Special Story:यूपी चुनाव में ढह गए सेक्युलर किले, हिंदुत्व के ध्वजवाहक रहे दिग्गजों ने भरा सेक्युलरिज्म का दम

बरेली मंडल में इस बार विधानसभा चुनाव में नया सियासी तालमेल देखने को मिला। चुनावी समीकरण साधने के लिए कई दिग्गजों ने दलबदल ही नहीं  बल्कि उनके दिल भी बदले नजर आए। इनमें कुछ किस्से बरेली मंडल के भी हैं। यहां चुनाव तो हो चुका है लेकिन दल-बदल के ये किस्से न सिर्फ आगे भी याद किए जाते रहेंगे। 

राजीव शर्मा

बरेली: वैसे तो राजनीति में दल-बदल अब आम हो गया है। उत्तर प्रदेश के इस चुनाव में तो ऐसे कई दिग्गजों ने विरोधी राजनीतिक विचारधारा से जुड़कर न सिर्फ दल बदल किया, बल्कि उनके दिल भी बदले नजर आए। इनमें कुछ किस्से बरेली मंडल के भी हैं। यहां चुनाव तो हो चुका है लेकिन दल-बदल के ये किस्से न सिर्फ आगे भी याद किए जाते रहेंगे बल्कि मंडल की राजनीति में उनका असर भी देखने को मिलेगा।

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समाजवादी नेता भाजपाई हो गए
बरेली में सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रहा- अपनी राजनीतिक की शुरुआत से ही सेक्युलरिज्म के झंडाबरदार रहे आंवला के पूर्व सांसद कुंवर सर्वराज सिंह का भाजपा में कदम रखना। सदैव समाजवादी रहे और मुलायम सिंह यादव के साथ सपा की टीम का हिस्सा भी रह चुके सर्वराज सिंह तीन बार सांसद बने लेकिन हमेशा उन्होंने सेक्युलरिज्म की प्रबल पैरोकारी की। उनकी राजनीति का केंद्र भाजपा का विरोध ही रहा लेकिन विधानसभा चुनाव का आगाज होने से पहले उनके बेटे कुंवर सिद्धराज सिंह भाजपा में शामिल हो गए। इसे बरेली का बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम के रूप में देखा गया। हालांकि सिद्धराज सिंह आंवला विधानसभा सीट से टिकट की उम्मीद में भाजपा में गए थे, जहां से पिछला चुनाव वह सपा से लड़े थे। महज साढ़े तीन हजार वोटों से हार गए थे, लेकिन भाजपा से उनको टिकट नहीं मिल सका। अलबत्ता, सिद्धराज सिंह ही नहीं, उनके पिता पूर्व सांसद कुंवर सर्वराज सिंह ने भी पूरी मेहनत से भाजपा के लिए चुनाव में मेहनत की। अपने समर्थकों की बैठक बुलाकर आंवला, बिथरी चैनपुर, कैंट और शहर समेत बरेली की लगभग सभी सीटों के भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में जुटाया। वोटरों से भाजपा को जिताने की अपील की। भाजपा के बड़े नेताओं की जनसभाओं में भी सिद्धराज सिंह मंच पर रहे।

कांग्रेस की प्रत्याशी सपाई हो गईं
बरेली में दूसरा सियासी दल-बदल ऐरन दंपति का रहा। बरेली के पूर्व सांसद प्रवीण सिंह ऐरन और उनकी पत्नी शहर से पूर्व मेयर सुप्रिया ऐरन ऐन चुनाव के मौके पर लखनऊ जाकर कांग्रेस छोड़ समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। वह भी तब जब सुप्रिया ऐरन बरेली कैंट से कांग्रेस की प्रत्याशी घोषित हो चुकी थीं। इस तरह ऐरन दंपति ने बरेली में कांग्रेस को बड़ा झटका दिया। सुप्रिया को बाद में अखिलेश यादव ने कैंट से सपा प्रत्याशी घोषित कर दिया और वह भाजपा के मुकाबले मजबूती से चुनाव लड़ी हैं। उनके सपा में जाने से बरेली कैंट सीट पर मुकाबला भाजपा और सपा में कांटे का हो गया।

भाजपा के विधायक सपा से लड़ा चुनाव
बरेली में दल-बदल का तीसरा घटनाक्रम विधायक आरके शर्मा का रहा। आंवला सीट पर सपा प्रत्याशी आरके शर्मा भाजपा छोड़कर चुनाव लड़े। वह बरेली के पड़ोसी जिले बदायूं जिले की बिल्सी सीट से विधायक हैं और पिछले चुनाव में भाजपा के टिकट पर जीते थे। लेकिन इस बार वह आंवला विधानसभा से चुनाव लड़ने के लिए फिर सेक्यूलर हो गए। जहां से 2007 में वह बसपा के टिकट पर विधायक बने थे। 2012 में बसपा ने दुबारा टिकट नहीं दिया तो वह 2017 में भाजपा में चले गए थे और इस चुनाव में सपा में शामिल हो गए। इसी तरह उत्तर प्रदेश विधान परिषद में बरेली-रामपुर स्थानीय निकाय सीट से सपा के एमएलसी घनश्याम लोधी ने भी हाल ही में पाला बदल लिया। वह भी सपाई से अब भाजपाई हो चुका हैं।

जितिन अब कर रहे हिंदुत्व की पैरोकारी
वैसे बरेली मंडल में दल-बदल की शुरुआत विधानसभा चुनाव के काफी समय पहले से ही हो चुकी थी। पुराने कांग्रेसी दिग्गज जितिन प्रसाद का पिछले साल के मध्य में भाजपा में शामिल होना बहुत बड़ा सियासी घटनाक्रम रहा। पूर्व केंद्रीय मंत्री और राहुल गांधी के नजदीकी लोगों में शुमार रहे जितिन पहले एमएलसी बनाए गए फिर यूपी की योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री। उनका भाजपा में शामिल होना बरेली मंडल में ही नहीं, यूपी में भी कांग्रेस को बड़ा झटका समझा गया। बरेली में राजनीति में दल-बदल उससे भी पहले भी याद आते हैं। बरेली शहर से दो बार भाजपा के विधायक रहे और इस बार तीसरा चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़े डॉ. अरुण कुमार ने विधायक बनने से पहले 2007 में पहला चुनाव सपा के टिकट पर लड़ा था लेकिन तब जीत नहीं पाए थे। फरीदपुर सीट से इस बार सपा के टिकट पर चुनाव लड़े पूर्व विधायक विजय पाल सिंह 2007 में बसपा के टिकट पर विधायक बने थे लेकिन कुछ समय पहले वह बसपा छोड़कर सपा में शामिल हो गए। इसी तरह भोजीपुरा सीट पर पहले भाजपा से टिकट के प्रबल दावेदार रहे योगेश पटेल को जब प्रत्याशी नहीं बनाया गया तो वह हिंदुत्ववादी पार्टी छोड़कर बसपा में शामिल हो गए। बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े।

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