INSIDE STORY: कुछ इस तरह का है अयोध्या विधानसभा क्षेत्र का जातिगत समीकरण, समझिए डिटेल में...

चुनावी गणित के जानकार पत्रकार विशाल गुप्ता मानते हैं कि शासन स्तर पर प्रस्तावित योजनाओं के प्रारूप को लेकर शहरी क्षेत्र में विकास के कार्यों से सर्वाधिक व्यापारी लोग प्रभावित हो रहे हैं। आवासीय व व्यवसायिक गतिविधियों को संचालित करने वाले आम शहरवासियों को चौड़ीकरण व विस्तारीकरण से विस्थापित होना पड़ रहा है। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 16, 2022 12:38 PM IST / Updated: Jan 16 2022, 06:14 PM IST

अनुराग शुक्‍ला
अयोध्या:
लगभग माह भर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Aditiyanath) के अयोध्या विधानसभा सीट (Ayodhya Vidhansabha Chunav) से चुनाव लड़ने के कयासों पर आखिरकार ब्रेक लग ही गया। पार्टी के प्रत्याशियों की पहली सूची ने योगी के चुनाव लड़ने की तस्वीर साफ कर दी है। योगी की सीट घोषणा के साथ अयोध्या से उनके लड़ने और फिर न लड़ने को लेकर सियासी रण में कई तरह की चर्चाएं तैर रही हैं।  सियासी गणितज्ञों के अनुसार  2012 के बाद से अयोध्या विधानसभा सीट पर भाजपा का कायम रहा तिलस्म टूट गया है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शुरू हुए राम मंदिर निर्माण के साथ ही नव्य अयोध्या को भी गढ़ा जा रहा है।

विकास की योजनाओं को लेकर प्रभावित हो रहे हैं व्यापारी
चुनावी गणित के जानकार पत्रकार विशाल गुप्ता मानते हैं कि शासन स्तर पर प्रस्तावित योजनाओं के प्रारूप को लेकर शहरी क्षेत्र में विकास के कार्यों से सर्वाधिक व्यापारी लोग प्रभावित हो रहे हैं। आवासीय व व्यवसायिक गतिविधियों को संचालित करने वाले आम शहरवासियों को चौड़ीकरण व विस्तारीकरण से विस्थापित होना पड़ रहा है। कईयों के सामने जीवनयापन की समस्या आ खड़ी हुई है। लगभग वर्ष भर से शासन व प्रशासन से राहत की गुहार लगा रहे शहरवासियों में अधिकारियों के प्रति खासा आक्रोश  है। समय-समय पर वे इसका प्रकटीकरण भी सड़क पर उतर कर करते रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में दो बार अयोध्या की दुकाने विरोध में बंद भी रही । हालांकि अभी तक शासन-प्रशासन स्तर पर उनको शांत करने का कोई फार्मूला नहीं लाया जा सका। व्यापारी नेता नंद कुमार गुप्ता बताते हैं अब चुनावी समर सामने है तो योगी के अयोध्या से उतारने में नाराज शहरवासियों का आक्रोश भारी पड़ता दिख रहा है। बता दें कि 1990 के बाद अयोध्या विधानसभा की सीट भाजपा के कब्जे में ही रही। भाजपा को विजयश्री दिलाने में शहरी मतदाताओं का हर चुनाव में विशेष योगदान रहता रहा है। भाजपा शहर से ही लीड करती रही है। सियासी पंडितों व पार्टी के अंदरखाने का मानना है कि  शहर में भाजपा के प्रति नाराजगी खासकर व्यापारी वर्ग को संज्ञान में लेते हुए नेतृत्व ने योगी को अयोध्या से उतारने से हाथ पीछे खींच लिए हैं।

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जातिगत आंकड़ें भी बिगाड़ सकते थे गणित
अयोध्या विधानसभा क्षेत्र में शहरी क्षेत्र में 70 हजार ब्राह्मण, 28 हजार क्षत्रिय मतदाता हैं। 27 हजार मुस्लिम के साथ ही 50 हजार दलित मतदाता भी हैं। इसके साथ ही शहरी क्षेत्र में यादव मतदाताओं की संख्या भी लगभग 40 हजार है। इसके साथ ही 70 हजार के करीब वैश्य, सिख सहित अन्य जातियों के मतदाता हैं। वर्ष 2012 के पूर्व यह सीट भाजपा के कब्जे में रही। 2012 के चुनाव में सपा के तेज नारायण पांडेय पवन जीते थे। भाजपा के लल्लू सिंह और बसपा के टिकट पर लड़े वेदप्रकाश गुप्ता तीसरे स्थान पर थे। इस बार योगी उतरते तो टक्कर कड़ी रहती और उन्हें मौजूदा परिदृश्य का रुख बदलने के लिए यहां पर अपना ज्यादा समय देना पड़ता, क्योंकि सपा के मौजूदा विधायक तेज नारायण पांडेय का ब्राह्मण नेता के रूप में खासा प्रभाव बना हुआ है।

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