ज्ञानवापी मामले में शिवलिंग पूजा व गैर-मुस्लिम के प्रवेश की मांग पर टली सुनवाई, 14 नवंबर को आ सकता है आदेश

ज्ञानवापी मस्जिद मामले में कथित शिवलिंग की पूजा-अर्चना की मांग, पूरा परिसर हिंदुओं को सौंपने और मुस्लिमों के प्रवेश को वर्जित किए जाने की मांग को लेकर आज सुनवाई टल गई है। बता दें कि इस मामले पर अब 14 नवंबर को सुनवाई की जाएगी।

Asianet News Hindi | Published : Nov 8, 2022 5:48 AM IST / Updated: Nov 08 2022, 01:01 PM IST

वाराणसी: ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृंगार गौरी मामले में सिविल जज सीनियर डिवीजन महेंद्र प्रसाद पांडेय की फास्ट ट्रैक कोर्ट में भगवान आदि विश्वेश्वर के विराजमान का मामला सुनवाई योग्य है या नहीं इस पर फैसला आना था। बता दें कि ज्ञानवापी परिसर में मुस्लिमों के प्रवेश पर प्रतिबंध और पूरा परिसर हिंदूओं को सौंपे जाने के मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी है। ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृगांर गौरी मामले में गैर मुस्लिमों के प्रवेश पर प्रतिबंध, पूरा परिसर हिंदुओं को सौंपे जाने और वजूखाने में मिले कथित शिवलिंग की पूजा-अर्चना की मांग को लेकर दाखिल प्रार्थना पत्र पर आज कोर्ट में सुनवाई टल गई है।

15 अक्टूबर को पूरी हो गई थी सुनवाई
विश्व वैदिक सनातन संघ के अध्यक्ष जितेंद्र सिंह विसेन की पत्नी किरन सिंह ने कोर्ट में यह वाद दाखिल किया है। जिस पर आज 8 नवंबर को ऑर्डर 7 रूल 11 पर पोषणीयता के बिंदु पर आदेश होना है। अदालत के फैसले से यह साफ हो जाएगा कि यह मामला सुनवाई योग्य है या नहीं। दोनों पक्ष के वकील सुबह से ही मामले की तैयारियों में जुटे हुए हैं। किरन सिंह की तऱफ से ज्ञानवारी परिसर हिंदुओं को सौंपने, मुस्लिमों के प्रवेश को वर्जित किये जाने और शिवलिंग की पूजा पाठ रागभोग की अनुमति मांगी गई थी। वहीं बीते 15 अक्टूबर को कोर्ट में दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गई थीं।

सिविल कोर्ट के पास है ट्रायल का अधिकार
वादिनी किरन सिंह के अधिवक्ता मानबहादुर सिंह अनुपम द्विवेदी और शिवम ने अदालत के सामने दलील देते हुए कहा था कि वाद सुनवाई योग्य है या नहीं, इस पर मुस्लिम पक्ष की ओर से जो आपत्ति उठाई गई है वह ट्रायल और साक्ष्य का विषय है। उन्होंने कहा था कि ज्ञानवापी का गुबंद छोड़कर सब मंदिर है और इसका पता तभी चलेगा जब ट्रायल होगा। बता दें कि इसके ट्रायल का अधिकार सिविल कोर्ट को है। उन्होंने दीन मोहम्मद के फैसले का जिक्र कर कहा था कि उस मुकदमे में हिंदू पक्षकार नहीं था। इसके साथ ही यह भी दलील दी गई थी कि इस वाद में 1991 विशेष धर्म स्थल स्थल विधेयक प्रभावी नहीं है।

हिंदू पक्ष ने पेश की थीं ये दलीलें
अधिवक्ताओं ने दलील पेश करते हुए कहा था कि मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाने का आदेश दिया है। वहीं हिंदू पक्ष पर वक्फ एक्ट लागू नहीं होता है। इसलिए यह वाद सुनवाई योग्य है। साथ ही अंजुमन की ओर से पोषणीयता के बिंदु पर दिया गया आवेदन खारिज करने योग्य है। राइट टू प्रॉपर्टी के अनुसार, देवता को अपनी प्रॉपर्टी पाने का मौलिक अधिकार है। नाबालिग होने के चलते वाद मित्र के द्वारा यह वाद दाखिल किया गया है। हिंदू पक्ष के वकील ने अपने वाद के समर्थन में अदालत को सुप्रीम कोर्ट की 6 रूलिंग और संविधान का हवाला भी दिया गया है। 

मुस्लिम पक्ष ने की थी वाद को खारिज करने की मांग
वहीं अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से रईस अहमद, मिराजुद्दीन खान, मुमताज अहमद, तौहीद खान और एखलाख खान ने हिंदू पक्ष के सवालों का जवाब देते हुए अदालत में कहा था कि एक तरफ यह दलील दी जा रही है कि वाद देवता की तरफ से दाखिल है तो वहीं दूसरी ओर जनता से जुड़े लोग भी इस वाद में शामिल हैं। मुस्लिम पक्ष ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि वाद किस बात पर आधारित है और इसका पेपर और कोई साक्ष्य भी मौजूद नहीं हैं। अदालत कहानी से नहीं चलती है। इतिहास और कहानी में फर्क होता है। मुस्लिम पक्ष ने दलील देते हुए कहा था कि यह वाद सुनवाई योग्य नहीं है, इसलिए इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए।

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