मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में अहम होगी शाक्य वोटरों की भूमिका, जानिए क्या है 'यादवलैंड' का पूरा समीकरण

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद यूपी की मैनपुरी संसदीय सीट पर होने जा रहे उपचुनाव में शाक्य वोटरों की भूमिका सबसे अहम मानी जा रही है। बता दें कि यादव बाहुल्य मैनपुरी संसदीय सीट यादवों मतदाताओं के बाद दूसरा नंबर शाक्य वोटरों का है।

मैनपुरी: सपा संस्थापक और पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई यूपी की यादव बाहुल मैनपुरी संसदीय सीट पर होने जा रहे उपचुनाव के दौरान शाक्य मतदाताओं की भूमिका सबसे अहम हो गई है। बता दें कि मैनपुरी संसदीय सीट पर करीब 17 लाख मतदाता है। जिनमें से करीब साढ़े चार लाख केवल यादव मतदाता है। वहीं दूसरे नंबर पर शाक्य मतदाताओं का नंबर है। शाक्य मतदाताओं की संख्या करीब तीन लाख के करीब है। वहीं सपा ने मैनपुरी संसदीय सीट के चुनाव की घोषणा के साथ ही आलोक शाक्य को अपना जिला अध्यक्ष घोषित कर दिया। बता दें कि आलोक शाक्य तीन बार विधायक और एक अखिलेश सरकार में मंत्री पद पर रह चुके हैं।

शाक्य मतदाताओं को किया जा रहा रिझाने का प्रयास
वहीं सपा के इस दांव को उपचुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। यहां पर यादवों के बाद सबसे अधिक शाक्य मतदाता है। ऐसे में समाजवादी पार्टी द्वारा लिए गए इस फैसले को शाक्य मतदाताओं को रिझाने का प्रयास माना जा रहा है। बता दें कि वर्ष 2002, 2007 और 2012 में आलोक शाक्य भोगांव विधानसभा सीट पर लगातार तीन चुनाव जीते थे। वहीं दो बार उनके पिता रामऔतार शाक्य भी विधायक रहे थे। मैनपुरी लोकसभा सीट पर पिछड़ा वर्ग के वोटरों की बहुलता है। जिसमें से करीब 45 फीसदी यादव समाज के मतदाता हैं तो वहीं उसके बाद शाक्य वोटरों का नंबर आता है। जातीय समीकरण के चलते शाक्य मतदाताओं का समर्थन लोकसभा उपचुनाव में कफी महत्वपूर्ण है। 

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भाजपा आजमा चुकी है ये रणनीति
इससे पहले वर्ष 2014 के उपचुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा भी इस रणनीति को आजमा चुकी है। बीजेपी ने उपचुनाव और लोकसभा चुनाव के दौरान प्रेम सिंह शाक्य को अपना प्रत्याशी बनाया था। वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नेताजी के निधन के बाद मैनपुरी संसदीय सीट के उपचुनाव में इस समय शाक्य वोटर सबसे अहम रोल में आ गए हैं। जहां एक ओर सत्ताधारी पार्टी भाजपा शाक्य वोटर के भरोसे कमल खिलाने की जुगत में जुटी है तो वहीं दूसरी ओर सपा भी शाक्य वोटरों से अपनी निकटता का दावा करते हुए अपनी विरासत को बचाने की बात कह रही है। ऐसे में भले ही मैनपुरी संसदीय सीट को यादव बाहुल्य माना जाता हो। लेकिन इस उपचुनाव में शाक्य वोटर सबसे अधिक चर्चा में बने हुए हैं। 

सपा-भाजपा में है कड़ी टक्कर
भाजपा की राज्यसभा सांसद गीता शाक्य का कहना है कि राज्यसभा सदस्य बनने के बाद वह अपनी जाति के 9 फीसदी वोटरों को भाजपा के पक्ष में करने में जुटी हैं। आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने शाक्य बाहुल इलाके से इस जाति के किसी भी व्यक्ति को राज्यसभा नहीं भेजा। लेकिन भाजपा ने गीता शाक्य को यह सम्मान दिया। वहीं भाजपा ने मैनपुरी संसदीय सीट से रघुराज शाक्य को मैदान में उतारा है। ऐसे में शाक्य वोटर भाजपा के साथ खड़ा हो गया है। वहीं अगर राज्यसभा सांसद गीता शाक्य का कहना है कि यहां से भाजपा प्रत्याशी का जीतना तय है। नेताजी के निधन के बाद भाजपा सपा के सबसे मजबूत दुर्ग में ‘जीतनीति’ पर काम कर रही है। भाजपा ने जातीय समीकरण पर ध्यान देते हुए शाक्य उम्मीदवार को टिकट देने को वरीयता दी है। वहीं सपा नेताओं का मानना है कि मुलायम सिंह के निधन के बाद डिंपल के खाते में सहानुभूति लहर का वोट जाएगा।

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