आजम के जेल जाने पर इस अफसर ने जताई खुशी, कहा- पूरे 26 साल बाद समय ने बदली करवट

फर्जी दस्तावेज के मामले में पूर्व मंत्री व सपा के कद्दावर नेता आजम खान को पत्नी और बेटे के साथ जेल भेजे जाने पर यूपी के एक अफसर ने खुशी जाहिर की है। उत्तर प्रदेश सचिवालय संघ के एक अफसर ने खुशी जताते हुए अपना 26 साल पहले का दर्द भी बयान किया है। उस समय सूबे में सपा की सरकार थी। तब कर्मचारियों के वेतन भत्ते को बढ़ाने के लिए कर्मचारी आंदोलन पर थे। उस समय आजम खान के इशारे पर इस अफसर को जेल भेजकर उन्हें 50 दिनों तक रामपुर की जेल में बंद रखा गया था

Asianet News Hindi | Published : Feb 28, 2020 1:53 PM IST / Updated: Feb 28 2020, 07:25 PM IST

लखनऊ(Uttar Pradesh ). फर्जी दस्तावेज के मामले में पूर्व मंत्री व सपा के कद्दावर नेता आजम खान को पत्नी और बेटे के साथ जेल भेजे जाने पर यूपी के एक अफसर ने खुशी जाहिर की है। उत्तर प्रदेश सचिवालय संघ के एक अफसर ने खुशी जताते हुए अपना 26 साल पहले का दर्द भी बयान किया है। उस समय सूबे में सपा की सरकार थी। तब कर्मचारियों के वेतन भत्ते को बढ़ाने के लिए कर्मचारी आंदोलन पर थे। उस समय आजम खान के इशारे पर इस अफसर को जेल भेजकर उन्हें 50 दिनों तक रामपुर की जेल में बंद रखा गया था। 

दरअसल आजम खान व उनके परिवार के जेल भेजे जाने पर खुशी जाहिर करने वाले सचिवालय में तैनात कर्मचारी संघ के अध्यक्ष यादवेंद्र मिश्रा हैं। खाद्य विभाग के समीक्षा अधिकारी के पद पर तैनात यादवेंद्र मिश्रा ने अपनी फेसबुक वाल पर अपना दर्द बयां किया है। उन्होंने अपने साथ हुए अन्याय की दास्तां को साझा करते हुए लिखा है कि 'जो जस करई, सो तस फल पावा.' 'दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय, मरे खाल की सांस सो, सार भसम होई जाय। उन्होंने लिखा है 14 दिसंबर 1994 को मुझे गिरफ्तार कर ठण्ड की कड़कड़ाती रात में पुलिस की खुली वैन में लखनऊ से 320 किलोमीटर दूर रामपुर जेल ले जाया गया। इनके कहने पर मुझे रात 3 बजे रामपुर जेल में बंद किया गया। इनका जुल्म यहीं नहीं थमा, मुझे तन्हाई वाली 4 *7 की कोठरी में बंद रखा गया। जेल में खाने के लिए अधपकी जली रोटियां, पानी जैसी दाल, जानवरों के चारे वाली बरसीम का झलरा दिया जाता था। धान के पैरा पर लेटने और खटमल वाले कंबल से रात गुजारने पर मजबूर किया गया। पारिवारिक सदस्यों से मिलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 

पेशी के लिए रात में ही लेकर आते थे लखनऊ 
यादवेंद्र मिश्रा ने लिखा है मुझे हर 15 दिन में रामपुर से लखनऊ कोर्ट में पेशी के लिए पुलिस वाले रात में ही जेल से बाहर निकालते थे। रामपुर पुलिस एक आतंकी की तरह जेल से हाथों में हथकड़ी डाल कर मुझे लखनऊ कोर्ट में पेशी पर लाती थी। कमोबेश हर बार ऐसा ही होता था। इनके जुल्मों की क्या क्या कहानी लिखें। रामपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी, तत्कालीन जेल सुपरिटेंडेंट, तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह तक इनके इशारों पर प्रताड़ना की कोई कसर नहीं छोड़ते थे। रामपुर जेल में इनके स्थानीय कारिंदे जेल सुपरिटेंडेंट को निर्देश देते थे कि हमारे साथ किस तरह का सलूक किया जाए। 

पूरे 26 सालों बाद समय ने बदली करवट 
यादवेंद्र मिश्रा ने आगे लिखा 26 साल के बाद, समय ने एक बार फिर करवट बदली। वही पुलिस वाले, वही पुलिस की गाड़ी, कुछ वैसी ही रात। 240 किलोमीटर की यात्रा में वही दिमागी तनाव। सब कुछ एक जैसा ही। फर्क सिर्फ इतना कि हम अपनों के लिए शान से सिर उठाकर जेल गए और एक यह हैं कि सर झुकाते हुए दागदार होकर अपने कुनबे के साथ जेल भेजे गए। बदले परिवेश और 1994 की प्रदेश व्यापी हड़ताल में पीड़ा के शिकार कर्मचारियों/कर्मचारी नेताओं का मुख्यमंत्री जी से अनुरोध है कि इनके साथ भी वही सब किया जाए, जो इन्होंने दूसरों को दुःख पहुंचाने के लिए किया है। इससे जहां सचिवालय सहित राज्य कर्मचारियों के दिलों को सुकून मिलेगा वहीं कर्मचारी जगत से बड़ी दुआएं भी मिलेंगी। 

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