प्रयागराज में इस कुंए का दर्शन न किया तो अधूरा रह जाएगा तीर्थ पुण्य, सीधे समुद्र से है कनेक्शन

गंगा के किनारे एक खंडहरनुमा किला स्थित है। इसे उल्टा किला भी कहते हैं। इसी किले के पास एक टीले पर स्थित है समुद्रकूप। यह एक ऐसा कुंआ है जो कई हज़ार साल पुराना बताया जाता है और इसकी गहराई का आज तक अंदाजा नही लग पाया है। पुराणों में भी इस कुंए का यह वर्णन मिलता है कि इस कुंए मे सात समुद्रों का जल आकर मिलता है।

Ankur Shukla | Published : Jan 26, 2020 5:50 AM IST

प्रयागराज(UTTAR PRADESH)। प्रयागराज में संगम की रेती पर इस समय माघ मेला चल रहा है। देश के कोने-कोने से लोग यहां आकर कल्पवास कर रहे हैं। गंगा स्नान के अलावा वह यहां की ऐतिहासिक और धार्मिक विरासतों को भी देख रहे हैं। प्रयागराज की ऐसे ही एक अति प्राचीन विरासत है समुद्रकूप। समुद्रकूप से थोड़ी ही दूर पर स्थित आश्रम में रहने वाले बाबा मयंक गिरी ने समुद्रकूप के बारे में कई अहम बातें ASIANET NEWS HINDI से शेयर किया।

गंगा के किनारे एक खंडहरनुमा किला स्थित है। इसे उल्टा किला भी कहते हैं। इसी किले के पास एक टीले पर स्थित है समुद्रकूप। यह एक ऐसा कुंआ है जो कई हज़ार साल पुराना बताया जाता है और इसकी गहराई का आज तक अंदाजा नही लग पाया है। पुराणों में भी इस कुंए का यह वर्णन मिलता है कि इस कुंए मे सात समुद्रों का जल आकर मिलता है।

कुएं पर आज भी मौजूद है भगवान विष्णु के पदचिन्ह
समुद्रकूप का व्यास लगभग 22 फीट है। यह कूप पत्थरों से बना है। इस कूप के जगत पर आज भी भगवान विष्णु का पदचाप साफ देखा जा सकता है। यहां शिवजी की मूर्ति है। इस कूप को समुद्र कूप की संज्ञा दी गई है। 

द्वापरयुग में यहां था पांडवों का बसेरा
समुद्रकूप का पूरा परिसर 10 से 12 फीट ऊंची ईंट की चहारदीवारी से घिरा है। समुद्रकूप के पास एक आश्रम भी है। कहा जाता है कि द्वापर युग मे पांडव लाक्षागृह से बचने के बाद यहां आए थे और काफी समय तक निवास किया था।

राजा पुरुरवा द्वारा बनवाए जाने का भी मिलता है वर्णन
महंत मयंक गिरी ने बताया कि कहीं-कहीं ये वर्णन भी मिलता है कि कई ह़जार वर्ष पहले चंद्र वंश के पहले पुरुष राजा पुरुरवा ने इस समुद्र कूप का निर्माण करवाया था। राजा ने कई यज्ञ और अनुष्ठान के लिए सातों समुद्रों का आह्वान इस कूप मे किया था। तभी से इस कूप मे सातों समुंदरों का जल पाया जाता है। गंगा के ठीक किनारे पर होने के बावजूद भी इसका जल आज तक खारा है।

इस कुंए के जल से यज्ञ करने के बाद पांडवों को मिला था वरदान
महंत मयंक गिरी ने बताया कि मत्स्य पुराण में भी इस कूप का वर्णन मिलता है। जब द्वापर युग मे पांचो पांडव लाक्षा गृह से बच के आए थे तो उन्होंने यही पर रह कर इस कुंए के जल से अश्वमेघ यज्ञ किया था। यहीं से उनकी विजय के लिए ब्रह्मा जी ने उन्हे वरदान दिया था। पद्म पुराण मे यह वर्णन भी मिलता है कि एक मुनि ने इस कूप के बारे मे युधिष्‍ठि‍र को बताया था।

 

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