कभी पढ़ाई से बचने के लिए खेतों में छिप जाता था ये आईपीएस, फिर ऐसे संघर्षों के बाद हासिल किया ये मुकाम

 38 वीं वाहिनी पीएसी अलीगढ़ के कमांडेंट IPS अनीस अहमद अंसारी ने hindi.asianetnews.com से बात की। इस दौरान उन्होंने अपने संघर्षों व सफलता की कहानी बताई

लखनऊ(Uttar Pradesh ). दिल में अगर कुछ हासिल करने की तमन्ना हो तो आदमी कोई भी लक्ष्य पा सकता है। ऐसे ही हम एक आईपीएस अफसर की खाने आज आपको बताने जा रहे हैं। जी हां बेहद गरीब परिवार में जन्मे इस आईपीएस का जीवन बेहद संघर्षपूर्ण रहा है। पिता एक मदरसे में शिक्षक थे और उनकी सेलरी इतनी काम थी कि उसमे गुजारा करना ही मुश्किल था। 38 वीं वाहिनी पीएसी अलीगढ़ के कमांडेंट IPS अनीस अहमद अंसारी ने hindi.asianetnews.com से बात की। इस दौरान उन्होंने अपने संघर्षों व सफलता की कहानी बताई।  

मूल रूप से सिद्धार्थनगर जिले के रहने वाले अनीस अहमद अंसारी 2010 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। वर्तमान में वह अलीगढ़ में पीएसी की 38 वीं बटालियन में कमांडेट हैं। अनीसा अहमद अंसारी बेहद कड़क अफसर माने जाते हैं। जिन जिलों में वह बतौर एसपी तैनात रहे हैं वहां अपराधियों पर अंकुश लगाने में वह काफी हद तक कामयाब रहे थे। 

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पिता की 200 रूपए सेलेरी से चलता था घर 
IPS अनीस अहमद अंसारी ने बताया "हम दो भाई और एक बहन में सबसे छोटे थे। पिता जी गांव के ही एक मदरसे में शिक्षक थे। उनकी सेलरी मात्र 200 रूपए थी। उन्ही 200 रूपए में घर भी चलता था और सबकी पढ़ाई लिखाए भी। लेकिन ये सब कैसे पूरा होता था उसे बता पाना बेहद मुश्किल है। लेकिन पिता जी ने कभी हार नहीं मानी। 

पिता की मार ने दिखाया रास्ता 
अनीस बताते हैं, "बचपन से ही मेरा मन पढ़ने में नहीं लगता था। क्लास 5 तक मै गांव के ही मदरसे में पढ़ा। पिता जी भी उसी स्कूल में शिक्षक थे। मैं स्कूल में बैग छोड़कर फरार हो जाता था और खेतों में जाकर छिप जाता था। पिता जी मुझे पकड़ने के लिए स्कूल के दर्जनों बच्चों को भेजते, उनकी पकड़ से बचने के लिए मै उनपर खूब पत्थर बरसाता था। फिर दोनों तरफ से जमकर पत्थर चलते थे। जब मैं पत्थर चलाकर थक जाता था तो वहां से भागने लगता और बच्चे मुझे पकड़कर पिता जी के पास ले जाते। इसके बाद छड़ी की वो मार आज भी याद कर सिहर जाता हूं। लेकिन उसी मार और अनुशासन ने मेरी जिंदगी बदल दिया। 

गांव वाले पिता पर करते थे कमेंट 
अनीस ने बताया " बचपन में मेरा मन पढ़ने में नहीं लगता था, जिसके कारण मुझे खूब मार पड़ती थी। गांववाले पिता जी पर कमेंट करते थे- पढ़ने के लिए मार रहे हैं, जैसे आईएएस-आईपीएस बनाएंगे। उस समय मेरे भी मन में एक बात आती थी कि ये आईपीएस-आईएएस कोई बहुत बड़ी चीज होती होगी। लेकिन मेरे पिता जी भी गर्व से कहते थे बिल्कुल आईपीएस अफसर ही बनाऊंगा। पिता की वही बातें आगे चल कर मेरे लिए आदर्श बनीं।"

पढ़ने का बनाया मन तो ऐसे मिली सफलता 
अनीस बताते हैं "मेरी शरारतों से आजिज आकर पिता जी ने गांव के बाहर स्कूल में मेरा एडमिशन करा दिया गया। वहां से भागने का कोई मौका नहीं मिलता, इसलिए पढ़ने का मन बना लिया। हाईस्कूल-इंटरमीडिएट के बाद आगे की पढ़ाई के लिए मैं अलीगढ़ आ गया। उसके बाद मैंने बीटेक पूरा होने के बाद 2007 में BHEL,भोपाल में नौकरी मिल गई। नौकरी मिलने के बाद काफी परेशानियां तो काम हो गयी लेकिन पिता के अफसर बनाने के शब्द जब याद आते तो काफी परेशान हो जाता था। वही सपना पूरा करने के लिए 2008 में मै दिल्ली आ गया। वहां सिविल सर्विस की तैयारी में लग गया। 2010 में मेरा सि‍लेक्शन सेकंड अटेंप्ट में इंडियनन पुलिस सर्विसेज (IPS) में हो गया।

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