Exclusive Story : हॉटसीट बनी है आगरा की ग्रामीण विधानसभा सीट, पूर्व राज्यपाल पर लगी है बीजेपी की साख

कड़ाके की ठंड के बीच सियासी हवाओं ने आगरा की राजनीति में गर्मी पैदा कर दी है। 2017 में क्लीन स्वीप करने वाली बीजेपी के सामने कई सीटों पर चुनौती बनी हुई है। इधर विपक्षी दलों ने अपने प्रत्याशियों को बदल कर नये जातिय समीकरण खड़े कर दिए हैं।

 

सुनील कुमार
आगरा:
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Vidhansabha Chunav) में सियासी हवाएं तेज हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में क्लीन स्वीप करने वाली बीजेपी (BJP) इस बार कशमश के दौर से जूझ रही है। खास बात यह है कि इस बार सपा (SP) और रालोद (RLD) के गठबंधन ने बीजेपी की सियासत को हाशिए पर लाकर रख दिया है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में आगरा की नौ विधानसभा सीटों पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी कई सीटों पर डगमगा रही है। इनमें आगरा की ग्रामीण विधानसभा भी शामिल है। आगरा ग्रामीण विधानसभा सीट से बीजेपी ने पूर्व राज्यपाल बेबीरानी मौर्य (Baby Rani Maurya) को प्रत्याशी बनाया है। दलित बाहुल्य इस सीट पर लगातार दो बार बीएसपी के कालीचरन सुमन (Kali Charan) विधायक रहे हैं। 2017 में उन्हें बीजेपी की हेमलता दिवाकर कुशवाह ने 65296 के मार्जिन वोटों से करारी शिकस्त दी थी। बीजेपी के सामने बीएसपी के साथ सपा-रालोठ गठबंधन और आम आदमी पार्टी के अरुण कठेरिया हैं। अरुण बीजेपी के तीन बार के सांसद रहे प्रभु दयाल कठेरिया के पुत्र हैं। इस लिहाज से इस सीट पर चुनाव दिलचस्प रहने वाला है।

आगरा की नौ विधासभा सीट पर पहले चरण में चुनाव हो जा रहे हैं। नामांकन प्रक्रिया का दौर जारी है। प्रमुख दलों के प्रत्याशियों ने लगभग अपने नामांकन पत्र दाखिल कर दिए हैं। बीएसपी और समाजवादी पार्टी ने दो सीटों पर अपने प्रत्याशी बदल दिए हैं। कुछ अन्य सीटों पर भी बदलाव के कयास लगाए जा रहे हैं। आगरा ग्रामीण सीट से बीएसपी की किरन केसरी, कांग्रेस से उपेंद्र सिंह, सपा रालोद गठबंधन से महेश जाटव, आप से अरुण कांत कठेरिया और बीजेपी से बेबीरानी मौर्य ने अपने-अपने नामाकंन दाखिल कर दिए हैं। बेबीरानी मौर्य का कहना है कि उन्हेंं एक तरफा जीत दिखाई दे रही है। दलित बाहुल्य इस सीट पर जाटव समाज का सबसे अधिक वोट बैंक है। 23 प्रतिशत आबाद एससी वोटरों की है। जिसे बीएसपी को कोर वोट बैंक माना जाता है।

त्रिकोणीय संघर्ष बना रहे जातिय समीकरण
आगरा ग्रमीण सीट में बरौली अहीर, अकोला, बिचपुरी, धनौली अजीजपुर और  नैनाना जाट छह ग्राम पंचायतें हैं। इनमें दलित (जाटव) और जाट दोनों समाज के अलग-अलग करीब 70 से 75 हजार वोट हैं। इसके अलावा बरौली अहीर और अजीजपुर आदि में यादव, लोधी, कुशवाह समेत कई पिछड़ी जातियों की आबादी है। पिछली बार हेमलता दिवाकर कुशवाह को 61.97 प्रतिशत वोट मिले थे। हेमलता दिवाकर ने बीएसपी के कालीचरण को हराया था, लेकिन इसबार रालोद और सपा के गठबंधन के चलते जाट वोटबंैक में रालोद ने सेंधमारी की है। देखने वाली बात यह है कि बीजेपी की बेबीरानी मौर्य दलित वोट बैंक में कितनी सेंधमारी कर सकती है या फिर किरन केसरी बीएसपी का पुराना इतिहास दोहराने में कहां तक कामयाब हो सकेगी। आगरा ग्रामीण सीट पर फिलहाल त्रिकोणीय संघर्ष होता नजर आ रहा है।

क्या कहती हैं बेबीरानी मौर्य
बेबीरानी मौर्य उत्तराखंड की गर्वनर रही हैं। उन्होंने 2007 में एत्मादपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के लिए चुनाव लड़ा था, लेकिन वे हार गईं। बेबीरानी मौर्य का कहना है कि उन्हेंं ग्रामीण सीट पर एक तरफा चुनाव होता हुआ दिखाई दे रहा है। दलितों के साथ अन्य जातियां भी उन्हें वोट देंगी। 2017 की तरह एक बार फिर से आगरा की सभी सीटों पर बीजेपी चुनाव जीतेगी।  

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