Inside story: आगरा के दलितों को रास नहीं आ रही 'बहन जी' की सियासत, सभी सीटों पर पिछड़ रही बसपा

दलितों की नगरी आगरा में बीएसपी की स्थिति डावाडोल है। अनुभवी और तेज तर्रार प्रत्याशियों के सामने बीएसपी ने अपने नये और बाहरी रणबाकुंरों को मौका दिया है। दलितों के मुद्दों पर सियासत करने वाली बीएसपी की आगरा की सीटों पर पकड़ धीली होती दिखाई पड़ रही है। यह वजह कि बीएसपी के वोटरों में अब पहले जैसा उत्साह नहीं है।

सुनील कुमार साकेत 
आगरा:
उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती 2012 से लगातार पिछड़ रही हैं। जिन दलितों के मुद्दों पर वे सियासत करती आयीं है वे मुद्दे बीएसपी के संकल्प पत्र से भी गायब हैं। अब उनका इस कदर खामोश रहना उनके समर्थकों को अखरने लगा है। यही वजह है कि बीएसपी से दलितों का मोहभंग होता जा रहा है और वे अपना ठिकाना भी बदलने की फिराक में हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव जैसा माहौल 2022 में दिखाई पड़ रहा है। आगरा की किसी भी सीट पर बीएसपी की स्थिति खास मजबूत नहीं है। जबकि दो सीटों पर बीएसपी ने अपने प्रत्याशी बदल दिए हैं।

मोदी लहर में बदल गया दलितों का झुकाव 
आगरा को दलितों की राजधानी कहा जाता है। कभी कांग्रेस का कोर वोट माने जाने वाला दलित वर्ग कांशीराम की बीएसपी की ओर आकर्षित हो गया और इसी बल पर बीएसपी आगरा से लगातार अपने विधायक चुनती आयी, लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी का सूपड़ा साफ हो गया। बीजेपी ने आगरा की सभी नौ विधानसभा सीटों पर जीत का परचम लहराया। जिन सीटों पर लगातार बीएसपी जीतती आयी थी वहां भी बुरी तरह से पिछड़ गई। कहा जाता है कि मोदी लहर में दलितों का झुकाव बदल गया था यही वजह रही कि उत्तर प्रदेश की 86 सुरक्षित सीटों में से 70 पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया।
बाहरियों को टिकट देना कितना सार्थक

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आगरा की सभी नौ विधानसभा सीटों पर बीएसपी से चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशी अन्य दलों के प्रत्याशियों के सामने नये हैं। जबकि उत्तरी विधानसभा और एत्मादपुर विधानसभा सीट पर बाहरियों को टिकट दिया गया है। जिनमें उत्तरी से शब्बीर अब्बास को प्रत्याशी बनाया गया है जो कि लंबे समय से कांग्रेस में रहे हैं। उन्होंने एक दिन पहले कांग्रेस से इस्तीफा दिया और अगले दिन उन्हें उत्तरी से प्रत्याशी घोषित कर दिया, जबकि बीएसपी के पूर्व प्रत्याशी मुरारी लाल गोयल ने तो अपना नामांकन भी दाखिल दिया था। इधर एत्मादपुर विधानसभा सीट पर कई वर्षों से मेहनत करने वाले सर्वेश बघेल का भी टिकट काटकर बीजेपी से जिला पंचायत अध्यक्ष रहे राकेश बघेल को टिकट दिया गया, जबकि राकेश बघेल ने बीजेपी से अपना इस्तीफा भी नहीं दिया था। स्थानीय लोगों में चर्चा हैं कि बाहरियों को प्रत्याशी बनाने से उनका विश्वास पार्टी पर कम रह गया है।

2007 और 2012 में छह सीटों पर थे बीएसपी के विधायक
आगरा की नौ विधानसभा सीटों में से बीएसपी का छह सीटों पर कब्जा रहा है। 2007 में छावनी, एत्मादपुर, फतेहपुरसीकरी, फतेहाबाद, बाह और दक्षिण (तब आगरा पश्चिम) पर बीएसपी ने जीत हासिल की थी। इसके बाद 2012 के चुनाव में भी बीएसपी ने अपनी जीत बरकार रखी, लेकिन 2017 में बीएसपी शून्य पर आ गई। हालात अभी भी ऐसे ही बने हुए हैं। 

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