मशहूर शायर फैज अहमद फैज की नज्म हम देखेंगे की पंक्तियों को बहस छिड़ गई है। IIT कानपुर ने इसपर जांच कराने की बात कही है। आरोप है कि ये पंक्तियां हिंदू विरोधी हैं। बता दें, इस शायर की गिनती उन शायरों में होती हैं, जिन्होंने पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ हल्ला बोला था।
लखनऊ (Uttar Pradesh). मशहूर शायर फैज अहमद फैज की नज्म हम देखेंगे की पंक्तियों को बहस छिड़ गई है। IIT कानपुर ने इसपर जांच कराने की बात कही है। आरोप है कि ये पंक्तियां हिंदू विरोधी हैं। बता दें, इस शायर की गिनती उन शायरों में होती हैं, जिन्होंने पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ हल्ला बोला था। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर कौन हैं फैज अहमद फैज और कैसे बन गए वो हिंदी-उर्दू पट्टी के बेमिसाल शायर।
पाकिस्तान में हुआ था फैज का जन्म
फैज का जन्म 13 फरवरी, 1911 में पंजाब के नरोवल जिले में हुआ था। बंटवारा होने के बाद ये हिस्सा पाकिस्तान में चला गया। ये शायर के साथ पत्रकार भी रहे। ब्रिटिश आर्मी में बतौर फौजी काम सेवा दी। अपनी शायरी या गजल से इन्होंने हमेशा दबे-कुचलों की आवाज को उठाने की कोशिश की। इसी कारण इनकी लेखनी में बगावती सुर ज्यादा दिखे। देश के बंटवारे के बाद फैज पाकिस्तान में रह गए। जिसके बाद उन्होंने अपनी शायरी के जरिए पाकिस्तान की हुकूमत के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की।
4 साल जेल में रहे थे फैज, पाकिस्तान से हो गया था देश निकाला
स्थापित सरकार की बात करने वाले फैज ने 1951 में लियाकत अली खान की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला, जिसकी उन्हें सजा भी मिली। इनपर आरोप था कि कुछ लोगों के साथ मिलकर पाकिस्तान में वामदलों की सरकार लाना चाहते थे। जिसकी वजह से इन्हें 4 साल जेल में रखा गया, 1955 में बाहर आए। बाहर आने के बाद बावजूद उनका लेखन जारी रहा। जिसकी वजह से उन्हें देश से निकाल दिया गया, कई साल उन्होंने लंदन में बिताए और करीब 8 साल के बाद पाकिस्तान वापस लौटे।
क्यों लिखी थी हम देखेंगे
फैज अहमद के जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ अच्छे संबंध थे। जब वो विदेश मंत्री बने तो फैज को लंदन से वापस पाकिस्तान लाया गया और कल्चरल एडवाइजर बना दिया गया। 1977 में तत्कालीन आर्मी चीफ जिया उल हक ने पाक में तख्ता पलट किया तो फैज काफी दुखी हुए। उसी समय उन्होंने ‘हम देखेंगे’ नज्म लिखी, जो जिया उल हक के खिलाफ था। 1984 में उनका निधन लाहौर में हुआ था। बता दें, शायरी और लेखनी की वजह से फैज ने दुनिया को शांति का संदेश दिया। इस वजह से ये नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नॉमिनेट भी हुए। सोवियत संघ द्वारा इन्हें लेनिन शांति पुरस्कार भी दिया गया।
ऐसे फेमस हुई थी फैज की हम देखेंगे नज्म
फैज के निधन के बाद और ज्यादा फेमस हुए। 1985 में पाकिस्तान के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल जियाउल हक ने देश में मार्शल लॉ लगा दिया और इस्लामीकरण के चलते देश में महिलाओं के साड़ी पहनने पर पाबंदी लगा दी गई। उस समय लाहौर के स्टेडियम में एक शाम पाकिस्तान की मशहूर गजल गायिका इकबाल बानो ने 50 हजार लोगों की मौजूदगी में 'हम देखेंगे' नज्म को गाकर इसे अमर कर दिया। तब से लेकर आज तक इसे हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों मुल्कों के कई गायक अपनी आवाज दे चुके हैं।
हम देखेंगे नज्म कर कुछ लाइनें...
हम देखेंगे
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अजल में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिरां
रूई की तरह उड़ जाएंगे
हम महकूमों के पांव-तले
जब धरती धड़-धड़ धड़केगी