
लखनऊ (uttar pradesh) । राज्यसभा सदस्य व पूर्व केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा का निधन हो गया। वो बेनी बाबू के नाम से प्रसिद्ध थे और बाराबंकी के मूल निवासी थे। इस समय गोमतीनगर के विराम खंड में रह रहे थे। लोकसभा में पांच बार के सांसद रहे बेनी प्रसाद वर्मा डेढ़ माह में से बीमार चल रहे थे। बेनी प्रसाद वर्मा खरी बाते कहने के जाने जाते थे। वह अपने बेटे के लिए वर्ष 2007 में टिकट चाहते थे, लेकिन अमर सिंह की वजह से बेटे राकेश वर्मा को टिकट नहीं मिल सका। इसी वजह से नाराज होकर सपा छोड़ दी थी और समाजवादी क्रांति दल बनाया था। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए। खरी बाते कहने के कारण कांग्रेस से उनकी पटरी अधिक दिनों तक नहीं बैठ सकी थी। वर्ष 2016 में वह एक बार फिर सपा पार्टी मे शामिल हो गए थे।
किसान राजनीति के महारथी बेनी वर्मा
पिछड़े वर्ग व किसान राजनीति के महारथी बेनी वर्मा प्रधानमंत्री स्व.चौधरी चरण सिंह के भी अतिप्रिय रहे। भारतीय क्रांति दल और लोकदल में अहम पदों पर रहे बेनी प्रसाद की चुनावी राजनीति की शुरुआत वर्ष 1970 में गन्ना समिति के चुनाव से हुई। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कुर्मी समाज के क्षत्रप माने जाने वाले बेनी वर्मा पहली बार 1974 में दरियाबाद सीट से चुनाव लड़कर विधानसभा में पहुंचे और 1995 तक विधायक निर्वाचित होते रहे। इसके बाद 1996 से 2014 तक लगातार सांसद रहे।
1977 में बने थे पहली बार मंत्री
प्रदेश सरकार में पहली बार 1977 में कारागार व गन्ना मंत्री बने। केंद्र में देवगौड़ा व मनमोहन सरकार में मंत्री रहे बेनी वर्मा को कांग्रेस में खूब तवज्जो मिली। मनमोहन सरकार में इस्पात मंत्री होने के अलावा सोनिया गांधी ने उन्हें सीडब्लूसी का सदस्य भी बनाया। हालांकि, मोदी लहर के चलते बेनी 2014 के लोकसभा चुनाव में बेअसर साबित हुए और खुद चुनाव भी हार गए।
मुलायम सिंह यादव से थे गुरु भाई जैसे संबंध
सपा के संस्थापक सदस्य रहे बेनी प्रसाद वर्मा और मुलायम सिंह यादव के बीच अनूठा रिश्ता ताउम्र रूठने- मानने का रहा। दोनों ही खाटी समाजवादी नेता रामसेवक यादव की प्रेरणा से राजनीति में आए। दोनों के बीच गुरु भाई जैसे संबंध भी थे। सपा से नाराज होकर कांग्रेस में चले गए थे। जब उनका कांग्रेस से मोह भंग हुआ तो भाजपा में जाने की चर्चाएं भी चलीं। लेकिन, मुलायम के एक बार कहने पर बेनी प्रसाद वर्मा सपा में वापस लौट आए। मुलायम ने भी बेनी के तीखे बयानों और मतभेदों को भुलाकर उनको 2016 में राज्यसभा भेजने का फैसला लिया।
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