मैनपुरी लोकसभा और खतौली-रामपुर विधानसभा सीटों के नतीजे से बदल जाएंगी 2024 की तस्वीर, जानें पूरा समीकरण

यूपी में हुए उपचुनावों के नतीजे तो आ गए है लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2024 में चुनावी बिसात देखने को मिलेंगे। इसके साथ ही समाजवादी पार्टी का महत्व बढ़ने के साथ ही कांग्रेस, बसपा और भाजपा के लिए भी काफी चुनौतियां भी बढ़ जाएंगी। 

लखनऊ: मैनपुरी लोकसभा, रामपुर व खतौली विधानसभा सीटों के उपचुनावों के नतीजे भले ही आ गए हो लेकिन क्या इनके नतीजे 2024 में चुनावी बिसात बिछाएंगे। ऐसा माना जा रहा है कि विपक्ष के साथ सपा का महत्व बढ़ने के साथ ही कांग्रेस, बसपा और बीजेपी के लिए चुनौतियां भी बढेंगी। हालांकि भाजपा के लिए खुशी कि बात है कि पहली बार रामपुर में कमल खिलाकर कीर्तिमान तो बना ही लिया है और मुस्लिम वोटों की सियासत निरंतर घटने को लेकर भी मुहर लगा दी है।

सपा के कार्यकर्ताओं का बढ़ेगा मनोबल
इसके बाद लोकसभी की मैनपुरी सीट के जीत के संदेश के साथ चाचा-भतीजे एक हो गए है और शिवपाल ने लगभग छह साल पहले बनी अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का समाजवादी पार्टी में विलय कर दिया है। दूसरी ओर मुजफ्फरनगर की खतौली सीट भी बीजेपी की झोली से निकलकर समाजवादी पार्टी-रालोद के गठबंधन के पास चली गई। इस बात का संकेत है कि साल 2024 के मद्देनजर बीजेपी को पूरी रणनीति पर नए सिरे से सोच-विचार करना होगा। इसके कारण तीनों सीटों के राजनीतिक और सामाजिक समीकरण जिस तरह के हैं। इसी को देखते हुए भविष्य में भाजपा की रणनीतिक चुनौती बढ़ाते नजर आ रहे हैं। उपचुनाव के नतीजों से निश्यच ही निकाय चुनावों में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं का बहुत मनोबल बढ़ेगा। 

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नेताजी के निधन को लेकर मिला सहानुभूति का लाभ
उपचुनावों के नतीजों से स्थिति साफ सही है कि उपचुनाव के आधार पर साल 2024 के लोकसभा चुनाव के समीकरणों को लेकर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। बीते दिनों में लोस की गोरखपुर, फूलपुर, कैराना और विस की नूरपुर सीटों के उपचुनाव में हारने के बाद बीजेपी के 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ी सफलता हासिल करने का उदाहरण सामने है। दूसरी ओर यह भी कहा जा सकता है कि मैनपुरी सीट पर समाजवादी पार्टी को मुलायम सिंह यादव के निधन की वजह से सहानुभूति की लहर का लाभ मिला है और राजनीति में धाराणाओं का बहुत ही महत्व होता है।

बीजेपी को चुनावी रणनीति पर काम करते रहने की है जरूरत
उपचुनावों के परिणामों को देखकर इस धारणा को तो मजबूत कर ही रहा है कि लोकसभा की रामपुर, आजमगढ़ तथा विधानसभा की लखीमपुरखीरी की गोला सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी की जीत का अर्थ इसका अजेय हो जाना नहीं है। मगर अगर यह जीत मिली थी तो उसके पीछे यादव परिवार में मतभेद तथा विपक्ष के वोटों में बंटवारा था। उपचुनावों के नतीजों ने बीजेपी को चुनावी रणनीति पर लगातार काम करते रहने के साथ उसकी समीक्षा की भी जरूरत समझाई है। 

रामपुर सीट में है 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम मतदाता
इन सबके अलावा रामपुर में पचास प्रतिशत से अधिक मुस्लिम मतदाता हैं और बीजेपी की जीत के बाद मुस्लिम सियासत के भावी रुख को लेकर जिज्ञासा स्वाभाविक है। इसका कारण रामपुर जिला ही सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाला नहीं है बल्कि रामपुर सीट पर भी मुस्लिम मतदाता 50 फीसदी से भी ज्यादा हैं। इस वजह से सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या राज्य में मुस्लिम राजनीति अप्रासंगिक हो रही है। भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुत्व के कार्ड ने मुस्लिम समीकरणों को ध्वस्त कर दिया है। लग तो यह भी रहा है कि केंद्र और प्रदेश की योगी सरकार के गरीब कल्याणकारी योजनाएं और तीन तलाक जैसे फैसले मुस्लिम आबादी के बीच बीजेपी के विरोध को कम कर रहे हैं। मगर यह कहना मुश्किल है कि उनके बीच बीजेपी का समर्थन बढ़ रहा है। दूसरी ओर विरोध के कमजोर होते स्वर उन्हें बीजेपी के प्रति तटस्थ बनाते जरूर दिख रहे हैं। इस वजह से यह भी माना जा रहा है कि क्या साल 2024 तक मुस्लिम सियासत जबरजस्त करवट ले सकती है। 

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