'स्कूल ऑफ राम' ने शुरू की एक अनोखी मुहिम, एक पुस्तक के बदले मिलेगी रामायण में प्रबंधन की शिक्षा

इस पाठ्यक्रम की सबसे खास बात यह होगी की इसका हिस्सा बनने के लिए कोई शुल्क नहीं देना होगा। कोई व्यक्ति, किसी भी आयुवर्ग के महिला-पुरुष इस पाठ्यक्रम का हिस्सा बन सकते हैं। इस पाठ्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए प्रतिभागियों को किसी नियत शुल्क की बजाय रामायण,रामकथा या भगवान राम से सबंधित कोई भी एक पुस्तक स्कूल ऑफ राम को भेंट करनी होगी। तत्पश्चात वे इस कोर्स का हिस्सा बन पाएंगे।

अनुज तिवारी

वाराणसी: शास्त्रों में लिखा है धारयती इति धर्मम् अथार्त "धर्म" शब्द की उत्पत्ति "धारण" शब्द से हुई है जिसे धारण किया जा सके वही धर्म है। यह धर्म ही है जिसने समाज को धारण किया हुआ है। अतः यदि किसी वस्तुमें धारण करने की क्षमता है तो निस्सन्देह वह धर्म है। इसी भाव को आत्मसात करते हुए भगवान श्री राम के आदर्शों एवं रामायण के संस्कारों को अभिनव तरिकों से जन-जन तक लेकर जाने के उद्देश्य से शुरू हुए विश्व के पहले वर्चुअल विद्यालय स्कूल ऑफ राम द्वारा आगामी दिनों में रामायण में प्रबंधन की शिक्षा दी जाएगी। स्कूल ऑफ राम के संस्थापक,संयोजक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्यनरत विद्या भारती के पूर्व छात्र प्रिंस तिवाड़ी ने बताया कि स्कूल ऑफ राम 24 मार्च को अपना एक वर्ष पूरा करेगा। और इस पहले स्थापना दिवस को और खास बनाने के लिए स्कूल ऑफ राम ने रामायण में प्रबंधन नामक एक माह के प्रमाणपत्रीय कार्यक्रम की शुरुआत करने जा रहा है।

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इस पाठ्यक्रम की सबसे खास बात यह होगी की इसका हिस्सा बनने के लिए कोई शुल्क नहीं देना होगा। कोई व्यक्ति, किसी भी आयुवर्ग के महिला-पुरुष इस पाठ्यक्रम का हिस्सा बन सकते हैं। इस पाठ्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए प्रतिभागियों को किसी नियत शुल्क की बजाय रामायण,रामकथा या भगवान राम से सबंधित कोई भी एक पुस्तक स्कूल ऑफ राम को भेंट करनी होगी। तत्पश्चात वे इस कोर्स का हिस्सा बन पाएंगे। प्रिंस ने बताया कि हम एक ऐसा रामायण ग्रंथालय तैयार करना चाह रहे हैं जिसमें विश्वभर की सभी भाषाओं में लिखित रामकथा,रामायण,भगवान राम से जुड़ी सभी पुस्तकें संग्रहित हों। अभी हालहीं में एक हजार से भी अधिक लोग स्कूल ऑफ राम के विभिन्न कोर्सेज में अपना अध्ययन कर रहे हैं। वो सभी इस ग्रंथालय के लिए अपना सहयोग करेंगे। साथ ही समाज के भी विभिन्न प्रबुद्धजनों से इस हेतु संपर्क किया जाएगा।

प्रिंस ने यह भी बताया की पुस्तक भेंट करने वाले महानुभावों या उनके प्रियजनों जिनकी स्मृति में वो ग्रंथ प्रदान करना चाहते हैं उनका नाम ग्रंथप्रदाता के रुप में पुस्तक के कवर पेज पर अंकीत भी किया जाएगा। ताकि उनके योगदान को हमेशा याद रखा जा सके। कोई भी व्यक्ति जिसके पास रामायण से सबंधित पुस्तक हो वह स्कूल ऑफ राम को दान कर सकता है। स्कूल ऑफ राम की और से ग्रंथ प्रदाताओं को एक माह के लिए रामायण में प्रबंधन पर भी प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा। भगवान राम से जुड़े प्रबंधन के सुत्रों को सीखकर व्यक्ति अपने जीवन में सफलता के उच्चतम से उच्चतम शिखर को प्राप्त कर सकेगा।

ग्रंथालय के लिए विशेष रुप से तैयार की गई है एक वैबसाइट 
प्रिंस ने बताया कि रामायण ग्रंथालय मुख्यतः काशी में रहेगा किंतु इसका एक केंद्र जयपुर में भी होगा। एवं उसके लिए एक वैबसाइट तैयार की गई है जिस पर ग्रंथालय में मौजूद एवं अपेक्षित सभी पुस्तकों का सम्पूर्ण ब्यौरा रहेगा। ताकि लोग एक बार वैबसाइट देखकर यह तय कर सकें की हमारे पास कौन-कौन सी पुस्तकें है,एवं किन-किन पुस्तकों की हमें ग्रंथालय के लिए आवश्यकता है। ताकि वे इस अनुरूप ग्रंथ दान कर सकें। ग्रंथालय के सबंध में सभी जानकारी स्कूल ऑफ राम के सॉशल मीडिया हेंडल पर भी उपलब्ध रहेगी।

रामायण में रूचि रखने वाले एवं शोधकर्ताओं को भी इससे मदद मिलेगी 
स्कूल ऑफ राम के इस ग्रंथालय में जो पुस्तकें रखी जाएंगी उनका संपूर्ण ब्योरा ग्रंथालय की वैबसाइट पर उपलब्ध रहेगा। ताकि रामायण में रूचि रखने वाले लोगों एवं शोधकर्ताओं को उनमें से यदि कोई पुस्तक उपयोगी लगती है तो ग्रंथालय से संपर्क कर उस पुस्तक के संदर्भ में सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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