ये है गांधी मुस्लिम होटल, 98 साल पहले इस टी स्टाल पर किया गया था बापू का वेलकम

आज यानी 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 72वीं पुण्यतिथि है। 30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में नाथूराम गोडसे ने तीन गोलियां दाग बापू की हत्या कर दी थी। राष्ट्रपिता की याद में उनके नाम पर देशभर में रोड, स्मारक पार्क और स्टेडियम बनवाए गए हैं। आज हम एक ऐसे मुस्लिम होटल के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका नाम पहले गांधी होटल था।  

Asianet News Hindi | Published : Jan 30, 2020 5:38 AM IST / Updated: Jan 30 2020, 11:15 AM IST

गोरखपुर (Uttar Pradesh). आज यानी 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 72वीं पुण्यतिथि है। 30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में नाथूराम गोडसे ने तीन गोलियां दाग बापू की हत्या कर दी थी। राष्ट्रपिता की याद में उनके नाम पर देशभर में रोड, स्मारक पार्क और स्टेडियम बनवाए गए हैं। आज हम एक ऐसे मुस्लिम होटल के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका नाम पहले गांधी होटल था।  

जब गोरखपुर पहुंचे थे गांधी जी
यूपी के गोरखपुर में होटल है, जिसका नाम गांधी मुस्लिम होटल है। होटल के मालिक अहमद रजा खान कहते हैं, मेरे दादा गुलाम कादीर बताते थे कि ये होटल खुद में आजादी की याद समेटे है। 8 फरवरी 1921 की सुबह महात्मा गांधी गोरखपुर आए थे। उन्होंने बहरामपुर स्थित बाले मियां मैदान से हिंदू-मुस्लिम एकता के अलावा अवध के किसानों को हिंसक आंदोलन न करने की सलाह दी थी। सभा के दौरान उनके सामने एक चद्दर बिछी थी, जिसपर पैसों की बरसात हो रही थी। आंकड़ों के अनुसार, सभा में करीब एक से ढाई लाख लोगों की भीड़ आई थी। जबकि गोरखपुर शहर की उस समय आबादी सिर्फ 58 हजार थी। बापू उसी दिन रात करीब 8.30 बजे की ट्रेन से बनारस लौट गए।

कैसे होटल का नाम पड़ा गांधी
अहमद रजा कहते हैं, गांधी मुस्लिम होटल पहले टी स्टाल था। गांधी जी जब बाले मियां मैदान जा रहे थे, तब कांग्रेसियों ने इसी टी-स्टाल पर उनका स्वागत किया। तब से ये टी-स्टाल गांधी जी के नाम से मशहूर हो गया। यहां से गुजरने वाले लोग अक्सर स्टाल पर रुककर चाय पीते थे। चाय की पत्ती अंग्रेज कर्मचारी मुहैया करवाते थे। 2003 जब मेरे पिता मरहूम उमर थोड़ा बड़े हुए तो उन्होंने टी-स्टाल को होटल में बदल दिया। यहां शाकाहारी व मांसाहारी दोनों तरह का खाना मिलता है।

अंग्रेज इस होटल को करते थे रोशन
गांधी होटल पर मेघालय के पूर्व राज्यपाल मधुकर दीघे भी आते थे। वो घंटों यहां बैठा करते थे। इसके अलावा चौरी-चौरा आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले कामरेड जामिन भी यहां अपना समय बिताते थे। जिस समय ये होटल खुला ये इलाका जंगल था। उस समय जगह-जगह रोशनी के लिए लैंप पोस्ट बनाए गए थे। अंग्रेज कर्मचारी उसे रोशन किया करता था।

Share this article
click me!