूत धर्मेंद्र
लखीमपुर-खीरी : खीरी जिले की आठ में से पांच विधानसभाएं बाढ़ और कटान से प्रभावित रहते हैं। हर साल भारी तबाही मचती है। करोड़ों रुपयों का नुकसान होता है। लोगों की जानें भी जाती हैं। मगर यह समस्या कभी मुद्दा नहीं बन पाती है। चुनावों के समय बाढ़ और कटान की समस्याओं पर चर्चा जरूर होती है। पर चुनाव बीतते ही समस्याएं दब जाती हैं। जिले की धौरहरा, निघासन, पलिया, गोला और श्रीनगर विधानसभाओं में बाढ़ और कटान सालाना जलसे की तरह बन कर रह गए हैं।
धौरहरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में घाघरा तट पर बसा फिरोजाबाद धौरहरा तहसील का परगना है। यह गांव दशकों पहले कट कर खुर्द बुर्द हो चुका है।अलबत्ता राजस्व अभिलेखों में आज भी परगना फिरोजाबाद दर्ज है। घाघरा इस इलाके में डुंडकी,हटवा,साधुआपुर,मोचनापुर, भदई पुरवाऔर पलिहा आदि ग्राम पंचायतों को खत्म कर चुकी है। धौरहरा में शारदा का भी कहर कोई कम नहीं बरपा है। शारदा ने यहां मन्दूरा,मड़वा,रैनी,समदहा और चहमलपुर जैसे बड़े गांवों को देखते देखते उजाड़ दिया। घर व जमीनें कट जाने के बाद कटान पीड़ित परिवार अभी भी जहाँ तहाँ पड़े हैं।

मानसून सिर पर आता है तब बनती हैं बाढ़ राहत की कार्ययोजनाएं
धौरहरा के लोग हर बार नई सरकार बनाने की जुगत में इस उम्मीद के साथ जुड़ते हैं कि शायद इस बार सरकार बाढ़ राहत के लिए कोई ठोस कार्ययोजना बनाकर समस्याओं से निजात दिलाएगी। मगर लगता है धौरहरा क्षेत्र में बाढ़ एक समस्या नहीं बल्कि त्रासदी बन चुकी है। जिससे निजात दिलाने के नाम पर अरबों रुपए पानी में बहाए जा चुके हैं। मगर बाढ़ और कटान की समस्या जस की तस बनी हुई है।
धौरहर क्षेत्र के ईसानगर,धौरहरा और रमियाबेहड़ इलाके में शारदा और घाघरा नदियां हर साल भारी तबाही मचाती हैं। जमीनों,फसलों और घरों को निगलकर नदियां यहां के लोगों को खोखला करती जा रही हैं। नदियों को थामने के लिए बनाए गए तटबन्ध भी अधूरे पड़े हैं। तटबन्ध निर्माण अगर समय रहते पूरा हो गया होता तो त्रासदी काफी हद तक कम हो सकती थी। मगर अरबों रुपए खर्च होने के बावजूद भी बाढ़ पर लगाम नहीं लग पाई।
बाढ़ बरसात कर दिनों में रास्ते बंद हो जाने की वजह से लोगों को समय पर स्वास्थ्य सेवाएं तक नहीं मिल पाती। बाढ़ग्रस्त गांवों के स्कूल जलभराव की वजह से बन्द हो जाते हैं। जिससे नौनिहाल शिक्षा के अपने मौलिक अधिकार से वंचित हो जाते हैं। 

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धौरहरा के हालात
1- बाढ़ और कटान की वजह से ईसानगर,धौरहरा और रमियाबेहड़ ब्लॉक की करीब दो लाख की आबादी प्रभावित होती है।
2-एक अनुमान के मुताबिक करीब 300 करोड़ रुपए का हर साल फसली नुकसान होता है।
3-दर्जन भर से ज्यादा गांवों का वजूद खत्म कर शारदा और घाघरा नदियां लोगों को बेघर कर चुकी हैं।
4- दो हजार से ज्यादा परिवार सड़कों के किनारे खेत खलिहानों में भारी असुरक्षा के बीच दिन काट रहे हैं।
5-जमीनें कट जाने की वजह से पीड़ित पलायन कर शहरों में रोजगार तलाशने के लिए पलायन कर चुके हैं।

चुनौतियां
1- ऐरा पुल से शारदानगर तक शारदा नदी पर बने करीब 28 किलोमीटर लम्बे तटबंध को पूरा कराने की चुनौती सबसे बड़ी है।
2-ऐरा पुल से शारदा और घाघरा नदियों पर जालिमनगर पुल तक बने करीब 53 किलोमीटर लम्बे तटबंध के निर्माणकार्य पूरा हो जाने से खीरी को बहराइच और सीतापुर से सीधे जोड़ने की चुनौती बरकरार है।
3-विस्थापित कटान पीड़ितों को आवास उपलब्ध कराने की चुनौती सरकार के सामने खड़ी है।
4-नदियों के मुहाने पर आबाद गांवों को बचाने की चुनौती हर बार सामने होती है।
5-नदी इलाके के गांवों मर सड़कें बनाकर उन्हें मुख्य सड़कों से जोड़ने की समस्या दूर करना सरकार की चुनौती है।


क्या कहते हैं आंकड़े
1-हर साल करीब 300 करोड़ रुपए की फसलें नदियां निगलती हैं।
2-करीब 300 गांवों की दो लाख से ज्यादा की आबादी बाढ़ में फँसती है।
3-करीब 30,000 से ज्यादा युवा रोजगार की तलाश में करता है पलायन
4-बाढ़ और कटान की वजह से पूरे क्षेत्र में एक चीनी मिल को छोड़ कर नहीं स्थापित हुआ कोई दूसरा उद्योग


भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं परियोजनाएं
बाढ़ और कटान की समस्याओं से स्थाई निजात दिलाने की कोई ठोस कार्ययोजना अभी तक अमल में नहीं आ सकी है। बरसात से ठीक पहले सिंचाई विभाग/बाढ़ खण्ड राहत और बचाव कार्यों की शुरुआत करता है। काम शुरू हो पाए इससे पहले ही नदियां अपनी विनाशलीला शुरू कर देती हैं। फिर यह भी पता नहीं रहता कि काम हुआ भी या बिना काम हुए ही बजट का वारा न्यारा हो गया।

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