20 किमी साइकिल चलाकर पिता, बेटे को छोड़ते थे क्रिकेट एकेडमी, अब बना 'टीम इंडिया' का कैप्टन

Published : Dec 05, 2019, 05:09 PM IST
20 किमी साइकिल चलाकर पिता, बेटे को छोड़ते थे क्रिकेट एकेडमी, अब बना 'टीम इंडिया' का कैप्टन

सार

 प्रियम के पिता ने तमाम समस्याओं और गरीबी झेलते हुए बेटे को बड़ा क्रिकेटर बनाने का सपना देखा था जो अब साकार हो गया है

मेरठ(Uttar Pradesh ). कहते हैं गरीबी इंसान के सपनों को खत्म कर देने में अहम रोल निभाती है ,लेकिन जब कुछ कर गुजरने का जूनून साथ हो तो फिर क्या अमीरी और क्या गरीबी। ऐसी ही कुछ कहानी है अंडर-19 विश्वकप 2020 के लिए चुनी गई टीम इण्डिया के कप्तान प्रियम गर्ग की। प्रियम के पिता ने तमाम समस्याओं और गरीबी झेलते हुए बेटे को बड़ा क्रिकेटर बनाने का सपना देखा था जो अब साकार हो गया है। hindi.asianetnews.com ने क्रिकेटर प्रियम  गर्ग के कोच संजय रस्तोगी से बात की। इस दौरान उन्होंने प्रियम से जुडी तमाम बातें  शेयर किया। 

प्रियम गर्ग मूलतः मेरठ के किला परीक्षितगढ़ इलाके के रहने वाले हैं। प्रियम के पिता नरेश गर्ग वर्तमान समय में स्वास्थ्य विभाग में चालक हैं। पहले वह दूध का व्यवसाय करते थे। प्रियम जब आठ साल का था तभी से उसने क्रिकेटर बनने देखा था। लेकिन उनकी मां कुसुम इससे खासी नाराज रहती थीं। उनका कहना था कि खेलने कूदने से कुछ नहीं होने वाला पढ़ाई पर ध्यान देने की जरूरत है। लेकिन प्रियम के इस जूनून में उसके पिता का भरपूर सहयोग रहता था। किसी तरह उन्होंने प्रियम का एडमिशन संजय रस्तोगी की एकेडमी में करा दिया। संजय रस्तोगी भुवनेश्वर कुमार और प्रवीन कुमार जैसे टीम इण्डिया के दिग्गज खिलाड़ियों के भी कोच रह चुके हैं। 

20 किलोमीटर साइकिल से छोड़ना पड़ता था एकेडमी 
प्रियम के कोच संजय रस्तोगी ने बताया "मेरठ में एकेडमी ज्वाइन कराने के बाद प्रियम के पिता ने बेटे को अच्छा क्रिकेटर बनाने के लिए बहुत संघर्ष किया । प्रतिदिन प्रियम को एकेडमी भेजने और उसको वापस लाने की जिम्मेदारी उन पर थी। कई बार साधनों की कमी के चलते साइकिल से भी मेरठ आना पड़ता था। लेकिन वह उसमे भी पीछे नहीं हटते थे और 20 किलोमीटर साइकिल चलाकर उसे एकडेमी छोड़ते थे। 

आर्थिक स्थिति खराब देखते हुए फीस कर दी गई माफ़ 
कोच संजय रस्तोगी ने बताया "प्रियम बचपन से ही होनहार खिलाड़ी थी। एकेडमी मेहनत और खेल के सभी कायल थे। उसके पिता की आर्थिक स्थिति कुछ ख़ास ठीक नहीं थी। लेकिन हमे भरोसा था कि प्रियम एक दिन बड़ा खिलाड़ी बनेगा। इसलिए मैंने एकेडमी में उसकी फीस माफ़ करवा दी। इसके आलावा उसे एकेडमी से स्कॉलरशिप भी मिलने लगी थी। 

प्रियम भी दूध के व्यवसाय में बंटाता था पिता हांथ 
कोच ने बताया " प्रियम के पिता का दूध का व्यवसाय था। प्रियम भी उसमे पिता की मदद करता था। एकेडमी के बाद वह पिता का हांथ बंटाता था। लेकिन उस  व्यवसाय में घाटा लग गया जिससे वह पूरी तरह ठप हो गया था। जिसके बाद उसके पिता ने एक वैन ली जिसे एक स्कूल से अटैच कर लिया। अब वह उसी स्कूल के बच्चों को घर से लाते और पहुंचाते थे। प्रियम भी उसी स्कूल वैन से एकेडमी आ जाता था। 

11 साल की उम्र में सर से उठा मां का साया,तो रुकी उड़ान 
एकडमी ज्वाइन करने के तकरीबन 1 साल बाद प्रियम की मां कुसुम देवी की मृत्यु हो गई। साल 2011 जब प्रियम की मां की मृत्यु हुई, उस समय प्रियम की उम्र मात्र 11 साल थी। मां की मौत के दौरान उसने एकेडमी जाना छोड़ दिया। लेकिन उसके पिता नरेश ने प्रियम का हौसला नहीं टूटने दिया। कुछ दिनों बाद पिता ने उसको फिर से एकेडमी भेजना शुरू किया।

रणजी मैचों में प्रियम के बल्ले से हुई थी रनों की बरसात 
पिछले साल प्रियम गर्ग ने अपनी पहली रणजी ट्रॉफी में खेलते हुए एक दोहरा शतक, दो शतक और पांच अर्धशतक की मदद से 867 रन बनाए थे। इसके अलावा कई सीरीज में प्रियम ने शानदार खेल का प्रदर्शन था। भारतीय टीम के पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ भी उसके खेल के कायल हैं। 

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