
कानपुर: उत्तर प्रदेश के नगर निगम चुनाव में परचम लहराने के लिए भारतीय जनता पार्टी खास रणनीति बनाकर काम कर रही है। दरअसल मुस्लिम बाहुल्य इलाको में लाभार्थी सम्मेलन के साथ-साथ बाहुल्य वार्डों में पूरी ताकत से चुनाव मैदान में उतर रही है। ऐसा माना जा रहा है कि इसमें मुकदमों में फंसे समाजवादी पार्टी के तीनों विधायक की परेशानी का फायदा बीजेपी को मिलना कंफर्म है। पहले तो मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में बीजेपी को प्रत्याशी नहीं मिलते थे लेकिन इस बार सबसे पहले मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में उम्मीदवार तय कर लिए गए है। पार्टी प्रत्याशियों की घोषणा अधिसूचना से पहले ही घोषित करने वाली है।
इन तीन सीटों पर बीजेपी ने नहीं चखा है जीत का स्वाद
राजनीतिक सलाहकारों का मनाना है कि तीन विधानसभाओं में कब्जा करने वाली समाजवादी पार्टी फिलहाल काफी कमजोर पड़ गई है क्योंकि पार्टी के तीनों विधायक कानूनी दांव पेंच में बुरी तरह से फंसे हैं। इसकी सीधा फायदा बीजेपी को मिलने वाला है। विशेषज्ञों का कहना है कि सपाई विधायकों के मुकदमेबाजी से ही भाजपा मुस्लिम बाहुल्य इलाके में पहली बार उम्मीदवार उतारने जा रही है। जानकारों का कहना यह भी है कि पिछले कुछ समय से निकाय चुनाव को लेकर सपा के राजनीतिक हमले शांत है। इसी का फायदा उठाकर भाजपा मुस्लिम इलाकों में प्रदर्शन की कोशिश में जुटी है। बीजेपी के टारगेट पर सीसामऊ, कैंट और आर्यनगर के मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है, जहां से भाजपा ने कभी जीत का स्वाद नहीं चखा है।
सपा नेता कानूनी दांव पेंच की वजह से दिख रहे निष्क्रिय
बता दें कि समाजवादी पार्टी के चार बार के विधायक इरफान सोलंकी अपने भाई रिजवान के साथ फरार चल रहे हैं। उनके खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी हो चुका है। दूसरी ओर आर्यनगर सीट से दूसरी बार चुनाव जीते अमिताभ वाजपेयी भी जमानत पर हैं। वह भी अपने मुकदमे को लेकर हाईकोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। इन दोनों के अलावा छावनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हसन रूमी के भाई शालीमार ट्रेनरी में कब्जा करने में विवादों में हैं। साफ कहा जा सकता है कि कानूनी दांव पेंच में समाजवादी पार्टी के विधायक अपनी उलझनों के चलते निष्क्रिय नजर आ रहे है और इसी का फायदा उठाने की फिराक में बीजेपी लगी हुई है। सपा के तीनों किलों को कमजोर करने में बीजेपी जोरो शोरो से लग गई है।
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