समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के पीएम बनने का सपना आज तक अधूरा है। 1996 में जब यह सपना सच होने का भी समय आया तो ऐन वक्त पर हुए बदलाव ने मुलायम को निराश कर दिया।
लखनऊ: कभी सेकेंड हैंड कार से चुनाव प्रचार में पहुंचने वाले मुलायम सिंह यादव 1989 में पहली बार यूपी के सीएम की कुर्सी पर बैठे। इसके बाद मुलायम आगे ही बढ़ते रहें और उन्होंने कभी पलटकर नहीं देखा। हालांकि उनके जीवन का एक स्वप्न है जो आज भी पूरा नहीं हुआ। यह स्वप्न कुछ और नहीं बल्कि उनके प्रधानमंत्री बनने का है। मुलायम आज भी वह दिन नहीं भूलते हैं जब वह 1996 में प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए।
कहा जाता है कि उस दौरान मुलायम के नाम पर मुहर लग चुकी थी। उनके शपथ ग्रहण से लेकर सभी कार्यक्रमों की रूपरेखा भी तैयार हो चुकी थी। हालांकि अंतिम वक्त पर एचडी देवगौड़ा को पीएम बना दिया गया। इसके पीछे लालू यादव और शरद यादव का हाथ बताया जाता था।
अखाड़ों से निकलकर राजनीति में कदम रखने के बाद मुलायम के लिए 1992 सबसे अहम साल साबित हुआ। इसी साल अक्टूबर में जहां उन्होंने समाजवादी पार्टी की स्थापना की तो वहीं दिसबंर 1992 में हुआ विवादित ढांचे का विध्वंस उनके लिए सियासी वरदान साबित हो गया।
मुस्लिम मुलायम को मानने लगे अपना नेता
नई पार्टी बनाने के बाद मुलायम ने इसे नई ऊचांईयों तक ले जाने के लिए नित नए प्रयोग किए। हालांकि विवादित ढांचे के विध्वंस का मामला भुनाने में उन्होंने खूब सफलता हासिल की। इसी के साथ मुसलमानों का एक बड़ा वोटबैंक मुलायम के खाते में जुड़ गया। यह वोटबैंक आज के समय में भी समाजवादी पार्टी के साथ जुड़ा हुआ है। भले ही 1990 में कारसेवकों पर गोली चलवाकर मुलायम पहले ही 'मौलाना मुलायम' का तबका ले चुके थे लेकिन बाबरी विध्वंस के बाद मुलायम के तमाम निर्णयों ने भी उनकी इसी छवि को ही बरकरार रखा और मुस्लिम उन्हें अपना नेता मानने लगे।
आज के समय में भी चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के समर्थक मुलायम सिंह का इंतजार करते रहते हैं। भले ही आज अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं लेकिन यह भी सच है कि कार्यकर्ता आज भी यदि किसी को उनसे ज्यादा चाहते हैं तो वह हैं मुलायम सिंह यादव।
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