काशी तमिल संगमम्: दक्षिण भारत से आए एस शंकरलिंगम निभा रहे शिक्षक की भूमिका, मिल रही नई पहचान

काशी तमिल संगमम् के उद्देश्य को एस शंकरलिंगम चरितार्थ कर रहे हैं। उनकी इस विशिष्ट कला के लिए कई बार उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है। उनकी कई पीढ़ियों से यह काम हो रहा है। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 27, 2022 6:34 AM IST / Updated: Nov 27 2022, 01:27 PM IST

अनुज तिवारी
वाराणसी:
काशी तमिल संगमम् में कुल 75 स्टाल लगाए गए हैं। जहां पर उत्तर और दक्षिण के विभिन्न सभ्यताओं और कलाओं का आदान-प्रदान हो रहा है। लेकिन इन सभी स्टालों में एक स्टार ऐसा भी है जो एक अलग पहचान बनाए हुए है। यह स्टाल तिरुअनंतपुरम के एस शंकरलिंगम का है। जिन्होंने इस काशी तमिल संगमम् के उद्देश्य को चरितार्थ किया है। उन्होंने दक्षिण की इस विशेष गुलाब की पंखुड़ियों से तैयार हुआ माला जो तिरूअनंतपुरम स्थित पद्दानाभन स्वामी मंदिर ( भगवान विष्णु का मंदिर है) में प्रतिदिन एक विशेष प्रकार की माणिक्य माला चढ़ाया जाती हैं। 

शिक्षक की भूमिका में नजर आ रहे एस शंकरलिंगम 
इस तमिल संगमम का उद्देश्य है कि दक्षिण की सभ्यता उत्तर के लोग सीखे जिसको तक चरितार्थ शंकर लिंगम कर रहे हैं। इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के 4 छात्रों को इस विशेष कला की शिक्षा दे रहे हैं। शंकर लिंगम ने बताया कि वह हर रोज काशी के माला मंडी से रूपया 500 का फूलों का एक बंडल खरीद कर लाते हैं और एक विशेष प्रकार से इसको बनाकर वह इस प्रदर्शनी में प्रदर्शित करते हैं। बड़ी खूबसूरती से गुलाब की पंखुड़ियों और पत्तियों से यह माला तैयार की जाती है। इस विशेष कला को सीखने वाले बच्चों के भी चेहरों पर खुशी है। उन्होंने कहा कि यह विशेष तरह की माला हम बनाना सीख रहे हैं हमें बहुत खुशी है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। जिससे हमें कुछ सीखने को भी मिल रहा है। 

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पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने की थी सराहना 
एस शिवलिंगम ने बताया कि उनके पिताजी द्वारा तैयार की गई इस विशेष कला को उन्होंने बचपन से ही सीखा है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने उनके परिवार के इस कला को बड़े ही सम्मान पूर्वक ग्रहण किया था और इसे सराहा भी था। कई बार वह अपनी विशिष्ट कला के लिए सम्मानित भी हो चुके हैं। माणिक्य माला के तहत शादी विवाह जय माल घर को सजाने के लिए भगवान की पालकी ही नहीं विभिन्न मंदिरों में अर्पित करने के लिए उनके इस माला की दक्षिण भारत में अधिकतम डिमांड है। परिवार के चार पीढ़ियों की परंपरा को वह आगे बढ़ा रहे हैं।

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