अयोध्या स्थित भगवान राम के भव्य मंदिर निर्माण में कई बड़ी एजेंसियों और इंस्टिट्यूट ने सहयोग किया है। इनमें देश के 5 बड़े आईआईटी संस्थानों का भी योगदान है। इनकी तकनीक और मंदद के चलते मंदिर कम से कम 1000 सालों तक टस से मस नहीं होगा।
नई दिल्ली। श्रीराम जन्मभूमि (Shri Ram Janmbhoomi) अयोध्या (Ayodhya) में भगवान राम का भव्य मंदिर (Ram Mandir) बन रहा है। अगस्त, 2020 में भूमिपूजन के बाद से अब तक वहां तेजी से निर्माण कार्य चल रहा है। राम मंदिर के निर्माण में देश की कई बड़ी एजेंसियों और इंस्टिट्यूट भी सहयोग कर रहे हैं। इनमें कई आईआईटी और बड़े संस्थान भी शामिल हैं। मंदिर निर्माण में किस इंस्टिट्यूट का क्या योगदान रहा, इसको लेकर एशियानेट न्यूज (Asianet News) के राजेश कालरा ने मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेन्द्र मिश्रा से बातचीत की।
5 आईआईटी के एक्सपर्ट्स ने किया इंजीनियरिंग वेरिफिकेशन :
नृपेन्द्र मिश्रा के मुताबिक, 15 मीटर गहरे फाउंडेशन को बनाने के बाद हमें इंजीनियरिंग वेरीफिकेशन के लिए कई जगह से सुझाव मिले। इसके बाद एक कमेटी बनाई गई, जिसमें देश के 5 बड़े आईआईटी के रिप्रेजेंटिटव्स थे। इनमें आईआईटी मद्रास, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी सूरत, आईआईटी कानपुर और आईआईटी की तरह ही हैदराबाद के एक और इंस्टीट्यूशन के एक्सपर्ट्स को शामिल किया गया। इसमें आईआईटी मद्रास की सिविल इंजीनियरिंग विंग और आईआईटी दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर भी शामिल थे।
रॉफ्ट फाउंडेशन से बनी है मंदिर की नींव :
सभी ने एल एंड टी (Larsen and Toubro) और टाटा कंसल्टेंट के इंजीनियर्स के साथ मिलकर परीक्षण किया और फैसला किया की नींव बनाने में कहीं भी कोई इश्यू आया होगा तो हम उसे नोटिस करेंगे। टेस्ट के बाद पाया कि मंदिर के लिए बनाई गई नींव एक राफ्ट फाउंडेशन है। राफ्ट फाउंडेशन (Raft Foundation) तब इस्तेमाल किया जाता है, जब भूमि की वजन सहन करने की क्षमता बेहद कम हो। इसे पाइल फाउंडेशन (Pile Foundation) के बदले में भी इस्तेमाल किया जाता है। रॉफ्ट फाउंडेशन में इमारत के पूरे भार को जमीन के नीचे ट्रांसफर कर दिया जाता है। कहने का मतलब है कि बिल्डिंग के पूरे लोड को जमीन के नीचे एक बड़े क्षेत्र में फैला दिया जाता है।
अलग-अलग रिसर्च के लिए जाने जाते हैं ये आईआईटी :
- बता दें कि आईआईटी मद्रास सिविल इंजीनियरिंग के साथ ही इसकी कुछ दूसरी ब्रांचों में बेहतरीन रिसर्च के लिए जाना जाता है।
- वहीं आईआईटी दिल्ली साइंस और टेक्नोलॉजी में अपनी बेहतरीन रिसर्च के लिए मशहूर है।
- आईआईटी सूरत की बात करें तो उसका मिशन युवा पीढ़ी को इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी के क्षेत्र में योग्य और इनोवेशन में उत्कृष्ट बनाने का है।
- आईआईटी कानपुर का लक्ष्य शिक्षा, अनुसंधान एवं नवप्रवर्तन (Innovation) के क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करना है। इसके साथ ही नई-नई रिसर्च के द्वारा समस्याओं का समाधान खोजकर देशवासियों को लाभ पहुंचाना है।
- आईआईटी हैदराबाद अपनी रिसर्च और इनोवेशंस के लिए जाना जाता है। यहां हर साल टेक्नॉलजी, डिजाइन और साइंस से रिलेटेड कई रिसर्चेस की जाती हैं।
कौन हैं नृपेन्द्र मिश्रा :
नृपेन्द्र मिश्रा यूपी काडर के 1967 बैच के रिटायर्ड आईएएस अफसर हैं। मूलत: यूपी के देवरिया के रहने वाले नृपेन्द्र मिश्रा की छवि ईमानदार और तेज तर्रार अफसर की रही है। नृपेंद्र मिश्रा प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव भी रह चुके हैं। इसके पहले भी वो अलग-अलग मंत्रालयों में कई महत्वपूर्ण पद संभाल चुके हैं। मिश्रा यूपी के मुख्य सचिव भी रह चुके हैं। इसके अलावा वो यूपीए सरकार के दौरान ट्राई के चेयरमैन भी थे। जब नृपेंद्र मिश्रा ट्राई के चेयरमैन पद से रिटायर हुए तो पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन (PIF) से जुड़ गए। बाद में राम मंदिर का फैसला आने के बाद सरकार ने उन्हे अहम जिम्मेदारी सौंपते हुए राम मंदिर निर्माण समिति का अध्यक्ष बनाया।
जानें कब आया राम मंदिर का फैसला और कब बना ट्रस्ट :
सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर, 2019 को अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक मानते हुए फैसला मंदिर के पक्ष में सुनाया। इसके साथ ही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की विशेष बेंच ने राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए अलग से ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया। इसके बाद 5 फरवरी, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में ट्रस्ट के गठन का ऐलान किया। इस ट्रस्ट का नाम 'श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' रखा गया।
ये भी पढ़ें :
अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण में क्या रहा सबसे बड़ा चैलेंज? पढ़ें नृपेन्द्र मिश्रा की जुबानी
अयोध्या के मंदिर में भगवान राम की ऐसी कौन-सी लीला होगी, जिसे पूरा अयोध्या देखेगा लाइव?