Inside Story: मथुरा-वृंदावन सीट पर बीजेपी की जीत आसान नहीं, एसके शर्मा ने बना दिया त्रिकोणीय संघर्ष

वर्ष 2017 में मथुरा जिले की पांच सीटों में से चार पर विजयी पताका फहराने वाली बीजेपी इस बार संघर्ष के दौर से जुझ रही है। मथुरा-वृंदावन की सीट पर एसके शर्मा ने आकर चुनाव और भी दिलचस्प बना दिया है। एक लाख एक हजार 161 वोटों से जीतने वाली बीजेपी के लिए इस बार जीत की राह आसान नहीं है।

सुनील कुमार साकेत 
आगरा:
उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले की पांच विधानसभा सीटों पर पहले चरण में 10 फरवरी को मतदान होंगे। मथुरा-वृंदावन सीट (Mathura- Vrindavan   vidhansabha seat) पर कड़ा संघर्ष देखने को मिल रहा है। लंबे समय से कांग्रेस के कब्जे में रहने वाली मथुरा-वृंदावन सीट पर 2017 के चुनाव में बीजेपी ने एक लाख से अधिक मतों से विजय हासिल की थी, लेकिन इस बार जीत की राह आसान नहीं है। बीजेपी के सामने चार बार के विधायक रहे कांग्रेस के प्रदीप माथुर तो उनके सामने हैं ही, लेकिन बीएसपी से अचानक मैदान में कूदे में एसके शर्मा ने त्रिकोणीय संघर्ष पैदा कर दिया है। खास बात यह है कि सरकार में मंत्री रहने के बाद भी श्रीकांत शर्मा का कलेवर मथुरावासियों पर खास प्रभाव नहीं छोड़ पाया है। लोगों में चर्चाएं हैं कि इस बार सीट पर बदलाव संभावित है।

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मथुरा की  पांच सीटों में से चार पर जीत का परचम फहराया था। मांट से श्याम सुंदर शर्मा ने रालोद के योगेश नौहवार को हराया था। बीजेपी यहां तीसरे स्थान पर रही थी। 2017 में मांट विधानसभा सीट से बीजेपी के लिए चुनाव लडऩे वाले एसके शर्मा ने पार्टी के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया है। वे बीएसपी से मथुरा-वृंदावन सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं। एसके शर्मा बीजेपी के पुराने सिपाही हैं। ब्राह्मण बाहुल्य इस सीट पर एसके शर्मा बीजेपी के वोटरों में सेंधमारी कर सकते हैं। इधर कांग्रेस के प्रदीप माथुर अपनी पुरानी छवि को भुनाने के प्रयास में जुटे हैं।  

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कैसे हैं हालात
मथुरा के शहरी क्षेत्र में बीजेपी के वोटरों की स्थिति ठीक नजर आ रही है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बीएसपी और कांग्रेस का अच्छा वर्चश्व है। वरिष्ठ पत्रकार कपिल शर्मा का कहना है कि एसके शर्मा संघ से जुड़े हुए हैं। लंबे समय से बीजेपी में मेहनत कर रहे थे। मथुरा की मांट सीट से 2017 में उन्होंंने बीजेपी से चुनाव लड़ा था, जाट बाहुल्य सीट पर उन्हें करीब 60 हजार वोट मिले थे। पार्टी ने उन्हेंं इस बार टिकट नहीं दिया है। इसलिए वे बीएसपी से चुनाव लड़ रहे हैं। इस घटनाक्रम से उनके साथ लोगों की सहानुभूति जुड़ गई है। जाहिर है कि वे बीजेपी के कुछ फीसद वोटों को अपनी ओर छिटक सकते हैं। इधर प्रदीप माथुर लगातार तीन बार मथुरा-वंृदावन से विधायक रहे हैं। शहरी क्षेत्र में वे अपना दबदबा रखते हैं। कायस्थ और कांगे्रस के कैडर वोटरों के साथ वे मजबूत स्थिति में खड़े हैं। खबर यह भी है कि बीजेपी के प्रति लोगों में नाराजगी है। सोशल मीडिया पर भी इसका असर देखा जा रहा है।

बीजेपी और कांग्रेस में रहा कड़ा मुकाबला
धर्मनगरी मथुरा की सियासत भगवान श्रीकृष्ण की आस्था से जुड़ी है। इस सीट पर सबसे अधिक कांग्रेस और बीजेपी में कड़ा मुकाबला देखा गया है। इस सीट से सबसे अधिक कांग्रेस ने नौ बार जीत दर्ज की है। इसके बाद बीजेपी पांच बार जबकि बीएसपी, रालोद और समाजवादी पार्टी ने जीत का स्वाद ही नहीं चखा है।

क्या हैं जातिय समीकरण
मथुरा-वृंदावन सीट ब्राह्मण बाहुल्य सीट है। ब्राह्मणों वोटरों की संख्या करीब 70 से 75 हजार है। 40 से 45  हजार वैश्य, 30 से 35 हजार दलित, 20 से 25 हजार कायस्थ, 15 से 20 हजार ठाकुर और इतनी ही संख्या जाट मतदाताओं की है। इसके अलावा पिछड़ी जातियों के लगभग एक से सवा लाख वोटर हैं। मथुरा-वृंदावन सीट पर चार लाख से अधिक मतदाता हैं।  

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