Special Story: आज भी अजेय हैं रघुराज प्रताप सिंह 'राजा भैया', पिता की मर्जी के खिलाफ राजनीति में रखा था कदम

यूपी में दबंग नेताओं की कोई कमी नहीं है। इसी कड़ी में आज हम बात भदरी रियासत से संबंध रखने वाले राजा भैया की करेंगे। राजा भैया अपने परिवार के पहले वह सदस्य है जो राजनीति में आए हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 24 वर्ष की आयु में की थी। इसके बाद से आज तक राजा भैया अजेय हैं। 

गौरव शुक्ला

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में हर बार की तरह इस  बार भी दबंग नेताओं की कोई कमी नहीं है। अपने क्षेत्र में दबदबा रखने वाले यह बाहुबली चुनाव में बहुत ही आसानी से जीत दर्ज कर लेते हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक बाहुबली के बारे में बताने जा रहे हैं। पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया भदरी रियासत से संबंध रखते हैं। उनके पिता उदय प्रताप सिंह भदरी के ही महाराज हैं। राजनीति में आने वाले राजा भैया अपने परिवार के पहले सदस्य हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत 24 वर्ष की आयु से ही कर ली थी।

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आसान नहीं था अजेय राजनीतिक सफर 
भले ही राजा भैया आज के समय में उत्तर प्रदेश की राजनीति का प्रमुख चेहरा हैं लेकिन उनका यह सफर इतना आसान नहीं था। उनके पिता नहीं चाहते थे कि वह (रघुराज प्रताप सिंह) राजनीति में आएं। लेकिन कहा जाता है कि होता वही है जो किस्मत को मंजूर होता है। यहां भी ऐसा ही हुआ। राजा भैया ने जब अपने पिता से चुनाव लड़ने की इजाजत मांगी तो उन्होंने गुरुजी से इजाजत लेने को कहा। इसके बाद ही राजा भैया का अजेय राजनीतिक सफर शुरू हुआ।

1993 में रखा राजनीति में कदम
रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया का जन्म 31 अक्टूबर 1969 को प्रतापगढ़ की भदरी रियासत में हुआ था। उनके पिता का नाम उदय प्रताप सिंह और माता का नाम मंजुल राजे है। उनका मां भी राजसी परिवार से ही आती हैं। शायद बहुत कम लोगों को पता होगा लेकिन राजा भैया को एक अन्य नाम से भी जाना जाता है। यह नाम है तूफान सिंह। 1993 में विधानसभा चुनाव में राजा भैया ने राजनीति में कदम रखा और उसके बाद से लगातार वह विधायक रहे हैं। फिलहाल अब तो उन्होंने अपनी पार्टी भी बना ली है। राजा भैया ने 30 नवंबर 2018 को जनसत्ता दल लोकतांत्रिक नाम की पार्टी का गठन किया। पार्टी को चुनाव आयोग ने 'आरी' चिन्ह आवंटित किया है। 

6 चुनावों में जीत दर्ज की जीत 
प्रतापगढ़ की कुंडा विधानसभा सीट से राजा भैया जब से चुनाव लड़ रहे हैं तब से अजेय हैं। 1993 से 2017 तक हुए सभी 6 चुनाव में वह जीत दर्ज करते रहे हैं। 1993 के चुनाव में राजा भैया ने सपा उम्मीदवार को 67 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था। वहीं 2017 के चुनाव में उन्होंने 1 लाख 36 हजार से भी अधिक वोटों से भाजपा के जानकी शरण को हराया। समय के साथ ही राजा भैया के जीत के वोटों का अंतर भी बढ़ता जा रहा है। हालांकि 2007 में यह फासला काफी कम दिखाई देता है जब उन्होंने बसपा के शिव प्रकाश को 53 हजार से अधिक वोटों से शिकस्त दी थी। 

विवादों से है पुराना नाता 
रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया का विवादों से पुराना नाता रहा है। जिस दौरान बसपा सरकार सत्ता में आई तो राजा भैया पर पोटा कानून लगा दिया गया और उन्हें जेल तक भेज दिया गया। 2003 में मायावती सरकार ने ही भदरी में उनके पिता के महल और बेंती कोठी पर भी छापेमारी करवाई थी। हालांकि इसके बाद 2012 में जब सपा सरकार बनी तो राजा भैया मंत्रिमंडल में शामिल हुए। 

मंत्रिमंडल से देना पड़ा इस्तीफा 
जिस दौरान राजा भैया सपा सरकार में मंत्री थे उसी समय कुंडा में एक हाईप्रोफाइल मर्डर हुआ। डिप्टी एसपी जिया उल-हक की हत्या में राजा भैया का नाम भी खूब उछला। इसी घटना के बाद रघुराज प्रताप सिंह को अखिलेश मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि सीबीआई जांच में राजा भैया को इस मामले में क्लिनचिट मिल गई। 

तालाब के खौफनाक किस्से को राजा भैया कहते हैं दिवालियापन 
रघुराज प्रताप सिंह की बेंती कोठी को लेकर कहा जाता है कि उसके पीछे 600 एकड़ का तालाब है। इस तालाब में जुड़े कई खौफनाक किस्से भी सामने आए हैं। बताया जाता है कि राजा भैया ने उस तालाब में घड़ियाल पाल रखे थे। कथिततौर पर दुश्मनों को मारकर उसी तालाब में फेंक दिया जाता था। हालांकि राजा भैया इन किस्सों को मानसिक दिवालियापन बताते हैं।

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