अयोध्या में पर्यटक भूल जाते हैं इसे देखना, ताज महल की तरह ये भी है एक निशानी

ताजमहल पूरी दुनिया में प्यार की निशानी के लिए फैमस है। यूपी के अयोध्या में एक ऐसी ही निशानी मौजूद है, जिसे एक नवाब ने अपनी पत्नी के लिए बनवाया था। हम बात कर रहे हैं यूपी के अयोध्या में बने बहू बेगम मकबरे की। hindi.asianetnews.com ने इस मकबरे के ट्रस्टी व शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य अशफाक हुसैन जिया से बात की। 

Ujjwal Singh | Published : Oct 17, 2019 8:47 AM IST / Updated: Nov 01 2019, 02:16 PM IST

अयोध्या (Uttar Pradesh). ताजमहल पूरी दुनिया में प्यार की निशानी के लिए फैमस है। यूपी के अयोध्या में एक ऐसी ही निशानी मौजूद है, जिसे एक नवाब ने अपनी पत्नी के लिए बनवाया था। हम बात कर रहे हैं यूपी के अयोध्या में बने बहू बेगम मकबरे की। hindi.asianetnews.com ने इस मकबरे के ट्रस्टी व शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य अशफाक हुसैन जिया से बात की। इस दौरान उन्होंने मकबरे से जुड़ी कई दिलचस्प बातें शेयर की। 

ऐसे बना था ये मकबरा
बेशकीमती पत्थरों से बना 42 मीटर ऊंचा बहूबेगम मकबरा अयोध्या के नाका इलाके में स्थित है। मकबरे के ट्रस्टी और शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य अशफाक हुसैन जिया ने बताया, इस मकबरे की परिकल्पना अवध के तीसरे नवाब शुजाउदौला ने की थी। वो अपनी पत्नी से बेइंतिहा प्यार करते थे और उनके लिए ताजमहल जैसा मकबरा बनवाना चाहते थे। लेकिन बीमारी के चलते उनकी मृत्यु हो गयी। उस समय तक मकबरे का कुछ काम ही पूरा हो पाया था। पति की इच्छा पूरी करने के लिए उनकी पत्नी बेगम उम्मत-उल-जोहरा उर्फ बहू बेगम ने इस मकबरे का निर्माण जारी रखा। कुछ समय बाद उनकी भी मृत्यु हो गयी। जिसके बाद इसका निर्माण कार्य इनके सबसे खास सिपहसालार दाराब अली खान ने पूरा करवाया।

मगरमच्छ के हमले में घायल नवाब की हुई थी मौत
वो बताते हैं, नवाब शुजाउद्दौला एक बार नदी में नहा रहे थे। उसी समय एक मगरमच्छ ने उन्हें पकड़ लिया। काफी देर तक जद्दोजहद करने के बाद वो मगरमच्छ के चंगुल से छूटकर बाहर निकल पाए। हालांकि, उनका पूरा शरीर नीला पड़ गया था। जिसके बाद करीब 6 साल तक बीमारी की वजह से वो बिस्तर पर रहे। उस दौरान बहू बेगम के मकबरे का निर्माण शुरू हो गया था। 6 साल तक जिंदगी और मौत से जंग लड़ने के बाद नवाब की मौत हो गयी।

1962 से इस मकबरे के केयर टेकर हैं नीमर
यह ऐतिहासिक मकबरा शिया वक्फ बोर्ड व भारतीय पुरातत्व विभाग की सम्पत्ति है। यहां मुहर्रम के चेहल्लुम का जुलूस भी निकलता है। साल 1962 से इस पूरे परिसर की देखभाल कर रहे 93 साल के नीमर ने बताया, उन्हें वक्फ की ओर से 1500 रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता है। यहां कभी-कभार पर्यटक भी आते हैं।

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