
सहारनपुर (Uttar Pradesh) । यूपी का मिरगपुर गांव कई खुबियों को समेटे है। ये गांव विश्व प्रसिद्ध नगर देवबंद से आठ किलोमीटर दूर काली नदी के तट पर बसा है। इस गांव में कोई भी व्यक्ति दूध नहीं बेचता है। इतना ही नहीं इस गांव के लोग लहसुन-प्याज और शराब का सेवन भी नहीं करते हैं।
इस वजह से करते हैं ऐसा
ग्रामीणों के मुताबिक, जहांगीर के शासनकाल वर्ष 1610 में इस अनूठी परंपरा की नींव पड़ी थी, जब बाबा फकीरादास यहां आकर रुके थे। अकबर के बडे़ बेटे और उत्तराधिकारी मुगल सम्राट नुरुद्दीन मोहम्मद जहांगीर के शासनकाल में बाबा फकीरादास ने अपने शिष्यों को जेल से इसी शर्त पर रिहा कराया था कि वे कभी भी ध्रूमपान और मांसाहार का सेवन नहीं करेंगे। तब पूरे गांव ने श्रद्धापूर्वक बाबा की शर्त को स्वीकार करते हुए जो प्रतिज्ञा ली थी, आज भी गांववासी उसका पालन कर रहे हैं।
हिंदू भी बांटते हैं बाबा फकीरादास का प्रसाद
इस गांव में 90 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है। यहां बाबा फकीरादास की स्मृति में भी भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है। वेस्ट यूपी के लोग भाग लेते हैं, वहीं हरियाणा और उत्तराखंड से भी लोग पहुंचते हैं। बाबा फकीरादास की सिद्धकुटी पर मत्था टेकते हैं और मन्नत भी मांगते हैं। गांव में आए श्रद्धालुओं के लिए ग्रामीणों ठहरने और भोजन की विशेष व्यवस्था करते हैं। यहां हर घर से हलवा और पेड़े का प्रसाद वितरित किया जाता है।
बाबा फकीरा दास पर बनी है डॉक्यूमेंट्री
गांव के ही रहने वाले चौधरी वीरेंद्र सिंह ने 1990 में 30 मिनट की बाबा फकीरादास पर एक डेक्यूमेंट्री भी तैयार की थी। वह बताते हैं कि बाबा फकीरादास उपदेश देकर चले गए, लेकिन गांव के लोग आज भी उनके उपदेशों का सख्ती से पालन करते हैं। गांव का कोई भी व्यक्ति बाबा की हिदायतों का उल्लंघन नहीं करता है। इस मामले में पूरे गांव की एकजुटता एक मिसाल है।
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