संघ प्रमुख मोहनभागवत की मौजूदगी में पीएम नरेंद्र मोदी के हाथों राम मंदिर भूमिपूजन के साथ ही यह सवाल भी जोर पकड़ने लगा है कि अब मंदिर आंदोलन के दूसरे कोर मुद्दों पर संघ और बीजेपी का क्या रुख होगा?
लखनऊ। अयोध्या में रामलला के मंदिर शिलान्यास के साथ ही सालों से चले आ रहे विवाद का एक मुकाम पर अंत हो चुका है। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी ने मंदिर आंदोलन के जरिए अयोध्या के काशी और मथुरा का भी मुद्दा उठाया था। संघ प्रमुख मोहनभागवत की मौजूदगी में पीएम नरेंद्र मोदी के हाथों राम मंदिर भूमिपूजन के साथ ही यह सवाल भी जोर पकड़ने लगा है कि अब मंदिर आंदोलन के दूसरे कोर मुद्दों पर संघ और बीजेपी का क्या रुख होगा? बुधवार से सोशल मीडिया समेत तमाम प्लेटफॉर्म पर लोगों की चर्चा में यह एक बड़े सवाल के तौर पर सामने आ रहा है।
क्या अब भी काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह को हिंदुओं को सौंपने का एजेंडा पार्टी की टॉप लिस्ट में है या अयोध्या के बाद इनको लेकर क्या स्ट्रेटजी होगी? इसी सवाल पर एशियानेट न्यूज ने बीजेपी के केंद्रीय सांगठनिक नेताओं से प्रतिकृया के लिए संपर्क बनाने की कोशिश की। मगर कोई भी फिलहाल काशी और मथुरा के सवाल पर बोलने को तैयार नहीं है।
काशी-मथुरा पर CM योगी क्या सोचते हैं?
हालांकि भूमिपूजन के बाद कुछ इंटरव्यू में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ से भी न्यूज चैनलों ने यही सवाल किए कि अब अयोध्या के बाद हिन्दुत्व के मुद्दों पर बीजेपी का क्या रुख होगा? योगी ने सवाल को पलट दिया और काशी और मथुरा में मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार की ओर से कराए जा रहे विकास कार्यों का खाका प्रस्तुत कर दिया। उधर, संघ के माउथपीस "पाञ्चजन्य" के 9 अगस्त के भूमिपूजन अंक में भी काशी-मथुरा का सब्जेक्ट गायब है।
पाञ्चजन्य राममय, काशी-मथुरा गायब
साप्ताहिक "पाञ्चजन्य" के 9 अगस्त अंक में भी अयोध्या को ही फोकस किया गया। संपादकीय से लेकर पाञ्चजन्य में इस्तेमाल ओपिनियन और एनालिसिस आर्टिकल्स में भी काशी-मथुरा का जिक्र नहीं है। मगर अयोध्या में भूमिपूजन को दुनियाभर के व्यापक हिन्दू समाज के लिए ऐतिहासिक और एक नए वक्त की शुरुआत के तौर पर देखा गया है। अलग-अलग आर्टिकल में राम मंदिर को लेकर मध्यकाल में हिन्दू मंदिरों के खिलाफ मुगलों की क्रूरता, संघर्ष में हिंदुओं का बलिदान, वामपंथी इतिहास की खुराफात, हिन्दू दावों के पक्ष में पुरातत्व के साक्ष्यों की दलील और माउथपीस के आर्काइव कंटेन्ट के जरिए मंदिर आंदोलन के संघर्ष को याद किया गया है।
फिर काशी-मथुरा पर बोल कौन रहा है?
वैसे मंदिर आंदोलन का प्रमुखता से हिस्सा रहे बीजेपी के फायरब्रांड नेता विनय कटियार जैसे नेता दावा कर रहे हैं कि अब अयोध्या के बाद काशी और मथुरा को लेकर मोबलाइजेशन शुरू किया जाएगा। हालांकि उनकी राय को किस स्तर तक पार्टी की राय समझी जाए इस पर सस्पेंस हैं। क्योंकि अभी तक बीजेपी और संघ के बड़े नेताओं की ओर से अयोध्या के बाद काशी-मथुरा को लेकर पार्टी लाइन साफ नहीं हुई है।
वैसे कटियार का कहा सुन लीजिए
आउटलुक से एक इंटरव्यू में कटियार ने कहा, "हमारी मांग तीन स्थानों काशी, मथुरा और अयोध्या को वापस लेना था। काशी विश्वनाथ मंदिर और कृष्ण जन्मभूमि मंदिर हमेशा से हमारी मकसद में रहा है। अब जबकि अयोध्या का मिशन पूरा हो गया, काशी और मथुरा भी पूरा होगा।"
वैसे काशी-मथुरा को लेकर बीजेपी के दावे क्या थे?
बीजेपी और संघ के दूसरे आनुषांगिक संगठनों का मानना है कि अयोध्या में बाबरी के अलावा ज्ञानवापी मस्जिद, काशी विश्वनाथ मंदिर को क्षतिग्रस्त करके बनाया गया। साथ ही मथुरा का शाही ईदगाह को भी कृष्ण जन्मभूमि माना गया है। मुगलों के हाथों तबाह किए गए साइट्स की लिस्ट तो बहुत बड़ी बताई गई है मगर बीजेपी ने प्रमुखता से अयोध्या के साथ काशी-मथुरा को हिंदुओं को वापस सौंपने की मांग की थी। हालांकि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचा ढहाए जाने के बाद धीरे-धीरे "अयोध्या तो एक झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है" के नारे से काशी और मथुरा ठंडे बस्ते में चला गया। और इसकी सबसे बड़ी वजह राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन की राजनीति थी जिसमें कई 'समाजवादी' दल भी बीजेपी के सहयोगी हैं।
तो क्या बीजेपी की लिस्ट से गायब है मुद्दा?
काशी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा का शाही ईदगाह को "प्लेस ऑफ वरशिप एक्ट" के तहत संवैधानिक प्रोटेक्शन मिलता है। लेकिन कटियार ने उसी इंटरव्यू में '1991 के एक्ट' का हवाला देने पर भी मस्जिद को हटाने की मांग की और कहा, "इंतजार करिए और देखिए (आगे) क्या होगा।" उधर, योगी ने भी एबीपी से सीधे-सीधे तो नहीं मगर "लोगों की आस्था से जुड़े सवाल पर सम्मान को जरूरी बताया।"
अब इस बारे में अभी बिल्कुल साफ-साफ कहना जल्दबाज़ी होगी कि बीजेपी, काशी और मथुरा के मुद्दों को अयोध्या की तरह प्राथमिकता देगी या नहीं। मगर इतना तो स्पष्ट है कि किसी न किसी तरह हिन्दुत्व की राजनीति में काशी-मथुरा के मुद्दों का शोर बना रहेगा। हो सकता है कि वह पार्टी राजनीति की बजाय "लोगों की आस्था के सवाल" के रूप में सामने आता रहे।