Inside Story: मेरठ की सातों विधानसभा में क्या रहा हाल, 2017 में कौन बना विधायक और क्या रही मुख्य समस्या

मेरठ में भारत की राजधानी दिल्ली से जोड़ने के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं बनाई गई है, जिसमे से ईस्टर पेरिफेरल एक्सप्रेस वे बन कर तैयार हो चुका है और रैपिड रेल, मेट्रो का काम जोरो से जारी है। इन योजनाओं के तहत मेरठ से दिल्ली जाने वाले लाखों लोगों को अब काफी सुविधाएं मिल रही है।

अनमोल शर्मा, मेरठ

1857 की क्रांति का शहर मेरठ अब विकास की राह पर अग्रसर है, वर्तमान में मेरठ में भारत की राजधानी दिल्ली से जोड़ने के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं बनाई गई है, जिसमे से ईस्टर पेरिफेरल एक्सप्रेस वे बन कर तैयार हो चुका है और रैपिड रेल, मेट्रो का काम जोरो से जारी है। इन योजनाओं के तहत मेरठ से दिल्ली जाने वाले लाखों लोगों को अब काफी सुविधाएं मिल रही है। यही नही, मेरठ के महाभारत कालीन हस्तिनापुर भी अब विकास के पंख लगते नजर आ रहे हैं। इसके इलावा मेरठ में एशिया का सबसे बड़ा स्पोर्ट्स मार्किट है,जहां से इंटरनेशनल क्रिकेट सहित कई इंटरनेशनल टूर्नामेंट के लिए स्पोर्ट्स इक्विपमेंट्स जाते हैं। स्पोर्ट्स मार्किट से सरकार को हर साल करोड़ों रुपए का रेवेन्यू मिलता है। बता दें कि इस सीट पर कभी कांग्रेस का वर्चस्व हुआ करता था लेकिन अब पूर्ण रूप से भाजपा का राज जारी है।

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1- शहर विधानसभा- मेरठ शहर सीट के अंतर्गत एक बड़ी संख्या आज के समय मे मुस्लिम समाज की है। इस वजह से 2017 इलेक्शन में मेरठ शहर से 4 बार विधायक रहे भाजपा के लष्मीकांत वाजपेयी को एक तरफा सपा के उम्मीदवार रफीक़ अंसारी ने मात दी। मेरठ शहर के अंदर रावण,मुगलों और अंग्रेजी हुकूमत तक का इतिहास छिपा है। आज़ादी के बाद से इस सीट पर कांग्रेस का शासन चलता रहा है लेकिन वक़्त बदलता गया और देश के साथ साथ कांग्रेस का ताज मेरठ से भी छिन गया। यहां के वोटरों की संख्या बात की जाए तो जनवरी 2021 के आकड़ो के हिसाब से कुल संख्या 307799 है, जिसमे बड़ी संख्या हिन्दू वोटरों की है। यहां करीब 1 लाख मुस्लिम समुदाय के लोग हैं जो शहर की सीट का रुख किधर भी बदल सकतें हैं, इसी के साथ पंजाबी और दलित वोटर भी हैं। 

शहर विधानसभा के मुख्य मुद्दे

- शहर विधानसभा की एक मुख्य समस्या कानून व्यवस्था की है
- विधानसभा में बारिश के समय जल निकासी की भी समस्या है, यहां नाले नालियों की सफाई को लेकर आए दिन प्रदर्शन होते हैं


2- कैंट विधानसभा- भाजपा के लिए जिले की महत्वपूर्ण सीट माने जाने वाली कैंट विधानसभा में जनवरी 2021 के आंकड़ों के हिसाब से 420419 मतदाता हैं। इस सीट पर हिंदू समाज के सभी जातियों की बड़ी संख्या है,जिसमे ब्राह्मण,बनिये,पंजाबी व दलित शामिल है। कैंट विधानसभा में पिछले कई दशकों से भाजपा का ही दबदबा है, साल 2002 से 2017 तक के विधानसभा एलेक्शन्स में भाजपा के विधायक सत्यप्रकाश अग्रवाल ने एक तरफा जीत हासिल की है। कैंट सीट व्यापारी एक जुट होकर एक तरफा भाजपा को वोट करते है। कैंट विधानसभा में सदर बाजार, लालकुर्ती, बागपत रोड और दिल्ली रोड के कुछ मुख्य बाजार शामिल हैं। कभी इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा हुआ करता था।

सड़को की समस्या
- नाली खड़ंजों की समस्या
- मोबाइल टावर की समस्या
- चोरी के वाहनों के कटान का मार्किट इस विधानसभा सीट की छवि खराब करता है।

