कभी पहलवानी की वजह से मुलायम सिंह यादव को मिली थी सीट, जानिए क्यों धरतीपुत्र के नाम से बनी पहचान

यूपी के दिग्गज नेता मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक सफर में कई अहम फैसले लिए थे। जिसके चलते वह जमीन से जुड़े नेता और धरतीपुत्र के तौर पर जाने जाते थे। मुलायम सिंह ने पिछड़ी जातियों के हित के लिए भी कई ऐतिहासिक कदम उठाए थे।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेता और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक सफर में कई विरोधियों को धूल चटाई थी। लोहियावादी नेता मुलायम सिंह अल्पसंख्यों और पिछड़ी जातियों के पैरोकार बनकर उभरे थे। उन्हें लोग धरतीपुत्र के नाम से भी जानते थे। तो आइए जानते हैं उनके एक पहलवान से धरतीपुत्र तक के इस सफर के बारे में। आखिर कब से और क्यों लोग उन्हें धरतीपुत्र ने नाम से जानने लगे। 

14 साल की उम्र में लिया था रैली में हिस्सा 
बता दें कि मुलायम सिंह हमेशा से क्रांतिकारी स्वभाव के रहे। महज 14 साल की उम्र में उन्होंने तत्‍कालीन केंद्र में बैठी कांग्रेस सरकार के खिलाफ निकाली गई रैली में हिस्सा लिया था। राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर मुलायम सिंह नहर रेट आंदोलन में भी शमिल हुए थे। वहीं इस आंदोलन का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। इसके बाद साल 1954 में उन्होंने राजनीति में अपने सफर की शुरूआत की थी। बताया जाता है कि पहले मुलायम सिंह भी पहलवान हुआ करते थे और उनके सामने आने से बड़े-बड़े पहलवान भी डरते थे। 

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पहलवानी से खुश होकर राजनीतिक गुरू ने सौंप दी अपनी सीट
मुलायम सिंह की अपने राजनीतिक गुरू से उनकी पहली मुलाकात इसी पहलवानी अखाड़े साल 1962 में हुई थी। यह राजनीतिक गुरू और कोई नहीं बल्कि चौधरी नत्‍थू सिंह यादव थे। 23 वर्ष की उम्र में मुलायम कुश्‍ती प्रतियोगिता में भाग लेने पहुंचे थे। इस दौरान वहां पर प्रजा सोशलिस्‍ट पार्टी के उम्‍मीदवार नाथू सिंह भी मौजूद थे। नाथू सिंह उनकी पहलवानी से इतना ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने मुलायम को अपेन सानिध्य में ले लिया। इसके बाद उन्होंने खुश होकर 1967 में मुलायम को अपनी सीट उपहार में दे दी। जिसके बाद मुलायम सिंह यादव ने जसवंत नगर से इलेक्‍शन लड़ा और इसमें जीत हासिल की। चुनाव के समय मुलायम की उम्र 28 साल की थी। 

पिछड़ी जाति के लोगों को शादी में किया था आमंत्रित
इस दौरान वह सबसे कम उम्र वाले विधायक बन गए। नाथू सिंह ने ही मुलायम को डॉ राम मनोहर लोहिया से मिलवाया था। जब 1967 में छुआछूत जातीय व्‍यवस्‍था अपने चरम पर थी तब मुलायम ने इसका खुलकर विरोध किया था। वह अपने गांव जाते तो लोगों से मुलाकात करते थे और उन्हें पहलवानी के गुर भी सिखाते थे। छुआछूत और जातीयता की जड़ से मिटाने के लिए मुलायम सिंह ने कुछ ऐतिहासिक कदम भी उठाए थे। वहीं जब वह सहकारिता मंत्री थे तो समाज से छुआछूत मिटाने के लिए उन्होंने सैफई गांव में अपने छोटे भाई की शादी में बाल्मिकी और दलित समाज को भी आमंत्रित किया था। इतना ही नहीं इस समाज के लोगों को मुलायम सिंह ने अपने गले भी लगाया था और सबको सामने बैठाकर भोजन करवाया था। 

इसलिए मिली थी धरतीपुत्र की उपाधि
जब साल 1966 में वह राज्य मंत्री बने थे तो अनुसूचित जातियों के लिए सीटें भी आरक्षित करवाई थी। दलितों और पिछड़ों को सम्मान देने पर मुलायम को भी पिछड़ी जातियों का जमकर सहयोग मिला। इससे उनके राजनीतिक करियर को भी काफी फायदा मिला। इसके बाद जसवंतनगर सीट पर 1968,1974 और 1977 में हुए मध्‍यावधि चुनाव में मुलायम को जीत हासिल की। जब मुलायम ने सर्वहारा के हितों के लिए आवाज उठाई तो लोगों द्वारा उन्हें धरतीपुत्र की उपाधि दी गई। मुलायम सिंह की समाजवादी विचारधार और जनता में अच्छी पकड़ ने की उन्हें यूपे के सीएम की कुर्सी तक पहुंचाया था।  

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