
रवि प्रकाश सिंह
आजमगढ़: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले को एक समय में समाजवाद का गढ़ कहा जाता था। 2012 के विधानसभा चुनाव में भी आजमगढ़ में 10 विधानसभा सीटों में से पार्टी को 9 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन 2017 के चुनाव में पार्टी केवल 5 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को जीत दिला पाई। पार्टी के संस्थापक सदस्य और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ से सांसद चुने गए। उसके बाद वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव जी हम से चुनकर संसद पहुंचे। कुछ समय पहले अखिलेश यादव की भी आजमगढ़ के गोपालपुर विधानसभा से चुनाव लड़ने की चर्चा सुर्खियों में रही लेकिन कहीं न कहीं से पार्टी है शीर्ष नेतृत्व को यह पता चल गया कि अभी स्थितियां पहले जैसी नहीं है। क्योंकि समाजवादी पार्टी ने जब आजमगढ़ में अपने प्रत्याशियों की घोषणा की तो पार्टी के लोगों ने ही बगावत कई जगहों पर शुरू कर दी। बगावत की है शुरुआत अखिलेश यादव का लड़ना तय माना जा रहा था।
समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों ने शुरू की बगावत
गोपालपुर विधानसभा से समाजवादी पार्टी ने वर्तमान विधायक नफीस अहमद के नाम की जब घोषणा की तो इसी विधानसभा से कई बार विधायक रहे पूर्व मंत्री वसीम अहमद की पत्नी ने पार्टी के कई कार्यकर्ताओं के साथ बगावत शुरू कर दी। जिसका नुकसान 2022 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है। वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने जब फूलपुर विधानसभा से रमाकांत यादव को अपना प्रत्याशी बनाया तो एक बार फिर से समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने बगावत शुरू कर दी। लगभग 378 बूथ अध्यक्षों सहित 37 सेक्टर प्रभारियों ने सैकड़ों सदस्यों के साथ जिलाध्यक्ष को सामूहिक इस्तीफा सौंप दिया। हालांकि समाजवादी पार्टी के घोषित प्रत्याशी रमाकांत यादव का कहना है कि कौन विरोध कर रहा है कौन नहीं इस पर कोई टीका टिप्पणी नहीं करेंगे लेकिन इतना जरूर कहेंगे कि पार्टी ने जब उन्हें टिकट दिया है तो वह इस सीट पर चुनाव जीत कर दिखाएंगे। ऐसा नहीं है कि ऐसी स्थितियां केवल 2 विधानसभा में है बल्कि कई सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया है।
2022 विधानसभा चुनाव में हो सकती दिक्कत
हाल में ही बहुजन समाज पार्टी से नाता तोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए शाह आलम गुड्डू जमाली को लेकर भी बगावत होने के आसार नजर आ रहे हैं क्योंकि यहां भी समाजवादी पार्टी कई दावेदार पहले से मौजूद हैं ऐसे में यदि समाजवादी पार्टी शाह आलम को प्रत्याशी घोषित करती है तो यहां भी यही स्थिति देखने को मिल सकती है। कुल मिलाकर के आजमगढ़ में समाजवादी पार्टी के अंदर जिस तरह से पार्टी के लोगों द्वारा बगावती तेवर अपनाए जा रहे हैं या फिर अपने लोगों को आगे कर विरोध जताया जा रहा है। वह कहीं न कहीं से 2022 के विधानसभा चुनाव में दिक्कत कर सकती है। ऐसा नहीं है कि पार्टी आलाकमान को इन बातों की सूचना ना मिलती हो मुलायम सिंह यादव जब लोकसभा चुनाव आजमगढ़ से लड़ रहे थे तब भी उनके पूरे परिवार को आजमगढ़ के चुनावी मैदान में आना पड़ा इतना ही नहीं उस समय के समाजवादी पार्टी के कई कद्दावर नेता काफी समय तक आजमगढ़ में डेरा डाले रहे तब जाकर मुलायम सिंह यादव यहां से सांसद चुने गए।
वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव पिछली लोकसभा का जब चुनाव लड़ रहे थे तो सपा और बसपा के गठबंधन के खाते में वह आजमगढ़ की सदर लोकसभा से चुनाव लड़े और संसद तक का रास्ता तय किए। इन बातों से इस चीज का अनुमान लगाया जा सकता है की पार्टी को भी यहां के लोगों के बीच चल रही तनातनी की पूरी जानकारी है। हां यह अलग बात है की वर्तमान समय में पार्टी कोई नया दांव खेलकर नुकसान में नहीं जाना चाहती है। 2022 के विधानसभा चुनाव में परिणाम क्या होंगे यह तो बात की बात है लेकिन कई ऐसी सीटें हो सकती हैं जनपद समाजवादी पार्टी का कब जा रहा हूं उन सीटों से पार्टी हाथ धो बैठे।
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