143 साल पहले यूनिवर्सिटी की नींव में दफन किया गया था टाइम कैप्सूल, अब इसलिए निकाला जाएगा बाहर

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय 143 साल पहले दफन किये गये कैप्सूल को बाहर निकालने की तैयारी कर रहा है। इसका मकसद विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष पर नई पीढ़ी को इतिहास से अवगत कराना है। 

अलीगढ़(Uttar Pradesh). अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय 143 साल पहले दफन किये गये कैप्सूल को बाहर निकालने की तैयारी कर रहा है। इसका मकसद विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष पर नई पीढ़ी को इतिहास से अवगत कराना है। कैप्सूल को लेकर बनायी गई कमेटी जल्द ही तिथि घोषित कर सकती है। ये टाइम कैप्सूल 143 साल पहले यूनिवर्सिटी की नींव में दफन किया गया था। अब फिर से नया टाइम कैप्सूल विश्वविद्यालय में दफन करने की तैयारी की जाएगी। 

गौरतलब है कि एएमयू संस्थापक सर सैयद अहमद खां ने मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज (एमएओ) की स्थापना के समय भी टाइम कैप्सूल जमीन में दफनाया था। बॉक्सनुमा कैप्सूल को  स्ट्रेची हॉल के पास जमीन में रखा गया था। यूनिवर्सिटी जमीन के उस नक्शे की तलाश में जुटी है, जहां कैप्सूल रखा गया था। कैप्सूल को जमीन में रखने की उस समय की तस्वीर इंतजामिया के पास है। कैप्सूल में मदरसा तुल उलूम से लेकर एमएओ कॉलेज की स्थापना तक के संघर्ष के दस्तावेज व अन्य सामान को रखा था। वर्ष 1877 में दफन किये गये कैप्सूल को अब बाहर निकालने पर विश्वविद्यालय प्रशासन विचार कर रहा है। ताकि पुराने इतिहास को नई पीढ़ी जान सके।

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नया टाइम कैप्सूल दफन करने की तैयारी 
एएमयू पीआरओ सेल राहत अबरार के मुताबिक विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष में नया कैप्सूल दफन करने की तैयारी की जा रही है। ताकि इतिहास को संजोकर सुरक्षित रखा जा सके। जिसको सालों बाद नई पीढ़ी देख सके। इसी क्रम में करीब 140 साल पहले दफन किये गये कैप्सूल को बाहर निकालकर नई पीढ़ी को पुराने इतिहास रूबरू कराने का प्रस्ताव भी कमेटी के समक्ष रखा गया है। 

काशी नरेश की मौजूदगी में 140 साल पहले दफन किया गया था टाइम कैप्सूल 
विश्वविद्यालय उर्दू एकेडमी के डायरेक्टर एवं पीआरओ सैल के मेंबर इंचार्ज डॉ. राहत अबरार का कहना हैं कि आठ जनवरी 1877 को मोहम्मद एंग्लो कॉलेज की स्थापना के समय  बड़ा  समारोह हुआ था। उद्घाटन वायसराय लार्ड लिटिन  ने किया। बनारस के नरेश शंभू नारायण भी शामिल हुए। करीब 140 वर्ष पहले भी सर सैयद ने वायसराय व नरेश की मौजूदगी में टाइम कैप्सूल जमीन में रखा था। इसका जिक्र अलीगढ़ इंस्टीट्यूट गजट के 12 जनवरी 1877 को प्रकाशित अंक में मिलता है। कैप्सूल में सोने, चांदी व तांबे के सिक्कों के साथ मदरसा व कॉलेज की स्थापना के लिए किए संघर्ष आदि की दास्तां शामिल हैं। कैप्सूल में सामान को रखने के लिए कांच की बोतलों का इस्तेमाल किया गया था।

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