
लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की कॉर्पोरेट कल्चर वाली टीम की रणनीति ने पूरी लुटिया डुबो दी है। पार्टी का युवाओं में जोश और वोट बैंक जरूर बढ़ा, लेकिन आंकड़े बहुमत तक नहीं पहुंच पाए। ऐसे में कुछ पुराने समाजवादियों का कहना है कि सपा को फिर से मुलायम सिंह यादव वाली रणनीति ही अपनानी होगी।
गौरतलब है कि पार्टी में पहले भी भीतरखाने यह चर्चा रही है कि शीर्ष नेतृत्व के आसपास गैर सियासी अनुभव वाली टीम का घेरा है। यह वही टीम है जिसका जनता से कोई सरोकार नहीं है। कॉर्पोरेट कल्चर में विश्वास रखने वाले इन लोगों की बात पर ही विश्वास कर पार्टी ने बीते दिनों कई रणनीति बनाई जो चुनाव में पूरी तरह से सफल साबित नहीं हुईं।
सूत्र बताते हैं कि इस टीम को पहले से ही यह पता चल गया था कि पार्टी का क्या हाल होने वाला है। बावजूद इसके टीम ने वरिष्ठ नेताओं और जनता से मिल रहे फीडबैक को राष्ट्रीय अध्यक्ष तक पहुंचाया ही नहीं। वहीं वरिष्ठ नेताओं ने इस घेरे को तोड़ने का प्रयास इसलिए नहीं किया क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें देर सबेर खामियाजा भुगतना पड़ता। वहीं कुछ नेताओं ने जब फीडबैक देने का प्रयास किया तो उन्हें शीर्ष नेतृत्व से मिलने पर पाबंदी लगा दी गई।
2012 में जीत के बाद शुरू हुआ था कॉर्पोरेट कल्चर
समाजवादी पार्टी में कार्पोरेट कल्चर की शुरुआत 2012 से हुई थई। गैर सियासी अनुभव वाले लोगों का घेरा बनते है सपा की सत्ता से दूरी बढ़ती चली गई। जानकार यही कारण बता रहे हैं जिसके चलते सपा बसपा और कांग्रेस के साथ गठबंधन के बावजूद बीते चुनावों में करिश्मा नहीं कर पाई। टिकटों की अदला-बदली में भी इस टीम का बड़ा खेल बताया जाता है। हालांकि पुराने समाजवादी इस टीम से फायदा कम और नुकसान ज्यादा बता रहे हैं।
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