एसआइटी को कानपुर सिख दंगा मामले में मिली सफलता, 14 गवाहों ने दर्ज करवाए बयान

Published : Mar 28, 2022, 01:00 PM IST
एसआइटी को कानपुर सिख दंगा मामले में मिली सफलता, 14 गवाहों ने दर्ज करवाए बयान

सार

कानपुर में सिखों के सामूहिक नरसंहार मामले में एसआइटी की टीम लगातार जांच में लगी हुई है। इसी कड़ी में टीम पंजाब गई और अमृतसर से फिर अन्य जगहों पर जाकर गवाहों से मुलाकात की। माना जा रहा है कि कई मामलों में टीम को अहम साक्ष्य हाथ लग चुके हैं। 

कानपुर: सिखों के सामूहिक नरसंहार के मामले में पंजाब गई जांच टीम को सफलता हाथ लगी है। पंजाब गई टीम ने अमृतसर से दोबारा लुधियाना जाकर गवाहों के बयान दर्ज किए। गवाहों ने इस दौरान टीम के सामने दादानगर, निराला नगर और रतनलाल नगर में हुए हत्याकांडों की जानकारी को साझा किया।

14 मामलों में हाथ लग चुके हैं साक्ष्य  
गौरतलब है कि 31 अक्टूबर 1984 को पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी दंगे हुए थे। उस दौरान कानपुर में 127 सिखों की हत्या की गई थी। यही नहीं इस घटना को लेकर अलग-अलग थानों में लूट, डकैती और हत्या को लेकर गंभीर धाराओं में 40 मुकदमे दर्ज हुए। मामले की जांच में लगी पुलिस ने 29 मामलों  में फाइनल रिपोर्ट लगा दी। इस पूरे प्रकरण को लेकर 27 मई 2019 को प्रदेश सरकार की ओर से एसआइटी का गठन किया गया। यह टीम फाइनल रिपोर्ट लगे 20 मुकदमों की अग्रिम विवेचना कर रही है। इस दौरान 14 मामलों में साक्ष्य हाथ लगे हैं। 

अमृतसर के बाद यमुनानगर रवाना हुई टीम 
मामले में होली से पहले एसआइटी की टीम पंजाब गई थी। लुधियाना में तीन दिन रहने के बाद टीम अमृतसर भी गई। यहां टीम ने 14 गवाहों के बयान दर्ज किए। मीडिया रिपोर्ट एसआइटी सूत्रों के हवाले से बताया गया कि दादानगर में हुए 2 हत्याकांड में 8, निराला नगर मामले में 4 और रतनलाल में हुए हत्याकांड में 2 गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं। इसके बाद टीम हरियाणा के यमुनानगर के लिए रवाना हो गई। दरअसल वहां पर दादानगर का का एक गवाह रहता है जिसके बयान दर्ज किए जाएंगे।  

डेयरी संचालक हुआ बेनकाब 
सिख विरोधी दंगों में शामिल एक डेयरी संचालक भी इस दौरान बेनकाब हो गया है। दंगों में उसकी भूमिका थी। हालांकि बचाव के लिए वह वादी बन गया था। वह तकरीबन 37 साल तक पुलिस को गुमराह करता रहा। लेकिन अब एसआइटी ने उसे आरोपी बना दिया है। बताया गया कि केस में डेयरी संचालक वीरेंद्र यादव वादी था। वह घटनास्थल के सामने रहता है। जांच के दौरान जब एसआइटी के गवाहों के बयान दर्ज किए गए तो सामने आया की वीरेंद्र ही मुख्य साजिशकर्ता था जो की वारदात में भी शामिल था। लेकिन उसने खुद के बचाव के लिए प्लान तैयार किया और वादी बनकर एफआईआर दर्ज करवाई। 

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