ब्रज में गुलाल से नहीं चप्पल मार कर खेलते है होली, दशकों पुरानी इस परंपरा के पीछे जानिए असल वजह

ब्रज के बरसाना गांव में होली एक अलग तरह से खेली जाती है जिसे लठमार होली कहते हैं। ब्रज की लठमार होली को खेलने के लिए देश विदेश से लोग जाते है। लेकिन इसके अलावा भी ब्रज के गांव में होली को अनूठे अंदाज से मनाने की दशकों पुरानी परंपरा चली आ रही है। वहां रंग-गुलाल से नहीं बल्कि चप्पल मार कर खेलते हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Mar 14, 2022 7:18 AM IST

मथुरा: होली का त्यौहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया ही जाता है लेकिन इसके अलावा ब्रज की होली तो पूरे विश्व में प्रसिध्द है। ब्रज के बरसाना गांव में होली एक अलग तरह से खेली जाती है जिसे लठमार होली कहते हैं। ब्रज की लठमार होली को खेलने के लिए देश विदेश से लोग जाते है। ब्रज में वैसे भी होली खास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़ कर देखा जाता है।

ब्रज की लठमार होली ही नहीं ब्रज का होलिका दहन देखने के लिए भी लोगों की भीड़ जुटती है। मगर, इन सबके अलावा ब्रज में होली की एक अनूठी परंपरा भी है। मथुरा के सौंख के बछगांव में रंग-गुलाल से नहीं बल्कि चप्पलों से होली खेली जाती है। इसे चप्पल मार होली के नाम से जाना जाता है। ये परपंरा कई दशकों से चली आ रही है।

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चप्पल मार होली को ऐसा जाता है खेला
मथुरा के सौंख के बछगांव में धुलेंडी के दिन बडे़-बुजुर्ग एक-दूसरे के गुलाल लगाकर होली खेलते हैं। छोटे-बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं। सुबह करीब 11 बजे के बाद हम उम्र लोग आपस में एक-दूसरे को चप्पल मारकर होली खेलते हैं। ये परंपरा दशकों से चल रही है। विशेष बात ये है कि 20 हजार की आबादी वाले इस गांव में आजतक इस परंपरा के चलते कोई भी विवाद नहीं हुआ है।

चप्पल मार होली इसलिए है खेलते
गांव के बडे़-बुजुर्ग चप्पल मार होली की परंपरा को लेकर अलग-अलग तर्क देते हैं। गांव के बुजुर्गों का कहना है कि उनके बुजुर्ग बताते थे कि चप्पल मार होली की परंपरा बलदाऊ और कृष्ण की होली से पड़ी है। होली पर कृष्ण को बलदाऊ ने प्यार से पहनी मार दी थी। इसी परंपरा को धुलेंडी के दिन बछगांव दशकों से निभाता आ रहा है। 

वहीं ब्रज के एक महाराज का कहना है कि बलदाऊ और कृष्ण घास और पत्तों से बनी पहनी पैर में धारण करते थे। इसके अलावा एक धारणा ये भी है कि गांव के बाहर ब्रजदास महाराज का मंदिर है। पहले महाराज वहां रहते थे। होली के दिन गांव के किरोड़ी और चिरंजीलाल वहां गए। महाराज की खड़ाऊ अपने सिर पर रख ली, उसके बाद उनके हालात बदल गए। बस, वहीं से चप्पलमार होली की परंपरा पड़ी।

ब्रज में होली की कई अनोखी परंपरा
लड्‌डूमार होली- बरसाना के लाड़लीजी मंदिर में लठामार होली से एक दिन पहले लड्‌डू होली होती है। इसमें लड्‌डूओं की बरसात होती है।
लठामार होली- बरसाना में हुरियारिन हुरियारों पर लठ बरसाती हैं, जिसे हुरियारे अपनी ढाल पर रोकते हैं।
छड़ीमार होली- गोकुल में छड़ीमार होली का आयोजन होता है। मान्यता है कि होली पर गोपिकाएं शरारत करने पर कान्हा को छड़ी से मारती है, जिससे उनको चोट न लगे।
कीचड़ होली- नौहझील में कीचड़ होली होती है।

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