Uniform Civil Code की क्यों है देश में जरूरत? इलाहाबाद HC ने कहा- इसे लागू करने पर विचार करे संसद

भारत में धार्मिक विविधता होने की वजह से प्रत्येक प्रमुख धार्मिक समुदाय के धर्मग्रंथों और रीति-रिवाजों पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों से प्रत्येक नागरिक को नियंत्रित करता है। लेकिन समान नागरिक संहिता से देश के सभी नागरिकों पर एक समान कानून के तहत न्याय पाने का अधिकार होगा। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 19, 2021 8:45 AM IST / Updated: Nov 19 2021, 02:21 PM IST

नई दिल्ली। दिल्ली (Delhi) के बाद अब इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabd High Court) ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code ) को लागू करने की वकालत की है। हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने पर विचार करना चाहिए। यह देश की जरुरत बन गई है। 

दरअसल, हाईकोर्ट (Allahabad HC) की यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान आई है। हाईकोर्ट ने अपनी सलाह में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर (Dr.BR Ambedkar) को भी कोट किया है। कोर्ट ने कहा कि समान नागरिक संहिता इस देश की जरुरत है और इसे अनिवार्य रूप से लाए जाने पर विचार करना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा व्यक्त की गई आशंका या भय को देखते हुए इसे सिर्फ स्वैच्छिक नहीं बनाया जा सकता। इस बारे में 75 साल पहले डॉ.बीआर अंबेडकर भी जिक्र कर चुके हैं। 

यूनिफॉर्म फैमिली कोड पर विचार करे संसद

हाईकोर्ट के जस्टिस सुनीत कुमार (Justice Sunit Kumar) ने अलग-अलग धर्मों के दंपत्ति के मैरिज रजिस्ट्रेशन में सुरक्षा को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि ये समय की आवश्यकता है कि संसद एक ‘एकल परिवार कोड’ के साथ आए। अंतरधार्मिक जोड़ों को ‘अपराधियों के रूप में शिकार होने से बचाएं।’ अदालत ने आगे कहा, ‘हालात ऐसे बन गए हैं कि अब संसद को हस्तक्षेप करना चाहिए और जांच करनी चाहिए कि क्या देश में विवाह और पंजीकरण को लेकर अलग-अलग कानून होने चाहिए या फिर एक।’

हालांकि, राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के विवाह को जिला प्राधिकरण द्वारा जांच के बिना पंजीकृत नहीं किया जा सकता। क्योंकि अलग-अलग धर्म के दंपत्ति ने विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करने की अनुमति जिला मजिस्ट्रेट से नहीं ली थी। जबकि दंपत्तियों की ओर से पेश हुए वकील ने कहा कि नागरिकों को अपने साथी और धर्म को चुनने का अधिकार है और धर्म परिवर्तन अपनी इच्छा से हुआ है। 

दिल्ली हाईकोर्ट भी पूर्व में दी थी सलाह

जुलाई 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर कहा था कि सरकार को समान क़ानून के दिशा में सोचना चाहिए। डॉ अंबेडकर देश की आधी आबादी जो महिलायें हैं, उनको उनके अधिकार देने के लिए ये बिल लाना चाहते थे, लेकिन फिर उन्होंने ने ही कहा कि इस पर एक राय बनाकर उचित समय पर इसे लागू किया जाना चाहिए।

समान नागरिक संहिता क्या है?

दरअसल, भारत में धार्मिक विविधता होने की वजह से प्रत्येक प्रमुख धार्मिक समुदाय के धर्मग्रंथों और रीति-रिवाजों पर आधारित व्यक्तिगत कानूनों से प्रत्येक नागरिक को नियंत्रित करता है। लेकिन समान नागरिक संहिता से देश के सभी नागरिकों पर एक समान कानून के तहत न्याय पाने का अधिकार होगा। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होने की बात कही गई है।

संविधान में समान नागरिक संहिता का प्रावधान

संविधान में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत के रूप में अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का प्रावधान है। इसके अनुसार "राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।"

समान नागरिक संहिता का लाभ

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