चंद्रग्रहण के चलते काशी में टूटी 27 साल पुरानी परंपरा

27 सालों में यह तीसरा मौका था जब शाम के बजाए दिन के उजाले में गंगा आरती की गई। इससे पहले 27 जुलाई 2018 में और उससे पहले आठ अगस्‍त को भी ऐसा मौका आ चुका है।

Asianet News Hindi | Published : Jul 17, 2019 7:35 AM IST / Updated: Jul 17 2019, 01:44 PM IST

वाराणसी: चंद्र ग्रहण के सूतक के चलते काशी नगरी में घाटों पर हर दिन शाम के समय होने वाली गंगा आरती की परंपरा मंगलवार को एक बार फिर टूट गई। 27 सालों के इतिहास में यह तीसरा मौका था जब दशाश्‍वमेध समेत अन्‍य घाटों पर आरती, शाम की बजाए दिन के उजाले में हुई। सूतक काल लगते ही सभी प्रमुख मंदिरों के कपाट बंद कर दिए गए जो बुधवार को भोर में चंद्रग्रहण समाप्‍त होने के बाद खुले। 

मंगलवार रात डेढ़ बजे चंद्रग्रहण लगा और इसका सूतक काल दोपहर बाद 3.56 बजे ही शुरू हो गया था। भोर में चार बजकर 29 मिनट पर ग्रहण खत्‍म होने के बाद ही देवालय खुल गए। पौराणिक मान्‍यता के अनुसार ग्रहण के सूतक काल में देवालयों के पट बंद कर दिए जाते हैं। इसको देखते हुए मंगलवार को काशी के घाटों पर होने वाली विश्‍व प्रसिद्ध गंगा आरती के समय में भी बदलाव किया गया। गंगा सेवा निधि की ओर से दशाश्‍वमेध घाट पर आरती दोपहर तीन बजे शुरू होकर चंद्रग्रहण का सूतक काल शुरू होने से पहले समाप्‍त हो गई। देशी-विदेशी पर्यटकों समेत हजारों लोगों ने इसमें हिस्‍सा लिया। 

27 सालों में तीसरी बार आया ऐसा मौका

गंगा सेवा निधि के अध्‍यक्ष सुशांत मिश्र ने बताया कि साल 1991 में गंगा आरती का क्रम शुरू हुआ था। 27 सालों के इतिहास में यह तीसरा मौका है, जब गंगा आरती दिन में हुई। इससे पहले पिछले साल 27 जुलाई 2018 को दिन में एक बजे और उससे पहले आठ अगस्‍त को दिन में 12 बजे आरती हुई थी। मठों-आश्रमों में गुरु की पूजा भी सूतक काल लगने से पहले की गई। सावन के पहले दिन बुधवार को काशी विश्‍वनाथ मंदिर में भोर की आरती भी 2 घंटे विलंब से हुइ। इसके बाद कपाट खुलने पर श्रद्धालुओं और कांवरियों को बाबा का दर्शन और जलाभिषेक करने का मौका मिला।
 

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