इस मंदिर की हैरान करने वाली है कहानी, मान्यता- कुल्हाड़ी के वार से पत्थर से बहने लगी थी खून की धारा

शिवलिंग के बगल में ही एक विशालकाय पीपल का पेड़ है। ये पेड़ पांच पौधों को मिलाकर एक बना है। इस पीपल की जड़ के पास शेषनाग की आकृति बन गई है। ये आकृति भी लोगों की आस्था का केंद्र है।

Ankur Shukla | Published : Feb 19, 2020 9:06 AM IST / Updated: Feb 19 2020, 02:56 PM IST

गोरखपुर (Uttar Pradesh) । झारखंडी महादेव मंदिर आस्था का केंद्र है। इस मंदिर की कहानी बहुत ही हैरान करने वाली है। मान्यता है कि वर्ष 1928 में एक दिन एक लकड़हारा यहां पेड़ काट रहा था, तभी उसकी कुल्हाड़ी एक पत्थर से टकराई जिससे खून की धारा बहने लगी। इसके बाद वह लकड़हारा जितनी बार उस शिवलिंग को ऊपर लाने की कोशिश करता वो उतना ही नीचे धंसता जाता। 

इस तरह शुरू हुई पूजा
लकड़हारे ने भाग कर यह घटना अन्य लोगों को बताई। इसी बीच वहां के जमींदार गब्बू दास को रात में भगवान भोले का सपना आया कि झारखंडी में भोले प्रकट हुए हैं। इसके बाद जमींदार और स्थानीय लोगों ने वहां पहुंचकर शिवलिंग को जमीन से ऊपर करने की कोशिश करने लगे, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हुए तब शिवलिंग पर दूध का अभिषेक किया जाने लगा और वहां पर पूजा पाठ शुरू हुआ, जो निरंतर जारी है।

शिवलिंग पर आज भी मौजूद है कुल्हाड़ी का निशान
झारखंडी महादेव मंदिर के मुख्य पुजारी शंभु गिरी गोस्वामी ने बताया कि इस शिवलिंग पर आज भी कुल्हाड़ी के निशान मौजूद है। मुख्य पुजारी के मुताबिक जंगल होने के कारण ये स्वयंभू (भगवान शिव किसी कारणवश स्वयं शिवलिंग के रूप में प्रकट होते हैं) शिवलिंग हमेशा पत्तों से ढका रहता था। इसीलिए मंदिर का नाम महादेव झारखंडी पड़ा। 

पीपल के पेड़ पर है शेषनाग की आकृति
शिवलिंग के बगल में ही एक विशालकाय पीपल का पेड़ है। ये पेड़ पांच पौधों को मिलाकर एक बना है। इस पीपल की जड़ के पास शेषनाग की आकृति बन गई है। ये आकृति भी लोगों की आस्था का केंद्र है।

हर बार असफल रहा छत डालने का प्रयास
झारखंडी महादेव मंदिर में शिव लिंग खुले आसमान में है। कई बार शिवलिंग के ऊपर छत डालने की कोशिश की गई, लेकिन किसी न किसी कारण से वह पूरी नहीं हुई। उसके बाद शिवलिंग को खुले में ही छोड़ दिया गया है और उसके ऊपर पीपल के पेड़ की छांव ही रहती है।

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