बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party (BSP) ने इस बार के चुनाव में ब्राह्मण वोट बैंक (Brahmin vote bank) पर अपना दांव खेला है। कांग्रेस के गढ़ अमेठी (Amethi) जिले में इस बार बसपा (BSP))ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए तीन ब्राह्मण और एक आरक्षित सीट पर अनुसूचित जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है।
दिव्या गौरव
लखनऊ: कांग्रेस के गढ़ अमेठी में सेंध लगाने के लिये बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने ब्राह्मणों पर बड़ा दांव खेला है। पार्टी ने चार विधानसभा वाले जिले में तीन ब्राह्मण और एक आरक्षित सीट पर अनुसूचित जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। जिले के चारों विधानसभा क्षेत्रों में बसपा ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखा है। जिले में फिलहाल बसपा के पास एक भी सीट नहीं है। अमेठी विधानसभा सीट से रागिनी तिवारी, गौरीगंज विधानसभा सीट से राम लखन शुक्ला, जगदीशपुर विधानसभा सीट से जितेंद्र सरोज और तिलोई विधानसभा सीट से हरिवंश कुमार दुबे को प्रत्याशी घोषित किया है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इतिहास और अमेठी और गौरीगंज सीटों पर ब्राह्मण मतदाताओं की निर्णायक स्थिति को देखते हुए बसपा ने यह दांव खेला है। पिछले चुनाव की बात करें तो बसपा ने 2007 में गौरीगंज विधानसभा सीट से जीत दर्ज की थी, उस चुनाव में बसपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी चंद्र प्रकाश मिश्र मटियारी को टिकट दिया था। ब्राह्मण और एससी वोट की गणित से बसपा यह जीत दर्ज कर सकी थी। फिलहाल इस समय चंद्र प्रकाश मिश्र मटियारी भगवा पार्टी में शामिल हो गए हैं।
छवि से बाहर निकलने की कोशिश में बसपा
बसपा ने इसके पहले भी ब्राह्मणों पर दांव खेला था लेकिन ब्राह्मण प्रत्याशी जीत नहीं दर्ज करा सके थे। हालांकि चुनाव में बसपा को मुख्य मुकाबले में लाकर खड़ा कर दिया था। मायावती की बहुजन समाज पार्टी एकबार फिर से चुनावी रण में मुख्य प्रतिद्वंदी के तौर पर रहना चाहती है। वरिष्ठ पत्रकार योगेन्द्र त्रिपाठी के मुताबिक, ब्राह्मण और पिछड़े वोटों को साधकर बसपा जिले की सीटों पर अच्छी स्थिति में रह सकती है। उन्होंने कहा कि दरअसल बसपा अपनी दलित वोटबैंक वाली छवि से बाहर निकलने की कोशिश में लगी है और इसी के लिए चुनाव के पहले अलग-अलग जाति- वर्ग के लोगों को चुनावी कमान भी संभालने को दी थी।
प्रत्याशियों के सहारे बड़ा संदेश देने की कोशिश में बसपा
त्रिपाठी ने कहा, 'चुनाव के पहले ही बसपा सभी वोटर्स को साधने में जुट गई थी। एक ओर जहां सतीश चंद्र मिश्रा ब्राह्मणों को रिझाने में लगे थे, वहीं पार्टी के मुस्लिम नेता भी अपने समुदाय को पार्टी से जोड़ने की कोशिश कर रहे थे। बसपा अब अपने प्रत्याशियों के सहारे भी यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि उसके लिए सभी जाति-धर्म के लोग बराबर हैं और वह जनता के बीच से ही प्रत्याशी का चुनाव करेगी।' हालांकि योगेन्द्र को इस बात पर शंका है कि बसपा का यह दांव कुछ काम करेगा क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस ने पहले से ही ब्राह्मण वोटर्स को साध रखा है।