प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र में अस्सी घाट पर वायु प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक, जानें क्या है वजह

वाराणसी के अस्सी घाट पर स्थापित किए गए फिल्टर युक्त कृत्रिम फेफड़े महज दो दिनों के भीतर ही धुंधले हो गए। इनका इस तरह से धुंधला पड़ना दर्शाता है कि शहर में वायु प्रदूषण की स्थिति काफी चिंताजनक है।

Asianet News Hindi | Published : Apr 13, 2022 5:12 AM IST

वाराणसी: क्लाइमेट एजेंडा द्वारा वाराणसी के स्वच्छ समझे जाने वाले अस्सी घाट पर स्थापित किये गए उच्च क्षमता वाले फ़िल्टर युक्त कृत्रिम फेफड़े महज दो दिन के अंदर धुँधले हो गए। ज्ञात हो की आम जन में वायु प्रदूषण की समझ पैदा करने के उद्देश्य से इस कृत्रिम फेफड़े की प्रदर्शनी स्थापित की गयी है, जिसे रविवार को ही शहर के जाने माने चिकित्सक डॉ आर एन बाजपेई, पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान के निदेशक डॉ ए एस रघुवंशी और योगिराज पंडित विजय प्रकश मिश्रा ने क्लाइमेट एजेंडा की निदेशक एकता शेखर के साथ स्थापित किया था। इनको स्थापित कर देखना यह था कि शहर के सबसे साफ़ माने जाने वाले अस्सी घाट पर प्रदूषण के बारे में प्रशासनिक दावों के पीछे की सच्चाई क्या है। 

काशी की हवा में मौजूद ज़हरीले प्रदूषण के बारे में क्लाइमेट एजेंडा की निदेशक एकता ने कहा महज़ दो दिन पहले ही स्थापित किये गए, उच्च क्षमता वाले फ़िल्टर युक्त सफेद कृत्रिम फेफड़े का धुँधला (ग्रे) हो जाना प्रशासनिक दावों की कलई खोलता है। भीषण गर्मी के समय जबकि प्रदूषण का स्तर स्वाभाविक रूप से कम हो जाता है, ऐसे समय में शहर के स्वच्छतम क्षेत्र की हालत पूरे शहर के वायु प्रदूषण के आंकड़ों की पोल खोलती है। महज दो दिनों के भीतर इस कृत्रिम फेफड़े का धुंधला हो जाना यह प्रमाणित करता है कि वारा सी में वायु प्रदूषण के कारण स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति बनी हुई है. हालिया जारी रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के अधिकाँश शहर ऐसे ही स्वास्थ्य आपातकाल से गुजर रहे हैं, जहां राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्य योजना पूर्ण रूप से असफल हो चुकी है। प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में केंद्र सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय कार्ययोजना का लापरवाही भरा अनुपालन वायु प्रदूषण के विषय पर प्रशासन और शासन का गंभीर ना होना स्पष्ट करता है।

विशेषज्ञों ने कही ये बात 
वाराणसी में बीएचयू स्थित सर सुंदर लाल अस्पताल के वरिष्ठ कार्डियक विशेसज्ञ डॉ ओम शंकर ने कहा "हम दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में यू ही नहीं शामिल हैं। महज दो दिनों में कृत्रिम फेफड़ों का ग्रे हो जाना साबित करता है कि शहर और आस पास रहने वाले लोगों का दिल और फेफड़ा वायु प्रदूषण की जड़ में है। बेहद जरूरी है कि इसे एक स्वास्थ आपातकाल मानते हुए जरूरी कदम उठाए जाएं।"

दो दिनों में कृत्रिम फेफड़ों ने बदला रंग 
महज दो दिनों में कृत्रिम फेफड़ों के धुँधले हो जाने को एक चौकाने वाली घटना बताते हुए शहर के प्रतिष्ठित चिकित्सक और श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ आर एन वाजपेई कहा अस्सी अब तक शहर में सबसे स्वच्छ जगहों में शामिल मानी जाती थी. महज 48 घंटे में कृत्रिम फेफड़े का ग्रे हो जाना आम जनता के स्वास्थ्य के लिए एक खतरनाक स्थिति मानी जानी चाहिए। यह अब बेहद जरुरी हो गया है कि पर्यावरण की बेहतरी के लिए परिवहन को प्रमुख रूप से स्ववच्छ बनाया जाए और सभी विभाग मिल कर स्ववच्छ वायु कार्ययोजना का क्रियान्वयन सुनिश्चित करें।

उत्तर प्रदेश विशेष सुरक्षा बल के लिए 5124 पदों को मिली मंजूरी, सीआईएसएफ की तर्ज पर राज्य में बना UPSSF

यूपी में रिटायर होने वाले डॉक्टरों की होगी दोबारा तैनाती, 17 व 18 अप्रैल को होगी काउंसलिंग

Share this article
click me!