अयोध्या : 58 साल से मालिकाना हक मांग रहा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड वापस लेना चाहता है केस, SC में दाखिल किया हलफनामा

अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई अंतिम दौर में है। बुधवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, अब बहुत हो चुका। शाम 5 बजे तक दोनों पक्ष बहस पूरी करें। इस बीच यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने मामले में दायर अपना केस वापस लेने के लिए मध्यस्थता पैनल के जरिए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है।

Asianet News Hindi | Published : Oct 16, 2019 6:14 AM IST / Updated: Oct 16 2019, 12:28 PM IST

अयोध्या (Uttar Pradesh). अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई अंतिम दौर में है। बुधवार को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, अब बहुत हो चुका। शाम 5 बजे तक दोनों पक्ष बहस पूरी करें। इस बीच यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने मामले में दायर अपना केस वापस लेने के लिए मध्यस्थता पैनल के जरिए सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। बोर्ड अपना केस वापस लेना चाहता है। 

यूपी सुन्‍नी सेंट्रल वक्‍फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने बताया, अयोध्‍या में रामजन्‍मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में आठ मुस्लिम पक्षकारों ने केस दायर किए हैं। मुख्‍य पक्षकार सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड की ओर से दो केस दायर किए गए हैं। जिसे बोर्ड वापस लेना चाहता है। बता दें, अयोध्या विवाद पहली बार 1885 में कोर्ट पहुंचा था। निर्मोही अखाड़ा 134 साल से जमीन पर मालिकाना हक मांग रहा है। जबकि सुन्नी वक्फ बोर्ड भी 58 साल से यही मांग कर रहा है।

केस वापस लेने के फैसले के पीछे ये हो सकती है वजह
बता दें, योगी सरकार ने यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा गलत तरीके से कई जमीनों की खरीद और ट्रांसफर कराने की शिकायतें मिलने के बाद मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की है। प्रयागराज कोतवाली में 26 अगस्त 2016 और 27 मार्च 2017 को लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में दर्ज केसों को जांच की सिफारिश के लिए आधार बनाया गया है। इस सिफारिश में खरीद-फरोख्त के अलावा दोनों बोर्ड की वित्तीय अनियमितताओं की भी जांच की मांग की गई है। हालांकि, अभी तक भेजे गए दोनों मामले शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड का कोई मामला नहीं है। माना जा रहा है कि इसी चलते सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अयोध्या मामले में अपना केस वापस लेने का फैसला किया।

सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने मांगी थी सुरक्षा
बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को आदेश दिया था कि यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जफर अहमद फारूकी को तत्काल प्रभाव से सुरक्षा प्रदान की जाए। बता दें, फारूकी ने कोर्ट से कहा था कि जिस तरह का माहौल चल रहा है, उसमें उनकी जान को खतरा हो सकता है। 

बाबरी मस्जिद के पक्षकार ने कही ये बात
सुन्नी वक्फ बोर्ड के इस फैसले पर बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी ने कहा, मुझे इससे कोई आपत्ति नहीं है। हमें सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वीकार होगा। वहीं, इकबाल अंसारी के वकील एमआर शमशाद ने बताया, पिछले दो महीनों में सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड के रवैये में परिवर्तन आया है। अयोध्या जमीन विवाद में कुल छह मुस्लिम पक्षकार हैं, जिनमें से सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड भी एक था। फिलहाल, मामले पर सुनवाई अंतिम दौर में है। ऐसे में किसी भी पक्ष द्वारा संबंधित समुदाय को नोटिस दिए बिना केस वापस नहीं लिया जा सकता। अगर बोर्ड अपना केस वापस ले भी लेता है तो भी ज्‍यादा फर्क नहीं पड़ेगा। क्‍योंकि मामले के अन्‍य पक्षकार कानूनी प्रक्रिया का हिस्‍सा बने रहेंगे।

मुस्लिम धर्मगुरु का क्या है कहना 
मुफ्ती मन्‍ना मालिनी ने कहा, हम फैसले का इंतजार कर रहे हैं। मुकदमा हक-ए-मिल्कियत (जमीन पर अधिकार) का है। हमें भरोसा है कि फैसला हमारे हक में होगा।

एक नजर में जानें क्या है अयोध्या का पूरा विवाद... 

1528: बाबर ने यहां बाबरी मस्जिद बनवाई थी। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, इसी जगह पर भगवान राम जन्मे थे। 
1813: हिंदू संगठनों ने आरोप लगाया कि भगवान राम के मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई गई। इस दिन ही हिंदुओं और मुसलमानों के बीच पहली हिंसा हुई थी।
1859: ब्रिटिश सरकार ने तारों की एक बाड़ खड़ी कर दी। अंदरूनी और बाहरी परिसर में मुस्लिमों-हिंदुओं को अलग-अलग पूजा-इबादत करने की इजाजत दी। 
1885: ये मामला पहली बार अदालत पहुंचा। महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील की।
1949:  हिंदुओं ने विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्ति रख दी। इसके बाद से हिंदू यहां नियमित पूजा होने लगी।
जनवरी 1950: रामलला की पूजा-अर्चना की अनुमति के लिए गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर की।
दिसंबर 1950: मस्जिद को ढांचा नाम देकर, महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने की अनुमति के लिए मुकदमा दायर किया।
1959: विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए निर्मोही अखाड़ा ने मुकदमा दायर किया।

यहां से हुई थी सुन्नी वक्फ बोर्ड की मामले में इंट्री 

18 दिसंबर 1961: बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मुकदमा दायर किया।
1984: मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद ने अभियान चलाया। मंदिर निर्माण के लिए एक समिति का गठन भी किया गया।
1 फरवरी 1986: फैजाबाद जिला जज ने विवादित स्थल पर हिदुओं को पूजा की इजाजत दी। नाराज मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाई।
जून 1989: भाजपा ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन दिया।
1 जुलाई 1989: पांचवा मुकदमा भगवान रामलला विराजमान नाम से दाखिल किया गया।
25 सितंबर 1990: तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली।
नवंबर 1990: आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार किया गया। भाजपा ने नाराज होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अधिकार में ले लिया।

6 दिसंबर 1992 को ढाई गई बाबरी मस्जिद

6 दिसंबर 1992: हजारों कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचा ढहा दिया।
16 दिसंबर 1992: विवादित ढांचे की तोड़-फोड़ के लिए जिम्मेदार स्थितियों की जांच करने लिब्रहान आयोग बनाया गया।
जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत के माध्यम से हल निकालना था।
अप्रैल 2002: हाईकोर्ट में अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की।
मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। सर्वेक्षण करने वाली टीम का का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष मिले हैं।
सितंबर 2003: अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद विध्वंस के लिए उकसाने वाले 7 नेताओं के मामले में सुनवाई हो।
जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी।

6 अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट रोजाना कर रहा सुनवाई 

30 सितंबर 2010: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटा गया, जिसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया।
9 मई 2011: इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी।
21 मार्च 2017: सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की बात कही।
6 अगस्त : मध्यस्थता प्रक्रिया विफल होने के बाद 6 अगस्त से रोजाना सुनवाई कर रहा है सुप्रीम कोर्ट।

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