रिक्शा चालक बना राष्ट्रीय बॉक्सर, पिता है मिस्त्री, ये है संघर्ष की कहानी

अमर बताते हैं कि वह जब चार वर्ष के थे, तब मैदान में खिलाडिय़ों को देखना बहुत अच्छा लगता था। तभी उनके मन में भी बॉक्सिंग करने की लालसा जगी। दो वर्ष पहले उन्होंने पालिका स्टेडियम में भगवानदीन की क्लास में निःशुल्क प्रशिक्षण लेना शुरू किया। बहुत जल्द सफलता उनके कदम चूमने लगी। वह कई स्टेट बॉक्सिंग प्रतियोगिताओं में पदक जीत चुके है। 
 

कानपुर (Uttar Pradesh)। राष्ट्रीय बॉक्सर अमर कुमार अब कोलकाता में चल रही राष्ट्रीय आमंत्रण बॉक्सिंग प्रतियोगिता में पदक के लिए जोर-अजमाइश करते नजर आएंगे। बता दें कि 20 वर्षीय ये राष्ट्रीय बॉक्सर आज भी ग्वालटोली बस्ती में छोटे से घर में रहता है। पिता सूरज कुमार मिस्त्री हैं। परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए अमर भी पिता के साथ मजदूरी किया और बचे समय में ई-रिक्शा चलाकर पैसा कमाते थे, लेकिन उन्होंने अपना हुनर दबने नहीं दिया और आज राष्ट्रीय बॉक्सर बन गए हैं।

चार साल की उम्र में जागी थी इच्छा
अमर बताते हैं कि वह जब चार वर्ष के थे, तब मैदान में खिलाडिय़ों को देखना बहुत अच्छा लगता था। तभी उनके मन में भी बॉक्सिंग करने की लालसा जगी। दो वर्ष पहले उन्होंने पालिका स्टेडियम में भगवानदीन की क्लास में निःशुल्क प्रशिक्षण लेना शुरू किया। बहुत जल्द सफलता उनके कदम चूमने लगी। वह कई स्टेट बॉक्सिंग प्रतियोगिताओं में पदक जीत चुके है।

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बिना रिंग व बॉक्सिंग ग्लब्स तय कर रहे मुकाम
कोच भगवानदीन के मुताबिक प्रतिभा संसाधन की मोहताज नहीं होती। पालिका स्टेडियम में बिना ङ्क्षरग के लिए गरीब तबके के खिलाड़ी स्टेट व राष्ट्रीय बॉक्सिंग में जलवा दिखा रहे है। अधिकारियों से कई बार गुजारिश करने के बाद भी कोई मदद के लिए सामने नहीं आया।

बॉक्सिंग में हासिल कर चुके हैं पदक
कोच भगवानदीन ने बताया कि अमर 54 से 57 किलोग्राम भार वर्ग में प्रदेश के बेहतर खिलाडिय़ों में शुमार है। उसके पंच करने की स्टाइल व कदमताल बाउट में बेहतर बनाते। प्रतियोगिताओं में अटैक करते हुए पीछे न हटने के विश्वास उसे इस लायक बनाया। अमर ने गोरखपुर व सहारनपुर स्टेट बॉक्सिंग में पदक हासिल कर शहर को एकमात्र पदक दिलाया था।

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