मदरसों से इसलिए कम हो रही मुस्लिम बच्चों की दिलचस्पी, जिम्मेदार बताते हैं कई कारण

उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या लगातार घटती जा रही है। बीते छह सालों के आकड़ों पर गौर किया जाए तो 2016 में जहां 4 लाख से अधिक छात्रों ने रजिस्ट्रेशन करवाया था वहां संख्या घटकर 93 हजार रह गई है। 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में नई पीढ़ी में युवाओं की दिलचस्पी मदरसे (Madrasa) में पढ़ने को लेकर लगातार घटती जा रही है। आंकड़े खुद ही इस बात की गवाही देते हैं। मदरसा शिक्षा परिषद के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो मुंशी-मौलवी (Munshi-Maulvi Course) यानी की सेकेंड्री तथा सीनियर सेकेंड्री क्लास में रजिस्टर्ड छात्र-छात्रों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है। बीते छह सालों के दौरान इसमें तीन लाख से ज्यादा की कमी देखी गई है।

छात्र-छात्राओं की संख्या में 6 साल में 3.30 लाख की हुई कमी  
रिपोर्टस की मानें तो वर्ष 2016 में सेकेंड्री और सीनियर सेकेंड्री क्लास में 4 लाख 22 हजार 627 छात्र-छात्राओं ने रजिस्ट्रेशन करवाया था। हालांकि इस साल यह संख्या घटकर 92 हजार रह गई है। आंकड़ों पर गौर किया जाए तो छह वर्षों में इसमें बड़ी गिरावट देखी गई है। सिर्फ छह सालों में ही इसमें 3.30 लाख की कमी दर्ज की गई है। 

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संख्या में कमी के पीछे बताई जा रही ये वजह
मदरसों में पढ़ाई करने के लिए आने वाले छात्रों की संख्या में कमी के पीछे कई वजह बताई जा रही हैं। इसमें से प्रमुख है कि यहां से मिलने वाले प्रमाण पत्र की अहमियत कम होना है। यूपी मदरसा शिक्षा परिषद की ओर से अभी तक किसी भाषा विश्वविद्यालय से अपनी संबद्धता या अपने पाठ्यक्रमों की मान्यता हासिल नहीं कर पाई गई है। जिसके कारण इसके प्रमाण पत्र को भी कोई अहमियत नहीं मिली है। घटती संख्या के पीछे यह भी अहम कारण बताया जाता है। 

मदरसों पर सख्ती, कोविड और कई अन्य कारण भी जिम्मेदार 
मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने घट रहे छात्रों की संख्या को लेकर कहा कि मदरसा बोर्ड के तहत जिन मदरसों का संचालन हो रहा है उनमें सरकार की ओर से काफी सख्ती की गई है। जो मदरसे सख्ती के चलते बंद हुए उनका भविष्य अधर में अटक गया और इसके चलते संख्या कम हुई। कोविड के चलते सभी वर्ग टूट चुका है, मदरसों में पढ़ने वाले ज्यादा बच्चे इसी परिवार से आते थे। लिहाजा उन्होंने पढ़ाई से किनारा कर काम-काज शुरू कर दिया। मदरसा बोर्ड के तहत जो मदरसे हैं उनमें प्रोफेशनली पढ़ाई हो तो इनकी हालत सुधर सकती है। यहां जो बच्चे पढ़कर निकल रहे हैं उन्हें नौकरी में कोई फायदा नहीं मिल रहा। इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है। 

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