मथुरा जवाहरबाग कांड: 6 सालों बाद आज भी उस घटना को याद कर सहम जाते हैं लोग

Published : Jun 02, 2022, 02:02 PM ISTUpdated : Jun 02, 2022, 02:04 PM IST
मथुरा जवाहरबाग कांड: 6 सालों बाद आज भी उस घटना को याद कर सहम जाते हैं लोग

सार

मथुरा के जवाहरबाग कांड को याद कर आज भी लोग सहम जाते हैं। महज दो दिन के सत्याग्रह पर आए लोगों ने 2 साल के जमावड़े के बाद यहां जो कुछ भी किया उसमें 2 पुलिसकर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी इसी के साथ कई लोग घायल हुए थे।

मथुरा: पर्यावरण प्रेमियो के जहन में 270 एकड़ में फैला मथुरा का जवाहर बाग का एक अलग ही स्थान रखता है। हालांकि 2 जून 2016 को यहां कुछ ऐसा हुआ जिसे आज भी याद कर के मथुरावासी और पूरे प्रदेश के लोग सिहर उठते हैं। मथुरा में कलेक्ट्रेट के पास उद्यान विभाग की जमीन जवाहर बाग पर 2014 में आए कुछ कथित सत्याग्रहियों ने अपनी मांगों को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया। जैसे-जैसे आंदोलन के दिन बढ़ते गए वैसे-वैसै आंदोलनकारी और भी मजबूत होते चले गए। इस बीच पुलिस और प्रशासन ने जब उन पर शिकंजा कसना शुरू किया तो कथित सत्याग्रह के नाम पर कब्जा कर बैठे लोग और भी हमलावर हो गए। यह पूरा मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने जगह को खाली करने का आदेश 26 मई 2016 को दे दिया। 

एसपी सिटी और एसओ की हुई थी मौत 
कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने इस जगह को खाली करने के लिए रणनीति बनाई। फिर 2 जून 2016 को मथुरा के तत्कालीन एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी फोर्स के साथ जवाहरबाग में स्थिति का जायजा लेने के लिए पहुंचे। इस बीच कथित सत्याग्रहियों ने फोर्स पर हमला कर दिया। हमले में एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और एसओ संतोष यादव गोली लगने से शहीद हो गए। इसके बाद पुलिस और सत्याग्रहियों में फायरिंग शुरू हो गई। यहां तक सत्याग्रहियों ने कई जगहों पर आग भी लगा दी। हिंसक झड़प में दो पुलिस अधिकारियों की भी मौत हो गई और 40 पुलिसकर्मी घायल हो गए। इसी के साथ जवाबी कार्रवाई में 27 कथित सत्याग्रही भी मारे गए। 

दो दिन के सत्याग्रह पर आए लोग और दो साल तक जमे रहे 
कलेक्ट्रेट के बराबर उद्यान विभाग की भूमि जवाहर बाग पर 15 मार्च 2014 को कुछ लोग सिर्फ दो दिन के सत्याग्रह के नाम पर ही आए थे। यह लोग स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रह संगठन के थे। इन लोगों की मांग नागरिकता और संविधान बदलने की थी। इसी के साथ वह एक रुपए में 60 लीटर डीजल, पेट्रोल की मांग कर रहे थे। दो दिन के सत्याग्रह पर आए लोग यहां दो साल तक जमे रहे और जब इस जगह को खाली करने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया तो यह घटना सामने आई। इन सत्याग्रहियों का नेता रामवृक्ष यादव गाजीपुर जनपद का रहने वाला था। 

लोगों को आज भी है वो मंजर याद
जवाहरबाग कांड का जिक्र आते ही आज भी लोगों की आंखों की सामने वो मंजर आ जाता है। 2 जून 2016 को घटना से पहले दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी हाईकोर्ट के आदेश को लेकर मीडिया को जानकारी दे रहे थे। पत्रकार वार्ता के बाद वह कार्यालय चले गए और फोर्स से मीटिंग करने लगे। इसके डेढ़ घंटे बाद ही सूचना आई कि जवाहरबाग में फायरिंग हो रही है और एसपी सिटी और पुलिस फोर्स बीच में फंस गई है। मथुरा की इस घटना की गूंज चंद मिनटों में ही लखनऊ तक भी पहुंची। जनपद के सभी बड़े अधिकारियों के साथ ही लखनऊ से भी वरिष्ठ अधिकारी मथुरा के लिए रवाना हुए। उस घटना के दौरान मौजूद लोग बताते हैं कि जब जवाहरबाग जाकर देखा गया तो एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और एसओ फरह संतोष यादव गोली लगने से घायल हो गए थे। दोनों ही अधिकारियों को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। 

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