3- दक्षिण विधानसभा- उत्तर प्रदेश विधानसभा में यह सीट 2012 में पहली बार अस्तित्व में आई। जिले के सबसे ज्यादा वोटर दक्षिण विधानसभा में है। आकड़ो के हिसाब से यहां 461005 लाख वोटर हैं। यहां हिंदू धर्म के  गुर्जर,जाट,ठाकुर,बनियों, दलितों की अच्छी संख्या है। अब तक इस सीट पर केवल भाजपा का ही शासन रहा है। 2012 में भाजपा के रविंद्र भड़ाना ने करीब 10000 वोट से बसपा के हाजी राशिद अख़लाक़ को हराया था और साल 2017 में भाजपा के सोमेंद्र तोमर को जीत मिली थी।
दक्षिण विधान सभा मे काफी संख्या किसानों की भी है जो आने वाले चुनावों का रुख बदल सकती है।

मुख्य परेशानी
- मेडिकल कॉलेज की शिकायतें
- सड़को की परेशानी
- किसानों की समस्या

4- सरधना विधानसभा- मेरठ जिले की हॉट सीट माने जाने वाली सरधना विधानसभा भाजपा के कद्दावर विधायक संगीत सोम की वजह से अक्सर चर्चाओं में रहती है। इस विधानसभा सीट पर कुल वोट 349338 हैं जिसमे 190853 वोट पुरषों के तो 158432 वोट महिलाओं के हैं। यहां ठाकुरों के 24 गांव है बावजूद इसके सबसे ज्यादा आबादी यहां मुस्लिम की मानी जाती है। इस सीट पर मुस्लिम एक लाख के करीब हैं, इसके बाद दलित 50 हजार, ठाकुर 45 हजार, गुर्जर 35 हजार, जाट 25 हजार, सैनी 25 हजार व अन्य है। इस इलाके में खेती है और कई बाग भी है साथ ही ये इलाका सूत का बड़ा उत्पादक है। किसान आंदोलन के बाद से यहां वोटो का ध्रुवीकरण लगभग बदलना तय है। इस समय यहां सबसे चर्चित दो ही नेता हैं, एक संगीत सोम और दूसरा सपा के अतुल प्रधान लेकिन सरधना सीट का अगर इतिहास उठाकर देखा जाए तो अब तक कभी सपा यहां दूसरे स्थान तक भी नही पहुँच सकी है।

मुख्य समस्या
- गांव में साफ सफाई
- कानून व्यवस्था
- किसानों की नाराजगी

5- हस्तिनापुर विधानसभा- महाभारत काल में कौरवों और पांडवों की राजधानी माने जाने वाली हस्तिनापुर एक आरक्षित सीट है। माना जाता है कि हस्तिनापुर विधानसभा सीट से जो एमएलए बनता है, उसकी पार्टी को ही प्रदेश में सत्ता मिलती है। पिछले 3 विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2017 दिनेश खटीक भाजपा से जीते, 2012 में प्रभुदयाल वाल्मीकि सपा से जीते और 2007 में बसपा से योगेश वर्मा के सर पर इस सीट से ताज सजा था। इस सीट की कुल वोटें 337252 हैं जिसमे सबसे अधिक मतदाता मुस्लिम और गुर्जर हैं। उसके बाद तीसरे नंबर पर करीब 55 हजार साथ दलित मतदाताओं की संख्या है। 

मुख्य समस्या
- हर साल खादर क्षेत्र में बाढ़ आना
- रेलवे स्टेशन की जरूरत

6- किठौर विधानसभा- मेरठ जिले के अंतर्गत आने वाली विधानसभा किठौर में आधी आबादी मुस्लिम की है, इसके इलावा ठाकुरों के 12 गांव और त्यागियों की भी काफी संख्या है। यहां कुल वोटर 357827 है। किठौर विधानसभा में पिछले कई वर्षों से भाजपा का नामोनिशान तक नही था लेकिन 2017 के इलेक्शन में इस सीट ने भाजपा से सत्यवती त्यागी को विधायक बनाया। साल 2002 सपा पहले स्थान पर थी और भाजपा टॉप 4 में भी शामिल नही हो सकी, 2007 में सपा के शाहिद मंजूर ने फिर से बाजी मारी और इस साल भी भाजपा को 3 स्थान से ही खुश होना पड़ा, साल 2012 में सपा के शाहिद मंजूर की हैट्रिक हुई और भाजपा का चौथा स्थान मिला। 

मुख्य समस्या
- कानून व्यवस्था, आये दिन हत्या, छेड़छाड़ की वारदात
- बिजली की समस्या

7- सिवालखास विधानसभा- सिवालखास विधानसभा सीट 2007 तक आरक्षित सीट रही। इस सीट पर 1974 से 1985 तक कांग्रेस का कब्जा रहा। इस सीट पर कुल मतदाता 331212 है। 2017 के विधानसभा इलेक्शन में पहली दफा भाजपा के सर पर इस सीट से जीत का सेहरा बंधा था। इस सीट पर हमेशा से ही दलितों और मुस्लिमों का कब्जा रहा है। 

इलाके की ग्रामीण जनता की परेशानियां भी शिक्षा, रोजगार से जुड़ी हैं। ग्रामीणों को बिजली, पानी, सिंचाई, खाद—बीज, अस्पताल की आवश्यकता है। इसके इलावा इलाके में बड़ी समस्या महिलाओं से जुड़े अपराध है।

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