
लखनऊ (Uttar Pradesh). एक साल पहले आज ही के दिन यानी 14 फरवरी 2019 को जम्मू श्रीनगर नेशनल हाईवे पर पुलवामा में आतंकियों ने फिदायीन हमला कर सीआरपीएफ के 40 जवानों को बम से उड़ा दिया था। इन 12 जवान यूपी के रहने वाले थे। आज एक साल बाद हम आपको कुछ शहीद जवान के परिवार की हालत के बारे में बताने जा रहे हैं।
हमले से 3 दिन पहले ड्यूटी पर लौटा था जवान
प्रयागराज के मेजा थाना क्षेत्र के टुडियार गांव के रहने वाले राजकुमार यादव सूरत में टैक्सी चालते थे। इनके 2 बेटे हैं। बड़ा बेटा महेश (26) साल 2017 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की 118 वीं बटालियन में भर्ती हुआ था। वो कहते हैं, बेटा पुलवामा हमले से 3 दिन पहले ड्यूटी पर लौटा था। जिस समय उसकी शहादत की खबर आई, उस समय मैं सूरत में टैक्सी चला रहा था। शहीद महेश की पत्नी संजू कहती हैं, जब वो छृट्टी के बाद ड्यूटी पर जा रहे थे तो उन्होंने दोनों बेटों समर और साहिल से भारत माता की जय के नारे लगवाए थे। मुझे सरकार से कुछ नहीं चाहिए। सरकार मेरे पति को वापस कर दे। मेरे बच्चे आज भी अपने पापा का इंतजार कर रहे। वो मुझसे रोज पूछते कि मां पापा कब आएंगे। एक साल बीत गए लेकिन सरकार ने आजतक कोई सुध नहीं ली। देवर भी नौकरी के लिए भटक रहे हैं। छोटी ननद संजना अभी पढ़ाई कर रहीे है।
प्रियंका गांधी ने भी किया वादा, लेकिन कुछ नहीं हुआ
उन्नाव के अजीत कुमार 21वीं बटालियन में तैनात थे। शहीद के पिता प्यारेलाल गौतम ने कहा, सरकार की ओर से जमीन, गैस एजेंसी, बेटे के नाम से स्कूल देने का वादा किया गया, लेकिन सब अधूरा है। प्रियंका गांधी ने कहा था कि बच्चों को शिक्षा हम दिलाएंगे, बाहर एडमिशन करवाएंगे। वो भी नहीं हुआ। पुलवामा हमले की ठीक तरह से जांच भी नहीं हुई। पत्नी मीना कहती हैं, नौकरी मिल गई है। मैं चाहती हूं कि किसी इंटर कॉलेज का नाम उनके नाम पर रख दिया जाए, ताकि उनका नाम चल सके। पीडब्ल्यूडी से फोन आया था कि मकान बनाकर देंगे, लेकिन कुछ नहीं हुआ।
बेटे के पूछने पर मां को बोलना पड़ता है झूठ
वाराणसी के तोफापुर गांव में रह रहे शहीद सीआरपीएफ जवान रमेश यादव के परिवार के दिलों में आज भी दर्द ताजा है। बेटा आयुष आज भी पापा के बारे में पूछता है तो उससे कहा जाता है कि पापा ड्यूटी पर हैं। शहीद के पिता श्याम नारायण कहते हैं, सरकार के मंत्रियों ने बेटे की शहादत खूब फोटो खिंचवाई, लेकिन उसके बाद फोन ही उठाना बंद कर दिया। मंत्री अनिल राजभर ने गिरवी रखी जमीन को छुड़वाने का भरोसा दिलाया था। लेकिन हमने आर्थिक राशि मिलने के बाद 2 लाख 15 हजार चुकाकर खुद छुड़वाया। पत्नी रीनू कहती हैं, सरकार ने आर्थिक मदद और मुझे सरकारी नौकरी दी है। लेकिन पति के नाम से स्मारक नहीं बना। मां राजमती ने कहा, सरकार ने 25 लाख रुपए दिए, लेकिन घर देने का वादा आज तक पूरा नहीं किया। बेटा हमले से 2 दिन पहले ड्यूटी पर वापस गया था और ह कहा था कि जल्द वापस आकर घर बनवाऊंगा।
बेटे ने कहा था वापस लौटकर बनवाऊंगा घर
आगरा के कहरई गांव के कौशल कुमार सीआरपीएफ में नायक के पद पर तैनात थे। इनकी मां सुधा रावत कहती हैं, केंद्र और राज्य सरकार से परिवार को राहत नहीं मिली। कोई मदद के लिए नहीं आया। बुजुर्ग होने के बाद बावजूद मेरी मेरी बात नहीं सुनी गई। बेटे के गम में कौशल के पिता की भी 11 जनवरी को मौत हो गई। सरकार की तरफ से 25 लाख की आर्थिक सहायता के अलावा कुछ नहीं मिला। शहीद के चाचा सत्यप्रकाश रावत ने कहा- एक साल से शहीद की पत्नी डीएम कार्यालय के चक्कर काटते काटते थक गई। लेकिन स्मारक के लिए जमीन नहीं मिली। हमनें खुद अपनी जमीन दी है, जिस पर ग्राम पंचायत विभाग द्वारा स्मारक बनवाया जा रहा है।
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