Inside Story: अयोध्या व रुदौली में अब तक नही दौड़ा हाथी, हर बार करना पड़ा संतोष...जानिए क्या है कारण

2007 में बसपा की पूर्ण बहुमत की आंधी में मायावती की सरकार बनी। फिर भी जिले से दो विधायक ही विधानसभा की कुर्सी पर बैठ सके। फिर बाद के चुनाव में प्रत्याशी केवल संघर्ष करते रहे। धीरे- धीरे कार्यकर्ता भी कम होते गए। अब संगठन अपनी पुरानी धमक बनाने के लिए जूझ रहा है। इस बार के चुनाव में यह दल कुछ नया चमत्कार दिखा पाएगा। इस बात को लेकर सियासी जानकर इंतजार की मुद्रा में है।

अनुराग शुक्ला, अयोध्या 

अयोध्या जिले की पांचों विधानसभा सीटों पर बहुजन समाज पार्टी ने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। अयोध्या सदर से रवि प्रकाश मौर्या ,बीकापुर से सुनील पाठक, गोसाईगंज से राम सागर वर्मा, रुदौली से एहसान मोहम्मद और मिल्कीपुर से संतोष कुमार को मैदान में उतारा है। इतिहास के पन्ने को पलटें तोअयोध्या व रुदौली में अब तक हाथी दौड़ नही पाया है। अयोध्या में तो तीसरे नंबर पर और रुदौली में रनर रह कर संतोष करना पड़ा। यह हालत तब है जब बगल का जिला अंबेडकर नगर बसपा का गढ़ माना जाता था। 

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पूर्ण बहुमत सरकार में भी बन सके थे केवल दो विधायक
2007 में बसपा की पूर्ण बहुमत की आंधी में मायावती की सरकार बनी। फिर भी जिले से दो विधायक ही विधानसभा की कुर्सी पर बैठ सके। फिर बाद के चुनाव में प्रत्याशी केवल संघर्ष करते रहे। धीरे- धीरे कार्यकर्ता भी कम होते गए। अब संगठन अपनी पुरानी धमक बनाने के लिए जूझ रहा है। इस बार के चुनाव में यह दल कुछ नया चमत्कार दिखा पाएगा। इस बात को लेकर सियासी जानकर इंतजार की मुद्रा में है।

यह रहा कारण जिससे दूर तक नही दौड़ा हाथी
राममंदिर की लहर ऐसी चली की अयोध्या सदर में 1993 से लेकर 2012 तक भारतीय जनता पार्टी से प्रत्याशी रहे लल्लू सिंह को जनता ने पांच बार विधायक बनाया। पिछले इन चुनाव में बसपा के प्रत्याशी भी मैदान में रहे। कई वर्षों बाद 2002 के चुनाव में बसपा ने बाहुबली नेता अभय सिंह को मैदान में उतारा और वे दूसरे नंबर पर रहे। 2012 में सपा के तेज नारायण पांडे ने भाजपा के लल्लू सिंह को हराकर सीट अपने नाम दर्ज कराई। इस वर्ष में बसपा फिर तीसरे स्थान पर रही। यही हाल 2017 के चुनाव में भी रहा। दूसरी तरफ रुदौली विधानसभा क्षेत्र पर नजर डालें तो वर्ष 2002 में पहली बार बसपा दूसरे नंबर पर रही। इस वर्ष सपा के रुश्दी मियां को जीत मिली। फिर दूसरी बार के विधानसभा में यही जीत दोहराई गई ।जबकि बसपा ने प्रत्याशी बदला फिर भी। इस बार जातीय गणित के आधार पर प्रत्याशी उतारे गए हैं ।देखना यह है कि यह प्रत्याशी बसपा के खाते में कितना वोट डलवा सकते हैं।

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