
ग्रेटर नोएडा (Uttar Pradesh). आए दिन नकली नोट पकड़े जाने के मामले सामने आते रहते हैं। इसी को देखते हुए ग्रेटर नोएडा स्थित शिव नाडर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी स्याही तैयार की है, जो नकली नोटों की पहचान करने में मदद कर सकती है। यही नहीं, इसका प्रयोग आधिकारिक दस्तावेजों और रोगों का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है।
कैसे सुरक्षित है ये स्याही
शोधार्थियों के मुताबिक, यह स्याही, मौजूदा स्याही की तुलना में बेहतर सुरक्षा विशेषताओं वाली है। इसके बारे में जर्नल ऑफ फिजिक्स केमिस्ट्री सी में डिटेल जानकारी दी गई है। इसका इस्तेमाल सुरक्षा चिह्नों, आपात मार्ग चिह्नों, यातायात संकेत चिह्नों के अलावा चिकित्सा क्षेत्र में रोगों का पता लगाने के लिए कुछ विशेष जांचों में किया जा सकता है। वर्तमान में जो स्याही यूज की जा रही वो कहीं ज्यादा महंगी है। यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक देबदास रे ने कहा, नई सफेद पृष्ठभूमि वाली सुरक्षा स्याही सस्ती, जैविक संघटकों से बनाई गई है। इसका प्रयोग सूरज की रोशनी में किया जा सकता है। क्योंकि इसके संघटक पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आने पर सफेद रंग में चमकते हैं।
कैसे तैयार की गई ये नई स्याही
शोधार्थियों की मानें तो, इस स्याही को वाणिज्यिक रूप से सस्ते पॉलीमर की मदद से बनाया गया है, जिसे पोलीविनाइल अल्कोहॉल के नाम से भी जाना जाता है। इसके इस्तेमाल के बाद दस्तावेजों पर उकेरे गए चिह्नों को देखने के लिए दस्तावेजों को पराबैंगनी (यूवी) प्रकाश के संपर्क में लाने की जरूरत होती है। इसे तैयार करने में सिर्फ 45 मिनट का वक्त लगता है। प्रति ग्राम 1,000 रुपये की लागत आती है। इससे दस्तावेजों पर कोई भी आकृति जैसे कि चिह्न, तस्वीरें, बार कोड आदि उकेरे जा सकते हैं, ताकि अतिरिक्त सुरक्षा उपलब्ध कराई जा सके।
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