
हमीरपुर (Uttar Pradesh) । नौ माह तक अपने बच्चे को कोख में पालने वाली मां सुनहरे सपने संजोती है। सबकुछ जानते हुए भी असहनीय दर्द सहती है और उसे इस दुनिया में सिर्फ अपने नाम और मरने पर कंधा देने के लिए लाती है। इतना ही नहीं, उसके पालन पोषण में कोई कोर कमी नहीं छोड़ती है। लेकिन, वहीं संतान जब अंतिम समय में उनका सहारा न बने तो उसपर क्या गुजरती होगी। ऐसा ही कुछ उजनेड़ी गांव निवासी 80 वर्षीय वृद्धा और नेत्रहीन सूरी के साथ हुआ। जिसकी बीते दिवस मौत हो गई तो गांव के लोगों ने उसके बेटे और बेटी से संपर्क किया, लेकिन जानकारी होते ही दोनों ने फोन स्विच ऑफ कर लिया। आखिर में धिक्कारते हुए गांव के लोगों ने उसका अंतिम संस्कार किया।
देखने तक नहीं आया बेटा
एक घटना के बाद सूरी अपने मायके चली गई। 20 साल पहले उसे छोड़कर बेटा सुख्खीलाल व बेटी सुधा ने किनारा कर लिया। वे दोनों कानपुर चले गए। ग्रामीणों ने बताया कि सूरी जब मायके आई तो हमेशा अपने बेटे और बेटी के बारे में बातें किया करती थी। बेटी को कभी कभार गांव आते देखा, लेकिन बेटे का कभी नहीं आया।
20 साल से भीख मांगकर थी जीवित
सूरी अपनी बड़ी बेटी के विक्षिप्त बेटे के साथ कई सालों तक गांव में रही। इसके बाद भाई व विक्षिप्त नाती की मौत के बाद वह बेसहारा हो गई। नेत्रहीन सूरी गांव में खाना मांगकर किसी तरह अपना जीवन व्यतीत करने लगी और सड़क किनारे प्रतीक्षालय में अपना आशियाना बनाकर रहने लगी। वह लोगों से बाते करती तो उसकी बेटा और बेटी से मिलने की इच्छा सामने आ जाती थी।
पुलिस ने भेज दिया था वृद्धाश्रम
एक घटना के बाद ललपुरा थाना पुलिस ने बीते अक्टूबर माह में सूरी को वृद्धाश्रम में भेज दिया था। बेटा और बेटी को बुलाने का भी प्रयास किया, लेकिन कोई नहीं आए। वृद्धाश्रम संचालक ने बताया कि एक दो बार सूरी की बेटी के बेटे से फोन पर बात हुई है, लेकिन कई बार बुलाने पर भी वो नहीं आए।
मौत पर फोन कर लिया स्विच ऑफ
बीते दिवस सूरी की मौत हो गई तो संपर्क किया गया, लेकिन जानकारी होते ही बेटा और बेटी का फोन स्विच ऑफ हो गया। बाद में उसका अंतिम संस्कार कराया गया। गांव के लोग सूरी की मौत पर भी बेटा और बेटी के न आने पर धिक्कारते रहे। सूरी की दर्दभरी कहानी सुनने वाले हर शख्स की आंखें भी नम हो जा रही हैं।
(प्रतीकात्मक फोटो)
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