कोई भी चुनाव लड़ता है तो जीत की उम्मीद के साथ लोगों से वोट भी मांगता है और पैसा भी खर्च करता है, लेकिन बरेली के काका जोगिंदर सिंह उर्फ धरती पकड़ ऐसे शख्स थे, जिन्होंने अपने जीवनकाल में 350 से ज्यादा चुनाव लड़े लेकिन सब हारने के लिए। पार्षद से लेकर राष्ट्रपति तक के चुनाव में उन्होंने नामांकन कराया लेकिन वोट कभी नहीं मांगे। वह वोटरों से कहते थे- मेहरबानी करके मुझे वोट देकर अपना वोट बर्बाद न करना। काका जोगिंदर सिंह तो अब नहीं हैं लेकिन जब-जब चुनाव आते हैं तो काका लोगों को याद आने लगते हैं।
राजीव शर्मा
बरेली: उत्तर प्रदेश के बरेली शहर के काका जोगिंदर सिंह उर्फ धरती पकड़ ने 1962 से लेकर 1998 में अपने निधन से पहले तक हर चुनाव में नामांकन कराया लेकिन महज हारने के लिए। अपनी विशेषता की वजह से उनका नाम देश भर में मशहूर है। चुनाव नगर निगम के पार्षद का हो या विधानसभा और लोकसभा का या फिर उप राष्ट्रपति और राष्ट्रपति का हो, उन्होंने अपने जीवनकाल में हर चुनाव लड़ा। कुल मिलाकर उन्होंने 36 साल में 350 चुनाव लड़े लेकिन वह सिर्फ नामांकन कराते थे और उसके बाद कोई प्रचार नहीं करते थे, सिर्फ वोटरों के बीच जाकर बोलते थे कि मुझे वोट न देना, मैंने तो हारने के लिए नामांकन कराया है। हारने के बाद काका लोगों को खुशी से मेवा और मिश्री खिलाकर मुंह भी मीठा करवाते थे।
इसलिए लड़ते थे चुनाव
हर चुनाव में काका की जमानत जब्त होती थी। वह कहते थे कि उनकी सिक्योरिटी राशि सरकार के काम आए इसलिए वह नामांकन राशि जमा करते हैं। दरअसल, हर चुनाव में नामांकन कराने के पीछे काका की मंशा चुनाव प्रक्रिया को बदलने की हुआ करती थी। उनका मानना था कि देश में इलेक्शन नहीं, सलेक्शन होना चाहिए, क्योंकि इलेक्शन से देश पर खर्चे का भारी बोझ पड़ता है और जनता के सामने सिर्फ राजनीतिक दलों के थोपे प्रत्याशी ही चुनने का अधिकार होता है। अगर जनता उनमें से किसी को नहीं चुनना चाहे तो वह कुछ नहीं कर सकती इसलिए सरकार को जनप्रतिनिधि का सलेक्शन जनता की मंशा के अनुसार करना चाहिए। न कि राजनीतिक पार्टियों के अनुसार। हालांकि लोगों का कहना था कि काका हर चुनाव इसलिए भी लड़ते थे, क्योंकि वह देश में सबसे ज्यादा चुनाव लड़ने का रिकॉर्ड कायम करना चाहते थे।
नेहरू चाहते थे काका कांग्रेस से लड़ें लेकिन उन्होंने इन्कार कर दिया
आजादी के बाद का दौर था। कांग्रेस की देश पर हुकूमत हुआ करती थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू बरेली से किसी सिख को कांग्रेस से चुनाव लड़ाना चाहते थे। इसके लिए नाम मांगे गए तो जोगिंदर सिंह का नाम भेजा गया लेकिन काका ने यह कहकर कांग्रेस से चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया कि न तो उनकी मंशा विधायक या सांसद बनने की है और न ही किसी दल से जुड़ने की।
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में भी करा दिया नामांकन
काका जोगिंदर सिंह ने एक बार राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनाव में भी अपना नामांकन करा लिया। वह राष्ट्रपति चुनाव में डॉ. शंकरदयाल शर्मा और उपराष्ट्रपति के चुनाव में केआर नारायण के खिलाफ खड़े हो गए। जबकि इन पदों पर निर्विरोध चुनाव के लिए पक्ष और विपक्ष भी उस वक्त एक मत था, लेकिन काका जोगिंदर सिंह के नामांकन कराने के बाद चुनाव निर्विरोध नहीं हो सके। हालांकि राष्ट्रपति के पद पर डॉ. शंकर दयाल शर्मा और उपराष्ट्रपति के पद पर केआर नारायण जीत गए।
कई राज्यों से लड़े थे चुनाव
काका जोगिंदर सिंह संयुक्त हिंदुस्तान के गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में 1918 में जन्मे थे। बंटवारे के बाद उनका परिवार बरेली में बस गया था। यहां बड़ा बाजार में काका की कपड़ों की दुकान आज भी है। उन्होंने पहला चुनाव बरेली शहर विधानसभा से वर्ष 1962 में लड़ा था। इसमें उनको 747 वोट मिले थे। इसके बाद वह हर चुनाव में नामांकन कराने लगे। उत्तर प्रदेश ही नहीं, किसी राज्य में लोकसभा चुनाव लड़ने को वह चले जाया करते थे। 1991 में उन्होंने हरियाणा की रोहतक व भिवानी सीट से लोकसभा चुनाव में नामांकन कराया। 1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में काका जोगिंदर सिंह ने हरदोई जिले की सभी नौ सीटों से नामांकन करा दिया।